भारत के हृदय स्थल मध्यप्रदेश में पर्यटन के ऐसे बहुत से स्थल है जहां देश विदेश के असंख्य सैलानी इन्हें देखने आते हैं। धार्मिक महत्व के अलावा पुरातात्विक महत्व के इन स्थलों में कान्हा किसली, महेश्वर, खजुराहो, भोजपुर, ओंकारेश्वर, सांची, पचमढ़ी, भीमबेटका, चित्रकूट, मैहर, भोपाल, बांधवगढ़, उज्जैन, आदि उल्लेखनीय स्थल हैं।
कान्हा किसली: 940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विकसित कान्हा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यान हैं। इसे देखने के लिए किराये पर जीप, टाइगर ट्रेकिग के लिए हाथी पर सवार होकर उद्यान को देख सकते हैं। कान्हा में वन्य प्राणियों की 22 प्रजातियों के अलावा 200 पक्षियों की प्रजातिया है। यहां बामनी दादर एक सनसेट प्वाइंट है। यहां से सांभर और हिरण जैसे वन्यप्रणियों को आसानी से देख जा सकता है। लोमड़ी और चिंकारा जैसे वन्यप्राणी कम ही देखने को मिलते हैं। कान्हा जबलपुर, बिलासपुर और बालाघाट से सड़क माग से पहुंचा जा सकता है। नजदीकी विमानतल जबलपुर में हैं।
महेश्वर: रामायण और महाभारत में महेश्वर को महिष्मती के नाम से संबोधित किया गया है। देवी अहिल्याबाई होल्कर के समय में बनाए गए सुंदर घाटों का प्रतिबिम्ब नदी में दिखाई देता है। महेश्वर किले के अंदर रानी अहिल्याबाई की राजगद्दी पर बैठी एक प्रतिमा रखी गई हैं। महेश्वर घाट के आसपास कालेश्वर, राजराजेश्वर, विठ्ठलेश्वर और अहिलेश्वर के सुन्दर मंदिर हैं। इंदौर विमानतल से 91 किलोमीटर पर महेश्वर स्थित हैं।
खजुराहों: मंदिरों की आकर्षण स्थापत्य कला का एक नमूना खजुराहो के मंदिरों में देखा जा सकता हैं। एक हजार वर्ष पूर्व चंदेला राजपूतों के साम्राज्य में बनाए गए 85 मंदिर इनमें से वर्तमान में 22 मंदिर ही बेहतर स्थित में हैं। खजुराहो विश्व पर्यटन स्थल के रूप में अपनी अलग ही पहचान रखता हैं। यहां भोपाल, महोबा, हरबालपुर, सतना, पन्ना से सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। खजुराहों दिल्ली, आगरा से वायुयान द्वार भी पहुंचा जा सकता हैं।
भोजपुर: राजा भोज द्वारा स्थापित पौराणिक शिव मंदिर के लिए प्रचलित हैं यहां भोपाल से निजी वाहन, टैक्सी, या अन्य साधन से पहुंचा जा सकता है। प्रचलित है कि एक रात में ही इस विशाल मंदिर का निर्माण राजा भोज ने कराया था जहां संभवतः विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग हैं।
सांची: भारत में बौद्धकला की विशिष्टता व भव्यता सदियों से दुनिया को सम्मोहित करती आई है। इनमें गया के महाबोधि मंदिर और सांची के स्तूपों का जहां विश्व विरासत में शुमार है वहीं अन्य अनेक स्थानों पर निर्मित स्तूप, प्रतिमाएं, मंदिर, स्तम्भ, स्मारक, मठ, गुफाएं, शिलाएं उस दौर की उन्नत प्रस्तर कला की अन्य विरासतें अपने में समाये हुए सांची को 1989 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में भी शामिल किया गया हैं। बौद्ध धर्म का प्रमुख केन्द्र होने के कारण देशी व विदेशी पर्यटक प्रतिदिन हजारों की संख्या में पहुंचते हैं। यहां एक पुरातत्व संग्रहालय भी दर्शनीय है। शांत वातावरण बुद्ध के शांति के संदेशों का प्रतीक सांची के स्मारक आगन्तुको को चमत्कृत करते हैं। सांची में सुपरफास्ट रेलें नहीं रुकती अतएव भोपाल आकर जाना उपयुक्त रहता है। सांची देश के लगभग सभी नगरों से बस अथवा रेल मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है।
