लखनऊ। पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद (स0) के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में ‘बहार-ए-रहमत, पयाम-ए-वहदत’ के शीर्षक से ऐनुल हयात ट्रस्ट द्वारा अन्य संस्थाओं के सहयोग से 9 दिसम्बार 2017 को छोटा इमामबाड़ा लखनऊ में कान्फ्रेन्स का आयोजन किया गया। कायक्रम का आरम्भ क़ारी शबरेज़ साहब द्वारा क़ुरान की आयतों की तिलावत के साथ किया गया।
कार्यक्रम में तेहरान (ईरान) के इमामे जुमा आयतुल्लाह काशानी साहब के मौजूद होने से लोगों में एक अनोखा उत्साह देखने को मिला। आयतुल्लाह काशानी ने कान्फ्रेन्स में कहा कि मुझे बहुत ख़ुशी है कि पैग़म्बरे इस्लाम की विलादत के इस मुबारक अवसर पर मुझे आप लोगों के बीच आने का मौक़ा मिला। पैगम्बरे इस्लाम नैतिक मूल्यों के बाद लोगों के बीच एकता को मानव जाति की सफलता के लिए बहुत जरूरी मानते थे इसलिए उन्होंने एक दूसरे की दुश्मन जातियों को आपस में एकजुट किया और उनके मन में द्वेष के स्थान पर मोहब्बत और बिखराव की जगह पर एकता व भाईचारे का बीच बोया।
उन्होंने कहा हालांकि मुसलमानों के विभिन्न मतों और पंथों के बीच कुछ आंशिक मतभेद पाए जाते हैं किंतु यह मतभेद मूल सिद्धातों में नहीं हैं। इस प्रकार इस्लाम के मूल सिद्धांतों को मानते हुए मुसलमानों के बीच एकता स्थापित की जा सकती है। इस्लामी एकता के बाहरी शत्रु तो मुसलमानों के लिए पूरी तरह से स्पष्ट हैं लेकिन मुसलमानों के बीच छिपे बैठे उन शत्रुओं का पता लगाना बहुत कठिन है जो इस्लाम की पोशाक में मुसलमानों को धोखा दे रहे हैं। पैग़म्बर की विलादत की तारीख़ में उनके वंशज इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम की भी विलादत हुई जो आपसी फूट को इस्लाम की कमजोरी और दुश्मन की ओर से गलत फायदा उठाए जाने का कारण बताते थे। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने कहाः हे इस्हाक़! क्या तुम अहले सुन्नत के साथ मस्जिद में नमाज पढ़ते हो? मैंने कहा कि जी हां, मैं पढ़ता हूं। उन्होंने कहाः उनके साथ नमाज पढ़ो कि उनकी पहली पंक्ति में नमाज पढ़ने वाला, ईश्वर के मार्ग में खिंची हुई तलवार की तरह है। उनके इसी व्यवहार के कारण उनके शियों में सिर्फ शिया नहीं थे बल्कि अहले सुन्नत के बड़े बड़े धर्मगुरू भी उनके शिष्यों में दिखाई देते हैं। मालिक इब्ने अनस, अबू हनीफा, मुहम्मद इब्ने हसन शैबानी, सुफयान सौरी, इब्ने उययना, यहया इब्ने सईद, अय्यूब सजिस्तानी, शोबा इब्ने हज्जाज, अब्दुल मलिक जुरैह और अन्य वरिष्ठ सुन्नी धर्मगुरू इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिष्यों में शामिल हैं।