पुण्य तिथि पर विशेष-हकीम अजमल ख़ाँ का जन्म 1863 में दिल्ली के उस परिवार में हुआ, जिसके पुरखे मुग़ल सम्राटों के पारिवारिक चिकित्सक रहते आए थे। अजमल ख़ाँ हकीमी अपनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद 10 वर्षों तक रामपुर रियासत के हकीम रहे। 1902 में वे ईराक चले गए और वापस आने पर दिल्ली में ‘मदरसे तिब्बिया’ की नींव डाली, जो अब ‘तिब्बिया कॉलेज’ के नाम से प्रसिद्ध है। अजमल ख़ाँ के पूर्वज, जो प्रसिद्ध चिकित्सक थे, भारत में मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के शासनकाल में भारत आए थे। हकीम अजमल ख़ाँ के परिवार के सभी सदस्य यूनानी हकीम थे। उनका परिवार मुग़ल शासकों के समय से चिकित्सा की इस प्राचीन शैली का अभ्यास करता आ रहा था। वे उस ज़माने में दिल्ली के रईस के रूप में जाने जाते थे। उनके दादा हकीम शरीफ ख़ान मुग़ल शासक शाह आलम के चिकित्सक थे और उन्होंने शरीफ मंज़िल का निर्माण करवाया था, जो एक अस्पताल और महाविद्यालय था जहाँ यूनानी चिकित्सा की पढ़ाई की जाती थी।
हकीम अजमल ख़ाँ का पूरा जीवन परोपकार और बलिदान का प्रतिरूप है। हकीम अजमल ख़ाँ की मृत्यु 29 दिसंबर 1927 को दिल की समस्या के कारण हो गयी थी। हकीम अजमल खाँ के त्याग, देशभक्ति और बलिदान के कारण उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सदा स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने केवल नौ वर्ष तक राजनीति में इतनी सक्रिय भूमिका अदा की कि वे दिल्ली के बेताज बादशाह बन गए। वे दिल्ली की जनता के दिल में रहते थे और यहाँ की जनता उनके एक इशारे पर बड़े से बड़ा बलिदान करने के लिए तैयार रहती थी। यद्यपि वे आज हमारे बीच नहीं हैं, तथापि जनता आज भी उन्हें श्रद्धा के साथ याद करती है।
मंजीत बावा-पंजाब के छोटे से कस्बे धूरी में 1941 में पैदा हुए मंजीत बावा ने दिल्ली के स्कूल ऑफ आर्ट्स में ललित कला की तालीम हासिल की। यहाँ उन्हें सोमनाथ होरे, राकेश मेहरा, धनराज भगत और बीसी सान्याल जैसे शिक्षकों से प्रशिक्षण मिला। लंदन में 1964 में उन्होंने अपना करियर सिल्कस्क्रीन पेंटर के तौर पर शुरू किया था। वह पहले चित्रकार थे, जिन्होंने पाश्चात्य कला में बहुलता रखने वाले भूरे और धूसर रंगों का वर्चस्व खत्म करके उसकी जगह लाल और बैंगनी जैसे भारतीय रंगों को चुना। वह प्रकृति सूफी रहस्यवाद और भारतीय पौराणिक कथाओं से काफ़ी प्रभावित थे।
उनकी पेंटिंग्स के कद्रदान पूरी दुनिया में हैं। मंजीत बावा की एक पेंटिंग तो क़रीब एक करोड़ 73 लाख रुपये में बिकी थी। उन्होंने अपनी पेंटिंग में पशु और पक्षी को अक्सर उकेरा। इसके अतिरिक्त बाँसुरी भी उनकी पसंद रही। उन्होंने प्रसिद्ध बाँसुरी वादक पन्नालाल घोष से बाँसुरी वादन सीखा। उन्होंने हीर-रांझा की कथा की पात्र राँझा की भी तस्वीर बनाई। इसके अतिरिक्त उन्होंने कुत्तों से घिरे भगवान श्रीकृष्ण की बाँसुरी बजाते हुए तस्वीर बनाई। उन्होंने अपनी पेंटिंग में भगवान श्रीकृष्ण को गायों से घिरा नहीं दिखाया।