पचमढ़ी: प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण सतपुड़ा की रानी के नाम से पहचाने जाना वाला पर्यटन स्थल हैं पचमढ़ी । जिसकी खोज 1857 में की गई थी। जहा वाटर फाल जिसे जमुना प्रपात कहते हैं पचमढ़ी को जलापूर्ति करता हैं। सुरक्षित पिकनिक स्पाट के रूप में विकसित अप्सरा बिहार का जलप्रपात देखते ही बनता हैं। रजत प्रपात, आयरेन पूल, जटाशंकर मंदिर, सुंदर कुड, पांडव गुफाएं, धूपगढ़ भी पर्यटकों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करता हैं। धुआंधार फाल्स में पानी एक बड़े झरने के रूप में गिरता हैं। पचमढ़ी का निकटतम रेल्वे स्टेशन पिपरिया में है। जहां भोपाल और पिपरिया से सड़क मार्ग द्वारा भी जाया जा सकता हैं।
भीमबेटका: भोपाल से 46 किमी की दूरी पर स्थित है इस पर्यटन स्थल की विशेषता चट्टानों पर हजारों वर्ष पूर्व बनी चित्रकारी एवं करीब 500 गुफाएं हैं। यहां प्राकृतिक लाल और सफेद रंगों से वन्यप्राणियों के शिकार दृष्यों के अलावा घोड़े, हाथी, बाघ आदि चित्र उकेरे गए हैं। भोपाल से नजदीकी के कारण भीमबेटका में रुकने के साधन नहीं हैं। जहां सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता हैं।
भोपाल: मध्यप्रदेश की राजधानी होने के साथ ही ताल-तलैयों के कारण पर्यटन के क्षेत्र में अपना अलग ही स्थान रखता हैं। राजा भोज द्वारा बनवाया गया बड़ा तालाब, लक्ष्मीनारायण मंदिर, झिरनो मंदिर, गुफा मंदिर, मनुआभान की टेकरी, केहरी महादेव मंदिर, सेन्ट्रल लायबे्ररी, प्राचीन दरवाजे, एशिया की सबसे बड़ी ताजुल मस्जिद, जामा मस्जिद, मोती मस्जिद, र्कफ्यू वाली देवी का मंदिर, काली मंदिर, सदर मंजिल, गौहर महल, कमला पार्क, किलोल, वर्धमान पार्क, सन सेट, वन बिहार, केरवा, कलियासोत, हलाली डेम, मयूर पार्क, बीएचईएल, आदि देखने लायक स्थल हैं। भोपाल नए एवं पुराने शहर के नाम से भी जाना जाता हैं। देश के सभी स्थानों से भोपाल वायुयान, रेल अथवा सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता हैं। यहां रुकने के पर्याप्त इंतजाम है। बड़े तालाब के मध्य एक दरगाह भी स्थित हैं। जहां वोट क्लब से अथवा शीतलदास की बगिया स्थित घाट से नाव द्वारा नौका बिहार भी किया जा सकता हैं। यहां उपनगर के बैरसिया में तरावली स्थित हरसिद्धी का मंदिर भी है जिसके बारे में उक्ति है कि राजा विक्रमादित्य द्वारा बनारस से उज्जैन ले जाते समय देवी की शर्त के अनुसार रातभर में वह उज्जैन नहीं ले जा सके और देवी वहीं रूक गई जहां आज मंदिर स्थापित हैं। एक अन्य उपनगर के रूम में कोलार भी बहुत तेजी से विकसित होकर राजधानी का मुख्य केन्द्र बनने लगा हैं।