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना डॉ सै0 कल्बे सादिक़ साहब ने कहा कि इत्तेहादे इस्लामी दुनिया में मौजूद गम्भीर स्थिति के बीच वक़्त की अहम जरूरत है जो कि इस्लाम को बदनाम करने के शत्रुतापूर्ण हमलों के खिलाफ़ सबसे महत्वपूर्ण उपाय है। उन्होंने कहा कि हजरत मोहम्मद साहब ने गरीब-अमीर, दुश्मन-दोस्त सबको एकता का पैगाम दिया और सारी दुनिया को सच्चाई पर अमल करने की राह दिखाई। प्रत्येक व्यक्ति को उनकी सीरत और शिक्षाओं से सबक लेना चाहिए। उन्होंने मुसलमानों से एकजुट होने का आह्वान किया और कहा कि इसी उद्देश्य से इमाम ख़ुमैनी ने हज़रत मोहम्मद साहब के जन्म के उपलक्ष्य में 12 से 17 रबीउल अव्वल तक हफ्ता-ए-वहदत (एकता का सप्ताह) मनाने का आह्वान किया जिससे सभी मुसलमान एक साथ इस जश्न को मना सकें। हर मुसलमान को चाहिए कि वो स्वयं अपने अमल से मानवता की सेवा और भाईचारे का संदेश दे।
आसिफ़ी मस्जिद, लखनऊ के इमाम-ए-जुमा मौलाना सै0 कल्बे जवाद साहब ने कहा कि अगर सारे मुसलमान एक जुट हो जाएं तो इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैलाने की शत्रुओं की साज़िश नाकाम हो जाएगी और इस्लाम का अस्ल पैग़ाम जो कि सच्चाई, न्याय, सबकी सुरक्षा और सलामती व मोहब्बत का पैग़ाम है वह सारी दुनिया के सामने आएगा।
क़ाज़ी-ए-शहर मौलाना अबुल इरफ़ान मियाँ फ़रंगी महली साहब ने कहा कि इन्सान को चाहिए कि इल्म हासिल करे क्योंकि जिहालत से नफ़रतें बढ़ती हैं, सभी को आपस में मिल-जुल कर रहना चाहिए क्योंकि एकता की राह पर चलकर दुश्मन की चालों का ख़ात्मा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अपना हक़ हासिल करना ज़रूरी है लेकिन किसी हक़दार का हक़ छीनकर नहीं।
कार्यक्रम में मौलाना हैदर अब्बास ने मंच का संचालन करते हुए इस्लाम की दोनों अज़ीम शख़्सियात की विलादत की मुबारकबाद पेश करते हुए पैग़म्बर मोहम्मद साहब के जीवन पर प्रकाश डाला और इमाम जाफ़रे सादिक़ अलै0 की शिक्षाओं का बयान करते हुए दिलों पर असर डालने वाले अन्दाज़ में श्रोताओं को एकता और भाईचारे का पैग़ाम दिया।
बहारे रहमत पयामे वहदत कार्यक्रम के बारे में बताते हुए मौलाना अली अब्बास ख़ान साहब ने बताया कि उक्त कार्यक्रम पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद साहब की विलादत की मुसलमानों के बीच मशहूर दो तारीख़ों 12 रबीउल अव्वल और 17 रबीउल अव्वल को एक साथ मिलकर मनाने के लिये इमाम ख़ुमैनी द्वारा शुरू किये गए हफ़्ता-ए-वहदत के अवसर पर विगत दो वर्षों से मनाया जा रहा है जिसमें हर वर्ष मुसलमानों के अलग-अलग फ़िरक़ों के ओलमाए दीन हिस्सा लेते हैं। ऐनुल हयात ट्रस्ट द्वारा वर्ष 2015 में उक्त कार्यक्रम गोल्डेन पैलेस विक्टोरिया स्ट्रीट में मनाया गया था तथा गत वर्ष छोटा इमामबाड़ा हुसैनाबाद में आयोजित हुआ था। जिसमें लोगों ने बहुत उत्साह से भाग लिया और इसी क्रम में इस वर्ष भी यह कार्यक्रम ऐनुल हयात ट्रस्ट के साथ मुस्लिम यूथ, हैदरी एजूकेशनल एण्ड वेलफेयर सोसाइटी, अल-अक़्सा ट्रस्ट, चैनल विन (वर्ड इस्लामिक नेटवर्क), हुसैनी चैनल, अल-मोअम्मल, इस्लाह, ख़ानख़्वाहे तूसवी कानपुर, पयाम्बरे अकरम वेलफेयर सोसाइटी, अलीगढ़ ओल्ड ब्वाएज़ सोसाइटी द्वारा आयोजित किया गया है।