प्रसिद्ध चित्रकार मंजीत बावा का 29 दिसम्बर, 2008 को दिल्ली में निधन हो गया। 67 वर्षीय बावा ब्रेन हैमरेज के बाद से क़रीब तीन साल से कोमा में रहे थे। मंजीत बावा के परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री है। उनकी पत्नी का कुछ वर्ष पहले ही निधन हो गया था।
जयंती पर विशेष- व्योमेश चन्द्र बनर्जी- 29 दिसंबर, 1844, कोलकाता; 21 जुलाई 1906 इंग्लैंड- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष और कोलकाता उच्च न्यायालय के प्रमुख वक़ील थे। ये भारत में अंग्रेज़ी शासन से प्रभावित थे और उसे देश के लिये अच्छा मानते थे।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रामानन्द सागर का जन्म लाहौर ज़िले के “असलगुरु” में 29 दिसम्बर 1927 में धनी परिवार में हुआ था। उन्हें अपने माता-पिता का प्यार नहीं मिला, क्योंकी उन्हें उनकी नानी ने गोद ले लिया था। उनका नाम चंद्रमौली चोपड़ा था लेकिन नानी ने उनका नाम बदलकर रामानंद रख दिया।
1947 में देश विभाजन के बाद रामानन्द सागर सपरिवार भारत आ गए। उन्होंने विभाजन की जिस क्रूरतम, भयावह घटनाओं का दिग्दर्शन किया, उसे कालांतर में “और इंसान मर गया” नामक संस्मरणों के रूप में लिपिबद्ध किया। यह भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि वे जब अपनी मातृभूमि से बिछुड़कर युवावस्था में शरणार्थी बन भारत आए, उनकी जेब में मात्र 5 आने थे, किन्तु साथ में था अपने धर्म और संस्कृति के प्रति असीम अनुराग-भक्तिभाव। शायद इसी का परिणाम था कि आगे चलकर उन्होंने रामायण, श्रीकृष्ण, जय गंगा मैया और जय महालक्ष्मी जैसे धार्मिक धारावाहिकों का निर्माण किया। दूरदर्शन के द्वारा प्रसारित इन धारावाहिकों ने देश के कोने-कोने में भक्ति भाव का अद्भुत वातावरण निर्मित किया।
देश में शायद ही कोई ऐसा फ़िल्म निर्माता-निर्देशक हो जिसे न केवल अपने फ़िल्मी कैरियर में भारी सफलता मिली वरन् जिसे करोड़ों दर्शकों, समाज को दिशा देने वाले संतों-महात्माओं का भी अत्यंत स्नेह और आशीर्वाद मिला। डा. रामानन्द सागर ऐसे ही महनीय व्यक्तित्व के धनी थे। सारा जीवन भारतीय सिने जगत की सेवा करने वाले रामानन्द सागर शायद भारतीय फ़िल्मोद्योग के ऐसे पहले टी.वी. धारावाहिक निर्माता व निर्देशक थे, जिनके निधन की खबर सुनते ही देश के कला प्रेमियों, करोड़ों दर्शकों सहित हजारों सन्त-महात्माओं में शोक की लहर दौड़ गई। गत 12 दिसम्बर 2005 मुंबई, में उनका निधन हो गया।
सुधीश पचौरी जन्म: 29 दिसम्बर, 1948 अलीगढ़ आलोचक एवं प्रमुख मीडिया विश्लेषक हैं। साहित्यकार, स्तंभकार और वरिष्ठ मीडिया समीक्षक, सुधीश पचौरी को 2010 में ‘हिंदी सलाहकार समिति’ का सदस्य बनाया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक, पचौरी को दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘डीन ऑफ कॉलेज’ भी बनाया गया है। दैनिक हिंदी अखबार, ‘जनसत्ता’ में पचौरी का एक कॉलम ‘देखी-सुनी’ पिछले 25 वर्षों से भी अधिक समय से लगातार आ रहा है, जो अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। सुधीश पचौरी को साहित्य जगत में योगदान के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं।एजेंसी