बांधवगढ़: बांधवगढ़ का इतिहास काफी रोचक है। यह लंबे समय से राजशाहों का पसंदीदा शिकारगाह रहा हैं। बांधवगढ़ का प्रमुख आकर्षण यहां जंगली जीवन, बाधवगढ़ नेशनल पार्क का शेर से लेकर चीतल, नील गाय, चिंकारा, बारहंसिगा, भौंकने वाले हिरण, साभर, जंगली बिल्ली, भैंसे से लेकर 22 प्रजातियों के स्तनपायी जीव और 250 प्रजातियों के पक्षियों का रैन बसैरा हैं। चार सौ अड़तालीस स्कवायर किमी में फेला बाधवगढ़ भारत के नेशनल पार्कों में अपना प्रमुख स्थान रखता हैं। यहा जाते समय भड़कीले कपड़ों से बचते हुए काटन के वस्त्र पहनकर जाना चाहिए एवं गरम कपड़े अपने साथ ले जाना नहीं भूलें वन संपदा को नुकसान न पहुंचाये एवं गाईड द्वारा दी गई सलाहों को न नकारें। शिकार करने का विचार मन में भी न लायें। 2 हजार साल पुराना पहाड़ी पर बना किला, भी देखने लायक स्थल हैं। बाधवगढ़ रीवा के शहडोल जिले में स्थित हैं। रीवा म.प्र. का प्रमुख नगर होने के कारण भारत के मध्य में स्थित हैं। यहां आवागमन के सभी पर्याप्त साधन देश भर से उपलब्ध हैं। नजदीकी हवाई अड्डा जबलपुर में हैं। रेल मार्ग से भी जबलपुर, कटनी, सतना से जुड़ा हुआ हैं। खजुराहो से बांधवगढ़ के बीच 237 किमी दूरी हैं। दोनों स्थानों के मध्य क्रोकोडाइल रिजर्व घोषित नदी हैं।
ताल-तलैयों से घिरा भोपाल का नेशनल पार्क
मध्यप्रदेश की राजधानी का नाम सुनते ही यहां की गौरव ताल-तलैयों, शैल-शिखरों की याद आना लाजिमी हैं। जहां भोपाल ने राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट हाकी सहित देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद तक पर अपनी छाप छोड़ी वहीं राष्ट्रीय उद्यानों के क्षेत्र में भी किसी से कम नहीं हैं। यहां बना नेशनल पार्क को थी्र-इन-वन कहना कोई अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा।
ऐसा सुन्दर उद्यान नेशनल पार्क होने के साथ-साथ चिड़िया घर (जू) तथा जंगली जानवरों का बचाव केन्द्र भी है। 445 हैक्टेयर में फैले इस नेशनल पार्क में मिलने वाले जानवरों को जंगल से पकड़कर नहीं लाया गया हैं। यहां जो जानवर हैं वे लावारिस, कमजोर, रोगी, घायल या बूढ़े थे अथवा जंगलों से भटकककर ग्रामीण शहरी क्षेत्रों में आ गये थे तथा उनका बाद में आशियाना यहां बनाया गया।
अन्य संग्रहालयों या फिर सर्कसों से भी कुछ जानवर यहा लाए गए हैं। लगभग पाॅच किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य द्वार मुख्यमंत्री निवास के निकट से होकर भदभदा की ओर जाता हैं। उद्यान के चारों ओर हरियाली बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेती हैं। शैल-शिखरों से घीरे उक्त उद्यान के पास ही परमारवंशीय राजा भोज द्वारा र्निमित भोपाल का बड़ा तालाब है जिसके बारे में उक्ति है कि तालों में भोपाल ताल बाकी सब तलैया, रानियों में कमलाबती बाकी सब प्रचलन में हैं।