उन्होंने कहा कि वहदत-ए-इस्लामी को हासिल करने के लिये इल्म इंसानियत, और मोहब्बत को अपनाने और पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद साहब के बताए रास्ते पर चलने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि अगर आज सारी दुनिया के मुसलमान वहदते इस्लामी को अपना लें तो दुनिया से आतंकवाद का ख़ात्मा हो जाएगा।
ख़ानख़्वाहे तूसवी, कानपुर से मोईनुद्दीन चिश्ती ने कहा कि पैग़म्बर मोहम्मद साहब आलमीन के लिये रहमत बनकर आए लेहाज़ा मुसलमानों को भी अपने बेहतरीन किरदार के ज़रिये दूसरों के साथ मोहब्बत और क़ौमी यकजहती के साथ पेश आना चाहिए और आपस में भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए एक-दूसरे के हाथ में हाथ देकर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर अमल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जाफ़रे सादिक़ अलै0 का व्यक्तित्व हर व्यक्ति के लिये आदर्श है। उन्होंने सारी दुनिया की जेहालत के अन्धेरों से इल्म की रौशनी की तरफ़ राहनुमाई की।
मौलाना अयूब अशरफ़ ने कहा कि वक़्त की ज़रूरत है के पैग़म्बर मोहम्मद साहब द्वारा जो दूसरों को क्षमा करते हुए उनके साथ मोहब्बत से पेश आने का रास्ता दिखाया गया है उस पर अमल करके दुश्मनों की साजिश को नाकाम किया जाए। आज इस्लाम दुश्मन ताक़तें मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करके उनकी ताक़त को टुकड़ों में बांटने के लिये काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को चाहिए कि मिलकर रहें और अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लें, मौलाना ने कहा कि जब हमारा रास्ता और मक़सद एक है, एक अल्लाह, एक रसूल, एक किताब, एक क़िब्ला के मानने वालों को एक ही होकर रहना चाहिए।
उक्त कार्यक्रम में मौलाना सईदुल हसन, मौलाना मन्ज़र सादिक, मौलाना जाबिर जौरासी, मौलाना अफ़्फान फ़रंगी महली, मौलाना हसनैन बाक़री, मौलाना इस्तेफ़ा रज़ा, मौलाना क़मरूल हसन, मौलाना रज़ा हुसैन, मौलाना मीसम, मौलाना मूसी रज़ा, मौलाना मोहम्मद मियां आब्दी और मुसलमानों के विभिन्न फ़िरक़ों के दीगर मौलाना भी मौजूद थे। कार्यक्रम में आने वाले लोगों को एक पर्चे पर 5 प्रश्न लिखे गए थे जिनके सही जवाब देने वाले 14 लोगों को क़ुरा के ज़रिये इनाम दिया गया, यूनिटी काॅलेज के उन बच्चों को जिन्होंने अपने प्रस्तुतीकरण से लोगों का दिल जीत लिया, पुरस्कार दिया गया। उक्त के अतिरिक्त सभी सम्मानित मेहमान उलेमाओं को 5 महत्वपूर्ण किताबों का एक सेट उपहार स्वरूप दिया गया एवं उपस्थित सभी लोगों में जिन लोगों का नाम पैग़म्बर मोहम्मद साहब या इमाम जाफ़र (सादिक़) के नाम पर था ऐसे सभी लोगों को विशेष पुरस्कार प्रदान किया गया। यूनिटी कॉलेज, लखनऊ के छात्रों ने दो ग्रुप में परस्पर शिकवा और जवाबे शिकवा का मनमोहक कार्यक्रम बहुत ही अच्छे अन्दाज़ में प्रस्तुत किया।