वनबिहार के नाम से ख्यात उक्त उद्यान के आसपास सांस्कृतिक कला का केन्द्र भारत भवन, वोट क्लब, मानव संग्रहालय, कमला पार्क, केरवा डेम, कमला पार्क, दूरदर्शन सहित अनेक ऐसे स्थानों से घिरा हुआ भोपाल नेषनल पार्क को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा 18 जनवरी 1983 में प्राप्त हुआ था। यूं तो प्रदेश के ग्वालियर, इंदौर में भी स्माल चिड़ियाघर हैं जिनकी देखरेख नगर निगमों द्वारा की जाती हैं।
भोपाल नेषनल पार्क में प्रवेश करने से पूर्व यह अनुभव भी नहीं कर सकते की आप किसी जंगल की सैर करने जा रहे हैं। रामू गेट से चीकू गेट तक की लगभग पाच किलोमीटर की दूरी आप ऐसे तय करेंगे कि आपको अहसास ही नहीं होगा कि आप किसी ऐसे अद्भुत स्थल की सैर कर रहे हैं जहां एक ओर जंगली जानवरों भालू, शेर, हिमालयी भालू, तेुदुए और बाघ के बाड़े आते हैं तो दूसरी ओर तालाब से आ रही ठंडी हवाएं और जल की तरंगे मनोहारी लगती है कि आप भोपाल नेशनल उद्यान को अंतिम समय तक भूल नहीं सकते। गर्मी के दिनों में प्रवासी पक्षी भी इसी जगह पर आकर सुकून का अनुभव करते हैं। यहाॅ कि विषेषता यह है कि आप पैदल ही पाच किलोमीटर का दायरा कैफे का स्वादिष्ट भोजन, नस्ता करते हुए समझ ही नहीं सकते की आपने आने जाने में इतनी अधिक दूरी कैसे तय कर ली।
भोपाल वन विहार तक पहुंचने के लिए देश के लगभग सभी स्थानों से हवाई, रेल एवं बस सेवा उपलब्ध हैं। यहीं से टेक्सियांे के द्वारा, पैदल अथवा साईकिल से आप वन विहार के मनमोहक दृष्य को अपने जेहन में बिठा सकते हैं। यहा का बिड़ला मंदिर, गुफा मंदिर, कफर््यू वाली माता का मंदिर, कालीघाट, मनुआभान की टेकरी, एशिया की सबसे बड़ी ताजुल मस्जिद, गंगा-जमुनी तहजीब की प्रतीक जामा मस्जिद, प्राचीन कमला पार्क, छोटा तालाब, मोतिया तालाब, ताजमहल, लोकप्रियता के शिखर पर अपनी अलग ही छाप छोड़ते हैं। लेकिन भोपाल का श्मशान घाट भी किसी पर्यटन स्थल से कम नहीं हैं। ताजुल मस्जिद में प्रतिवर्ष लगने वाले इज्तिमा जिसमें विश्व के सभी देशों से लोग आकर सम्मिलित होते हैं।
भोपाल के आसपास के लगभग सौ किलोमीटर क्षेत्रों में सलकनपुर, भोजपुर, तरावली, सीहोर के सिद्ध गणेश, साची, होशगाबाद, रायेसन मार्ग पर स्थित कंकाली देवी का मंदिर (जो देश में एकमात्र कृष्ण मुद्रा काली का मंदिर हैं), केहरी महादेव अर्थात शेरोवाले महादेव सहित कदम-कदम पर ऐसे स्थल विकसित है कि आप की भोपाल से जाने की इच्छा ही नहीं होगी।
भोपाल का पान खाना नहीं भूले क्योंकि यह अपनी विशिष्टता के लिए देश में अपना स्थान रखता हैं। विश्व की सबसे बड़ी औधोयगिक गैस त्रासदी झेल चुके इस शहर के बारे में कहा जा सकता है कि ‘सारे पर्यटन बार-बार भोपाल पर्यटन एकबार।’ आपको यहां पर रुकने को विवश कर देगा। यहा की हिन्दू-मुस्लिम तहजीब देखते ही बनती हैं।
भोपाल के निकट भीमबेटका
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से मात्र 40 किलामीटर की दूरी पर स्थित है भीमबेटका की हजारों साल पुरानी गुफाएं। आदिपुरुष एवं जीवों के विभिन्न रूपों में अनेक प्रकार के प्राचीन चित्र होने के साथ ही आदिमानव द्वारा निर्मित भीत्ती चित्रों की दुर्लभ श्रंृखला देखते ही बनती है। यहा पिकनिक के लिए उपयुक्त स्थान है। यहां पुरातत्व का अथाह खजाना भरा पड़ा हैं। सैलानी यहां सदैव आते-जाते रहते हैं। भोपाल-होशगाबाद रोड पर स्थित उक्त स्थल पर आवागमन 24 घण्टे उपलब्ध रहता हैं।
पर्यटन में अलग ही पहचान रखता हैं मांडू
मध्यप्रदेश में यों तो पर्यटन स्थलों का अथाह भंडार है किन्तु उनमें भी मांडू अपनी विशिष्टता के लिए अपना अलग ही स्थान रखता है। कहने वाले इसे खंडहरों के गांव के नाम से भी संबोधित करते हैं परंतु इन खंडहरों के बोलते पत्थर हमें इतिहास के कथा बयां करते है जिसमें रानी रूपमती और बादशाह बाज बहादुर के अमर प्रेम और मांडू के शासकों की विशाल समृद्ध विरासत व शानो-शोकत के साथ ही हरियाली से आच्छादित पर्यटको का स्वागत करते जहां के प्राचीन दरवाजे। धुमावदार रास्तों के साथ ही सीताफलों से लबालब भरे पेड़, कमलगटे, इमली के विषाल वृक्ष बरबस ही पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करे बिना नहीं रहते।
विंध्याचल की पहाड़ियों पर लगभग दो हजार फीट की ऊचाई पर स्थित मांडू जिसे मांडवगढ़ के नाम से भी जाना जाता है हिंडोला महल, रानी रूपमती का महल, जहाज महल, जामा मस्जिद, अशरफी महल, जैन धर्म का 1472 ई. की पाश्र्वनाथ की श्वेत पद्मासन प्रतिमा देखने योग्य है। नीलकंठ महल की दीवारों पर अकबरकालीन कला की नक्काशी भी देखने योग्य हैं। अन्य स्थलों में हाथी महल, दरियाखान की मजार, दाई का महल, दाई की छोटी बहन का महल, मलिक मघत की मस्जिद और जाली महल भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करताी है।
यहां मई ओर जून में गर्मी अधिक पड़ने के कारण जाना उचित नहीं हैं। जुलाई से मार्च तक यहां सैलानियों का जमघट लगा रहता है। यहीं एक रेवा कुंड का निर्माण बादशाह बाजबहादुर ने अपनी पे्रमिका रानी रूपमती के महल में पानी की प्र्याप्त व्यवस्था के स्त्रोत के रूप में करवाया था।
मांडू में 12 प्रवेश द्वारा 45 किलोमीटर की परिधी में निर्मित हैं। जिनमें ‘दिल्ली दरवाजा प्रमुख हैं। शैैल और चट्टानों से सराबोर मांडू के बारे में यह जानना आवष्यक है कि मालवा के राजपूत परमार षासक भी बाहरी आक्रमण से अपनी रक्षा के लिए मांडू को ही सबसे सुरक्षित जगह मानते थे।
मांडू में देवादिदेव नीलकंठ शिवजी का मंदिर है जिसमें जाने के लिए अंदर सीढ़ी उतरना पड़ता है। इस मंदिर के सौन्दर्य और पेड़ों से घिरे तालाब से एक धार नीचे शिवजी का अभिषेक करती हुई प्रतीत होती है।
धार से लगभग 33 और इंदौर से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित मांडवगढ़ (मांडू) पहुंचने के लिए इंदौर व रतलाम निकट के रेल्वे स्टेषन है। बसों से भी मांडू जाया जा सकता है।
भोजपुर : वास्तुकला का अनुपम संगम
मध्यप्रदेश की गंगाजमुनी तहजीव से परिपूर्ण राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर दूर 11 वीं सदी के परमारवंशीय राजा भोज प्रथम (ईस्वी 1010-1035) द्वारा बेतवा नदी के किनारे बना उच्च कोटि की वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है भोजपुर, जिसे भोजेष्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्यटन स्थल पर स्थापित मंदिर की विशालता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि इसका चबूतरा 35 मीटर लंबा, 25 मीटर चैड़ा और 4 मीटर ऊंचा है। भारी भरकम पत्थरों से बना यह चबूतरा अपने आप में अद्वितीय है। हजारों टनों की वजनदार अनेक पत्थरों को इस चबूतरे पर चढ़ाकर मंदिर के गर्भगृह का निर्माण किया गया है। मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग देश का सबसे ऊंचा शिवलिंग है 26 फीट ऊंचाई के गढ़े हुए गौरी पट्ट पर स्थित षिवलिंग की ऊंचाई साढ़े सात फीट तथा उसकी परिधि 18 फीट है। शिव भक्त ने उक्त मंदिर का निर्माण अपने पिता की स्मृति में करवाया था जिसका डिजाइन ‘स्वर्गारोहणप्रसाद कहलाता है।
मंदिर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर जैन मंदिर है। जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं है। 20 फीट ऊंची भगवान महावीर स्थापित है। यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। लेकिन महाशिवरात्रि, सावन मास एवं अन्य त्यौहारों पर यहां लगने वाले मैलों में दूरदराज के गांवों से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या देखते ही बनती है।
यहां पहुंचने के लिए आवगमन के अनेक साधन उपलब्ध है। यहां देश के किसी भी कोने से हवाई या रेलमार्ग द्वारा भोपाल पहुंच सकते हैं। भोपाल से होषंगाबाद रोड, या मंडीदीप की बस में बैठकर भोजपुर उतरें। एवं वहां से मंदिर पैदल चलें। मंदिर की 5 किलोमीटर परिधि में ठहरने का कोई स्थान नहीं हैं अतः भोपाल ही ठहरने के लिए उपयुक्त स्थान है।
पर्यटकों की आस्था का केन्द्र है खजुराहो
एक हजार वर्ष पूर्व स्थापित खजुराहों की गणना विश्व विख्यात पर्यटन स्थलों के रूप् में होती है। जहां आने वाले पर्यटक यहां स्थापित भारतीय कला के अद्भुत संगम को देख कर आंखों तले उंगली दबाने से अपने को नहीं रोक पाते। यहां स्थापित मंदिरों की दीवारों पर उभेरी देवी-देवताओं की विभिन्न मुद्राओं की प्रतिमाए्र भारतीय कला का अद्वितीय संगम प्रदर्शित करती है। यहां काममुद्रा में मग्न देवताओं की मूर्तियां सौंदर्य और प्यार की प्रतीक होने से खजुराहों को प्यार का प्रतीक पर्यटन स्थल कहना भी कोई अनुचित नहीं होगा। ज्ञात हो कि प्यार के साक्षी इन मंदिरों में प्रतिवर्ष असंख्य जोड़े अपने विवाह की शुरूआत करते हैं।
खजुराहों पहुंचने के लिए देष के किसी भी कोने से रेल, बस, हवाई जहाज से पहुचा जा सकता है। पर्यटन निगम, एवं ट्रेवल्स एजेन्सियां भी यहां आसानी से अपनी सशुल्क सेवाएं यहां आने वाले लाखों पर्यटकों को दे रहे हैं एवं रुकने के भी साधन पर्याप्त मात्रा में हैं। यहां के प्रमुख मंदिरों में मंदिर कंडरिया महादेव, योगिनी, कालीजी, जगदंबा चित्रगुप्त, विश्वनाथ मटंगेश्वर महादेव, जैन तीर्थकर भगवान पाश्र्वनाथ, आदिनाथ एवं घाटी मंदिर स्थापित हैं। प्रतिमाओं की पौराणिकता बनाये रखने की दृष्टि से पूजार्चना केवल ममटंगेश्वर मंदिर में ही की जा सकती है।
खजुराहों तो अद्भुत है ही साथ ही आपकी यात्रा के आसपास भी अनेक दर्शनीय स्थान हैं जो आपकी यात्रा को पूर्णता प्रदान करते है इनमें राजगढ़ पैलेस, रंगून झाील, पन्ना राष्ट्रीय उद्यान एवं हीरे की खदाने उल्लेखनीय है।
मप्र में है विश्वप्रसिद्ध ‘प्रेम का मंदिर’
खजुराहो, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विलक्षण ग्रामीण परिवेश के कारण भारत ही नहीं पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह भारत के ह्दय स्थल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश राज्य का प्रमुख सांस्कृतिक नगर है। यह मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है।
खजुराहो में स्थित मंदिर पूरे विश्व में आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। यहां स्थित सभी मंदिर पूरी दुनिया को भारत की ओर से प्रेम के अनूठे उपहार हैं, साथ ही एक विकसित और परिपक्व सभ्यता का प्रमाण है। खजुराहो में स्थित मंदिरों का निर्माण काल ईसा के बाद 950 से 1050 के मध्य का माना जाता है। इनका निर्माण चंदेल वंश के शासनकाल में हुआ।
ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में किसी समय खजूर के पेड़ों की भरमार थी। इसलिए इस स्थान का नाम खजुराहो हुआ। मध्यकाल में यह मंदिर भारतीय वास्तुकला का प्रमुख केन्द्र माने जाते थे। वास्तव में यहां 85 मंदिरों का निर्माण किया गया था, किंतु कालान्तर में मात्र 22 ही शेष रह गए।
खजुराहो में स्थित सभी मंदिरों का निर्माण लगभग 100 वर्षों की छोटी अवधि में होना रचनात्मकता का अद्भूत प्रमाण है। किंतु चंदेल वंश के पतन के बाद यह मंदिर उपेक्षित हुए और प्राकृतिक दुष्प्रभावों से जीर्ण-शीर्ण हुए। परंतु इस सदी में ही इन मंदिरों को फिर से खोजा गया, उनका संरक्षण किया गया और वास्तुकला के इस सुंदरतम पक्ष को दुनिया के सामने लाया गया।
इन मंदिरों के भित्ति चित्र चंदेल वंश की जीवन शैली और काल को दर्शाने के साथ ही काम कला के उत्सवी पक्ष को प्रस्तुत करते है। मंदिरों पर निर्मित यह भित्ति चित्र चंदेल राजपूतों के असाधारण दर्शन और विकसित विचारों को ही प्रस्तुत नहीं करती वरन वास्तुकला के कलाकारों की कुशलता और विशेषज्ञता का सुंदर नमूना है।
चंदेल शासकों द्वारा निर्मित यह मंदिर अपने काल की वास्तुकला शैली में सर्वश्रेष्ठ थे। इन मंदिरों में जीवन के चार पुरुषार्थों में एक काम कला के विभिन्न मुद्राओं को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रतिमाओं के माध्यम से दर्शाया गया है।
प्राचीन मान्यताएं
खजूराहो के मंदिरों का निर्माण करने वाले चंदेल शासकों को चंद्रवंशी माना जाता है यानि इस वंश की उत्पत्ति चंद्रदेव से माना जाता है। इस वंश की उत्पत्ति के पीछे किवदंती है कि एक ब्राह्मण की कन्या हेमवती को स्नान करते हुए देखकर चंद्रदेव उस पर मोहित हो गए।
हेमवती और चंद्रदेव के मिलन से एक पुत्र चंद्रवर्मन का जन्म हुआ। जिसे मानव और देवता दोनों का अंश माना गया। किंतु बिना विवाह के संतान पैदा होने पर समाज से प्रताडि़त होकर हेमवती ने जंगल में शरण ली। जहां उसने पुत्र चन्दवर्मन के लिए माता और गुरु दोनों ही भूमिका का निर्वहन किया।
चन्द्रवर्मन ने युवा होने पर चंदेल वंश की स्थापना की। चन्द्रवर्मन ने राजा बनने पर अपनी माता के उस सपने का पूरा किया, जिसके अनुसार ऐसे मंदिरों का निर्माण करना था जो मानव की सभी भावनाओं, छुपी इच्छाओं, वासनाओं और कामनाओं को उजागर करे। तब चंद्रवर्मन ने खजुराहों के पहले मंदिर का निर्माण किया और बाद में उनके उत्तराधिकारियों ने शेष मंदिरों का निर्माण किया।
एक अवधारणा यह भी है कि खजुराहो के मंदिरों में काम कला को प्रदर्शित करती मूर्तियां और मंदिरों के पीछे की विशेष उद्देश्य था। उस काल में हिन्दू मान्यताओं के अनुरुप बालक ब्रह्मचारी बनकर ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन करता था। तब इस अवस्था में उस बालक के लिए वयस्क होने पर गृहस्थाश्रम के कर्तव्यों और लौकिक जीवन में अपनी भूमिका को जानने के लिए यह मूर्तियां और भित्तिचित्र ही श्रेष्ठ माध्यम थे।
खजुराहों में स्थित मंदिर में का निर्माण ऊंचे चबूतरे पर किया गया है। मंदिरों का निर्माण इस तरह से किया गया है, सभी सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित रहें। हर मंदिर में अद्र्धमंडप, मंडप और गर्भगृह बना है। सभी मंदिर तीन दिशाओं पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशा में समूहों में स्थित है। अनेक मंदिरों में गर्भगृह के बाहर तथा दीवारों पर मूर्तियों की पक्तियां हैं। जिनमें देवी-देवताओं की मूर्तियां, आलिंगन करते नर-नारी, नाग, शार्दूल और शाल-भंजिका पशु-पक्षियों की सुंदरतम पाषाण प्रतिमाएं उकेरी गई है।
यह प्रतिमाएं मानव जीवन से जुडें सभी भावों आनंद, उमंग, वासना, दु:ख, नृत्य, संगीत और उनकी मुद्राओं को दर्शाती है। यह शिल्पकला का जीवंत उदाहरण है। कुशल शिल्पियों द्वारा पाषाण में उकेरी गई प्रतिमाओं में अप्सराओं, सुंदरियों को खजुराहों में निर्मित मंदिरों के प्राण माना जाता है। क्योंकि शिल्पियों ने कठोर पत्थरों में भी ऐसी मांसलता और सौंदर्य उभारा है कि देखने वालों की नजरें उन प्रतिमाओं पर टिक जाती हैं। जिनको देखने पर मन में कहीं भी अश्लील भाव पैदा नहीं होता, बल्कि यह तो कला, सौंदर्य और वासना के सुंदर और कोमल पक्ष को दर्शाती है।
शिल्पकारों ने पाषाण प्रतिमाओं के चेहरे पर शिल्प कला से ऐसे भाव पैदा किए कि यह पाषाण प्रतिमाएं होते हुए भी जीवंत प्रतीत होती हैं। खजुराहो में मंदिर अद़भुत और मोहित करने वाली पाषाण प्रतिमाओं के केन्द्र होने के साथ ही देव स्थान भी है। इनमें कंडारिया मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, चौंसठ योगिनी, चित्रगुप्त मंदिर, मतंगेश्वर मंदिर, चतुर्भूज मंदिर, पाश्र्वनाथ मंदिर और आदिनाथ मंदिर प्रमुख है। इस प्रकार यह मंदिर अध्यात्म अनुभव के साथ-साथ लौकिक जीवन से जुड़ा ज्ञान पाने का भी संगम स्थल है।एजेन्सी।