स्वप्निल संसार। राजेंद्र कुमार तुली का जन्म हुआ था 20 जुलाई 1929 को पश्चिम पंजाब के शहर स्यालकोट (अब पाकिस्तान) मे । राजेंद्र कुमार बॉलीवुड के कुछ सबसे जयादा कामयाब अभिनेताओं मे से एक हैं। राजेन्द्र कुमार 1960 और 1970 के दशक की फिल्मों उन्होंने काम किया । फिल्मों मे अभिनय करने के अलावा उन्होने कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया जिनमे उनके पुत्र कुमार गौरव ने काम किया। स्यालकोट से बम्बई (मुंबई) तक का सफर उन्होंने उस घड़ी को बेचकर पूरा किया जो इनके वालिद ने दी थी,महज 21 साल की उम्र में फिल्म ‘जोगन’(1950 ) में काम किया, बतौर हीरो इनकी पहली फिल्म थी “गूंज उठी शहनाई’ (1959) 1950 और 1959 के बीच राजेंद्र कुमार ने वचन (1955)तूफ़ान और दीया (1956) आवाज़ (1956) एक झलक (1957) मदर इंडिया (1957) तलाक (1958)खजांची (1958) घर संसार (1958) देवर भाभी ,संतान (1959) में काम किया पर मदर इंडिया (1957) के किरदार :रामू से उन्हें पहचाना जाने लगा और तभी ही उनकी दोस्ती हुई थी सुनील दत्त से जो बाद में रिश्तेदारी में बदल गयी,धूल का फूल (1959), दिल एक मंदिर (1963), मेरे महबूब (1963), संगम (1964), आरजू (1965), प्यार का सागर , गहरा दाग ‘, सूरज (1966) and तलाश 1969 ,गीत (1970 )उनकी जुबली फ़िल्में थी ,कई फ़िल्में के सिल्वर जुबली करने की वज़ह से उन्हें जुबली कुमार भी कहा जाता था ,अपने दौर के लगभग हर नायिका के साथ उन्होंने काम किया ,राजेंद्र कुमार को फिल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में तीन बार नामांकन मिला, हालांकि उन्हें कभी यह पुरस्कार नहीं मिल पाया, दिल एक मंदिर (1963), आई मिलन की बेला (1964), संगम (1964)आरजू (1965), में बेहतरीन काम करने के बावजूद वो अवार्ड नहीं हासिल कर सके.संगम (1964) और मेरा नाम जोकर (1970 ) सिर्फ इसलिए की क्योंकि उनकी दोस्ती थी राज कपूर से राज कपूर अपनी बेटी की शादी राजेंद्र कुमार के बेटे कुमार गौरव से शादी करना चाहते थे पर कुमार गौरव ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ अपने पिता के दोस्त सुनील दत्त की बेटी नम्रता दत्त से शादी कर ली. राजेंद्र कुमार ने 1980 के दशक में अपने बेटे कुमार गौरव को फिल्म लव स्टोरी से अभिनय की दुनियां में उतारा.यह फिल्म काफी सफल रही, लेकिन गौरव लंबे समय तक कामयाब नहीं रहे, दिलीप कुमार, देव आनंद और राजकपूर की त्रिमूर्ती की बीच राजेंद्र कुमार ने अपनी जगह बनाई थी 1970 के दशक में राजेन्द्र कुमार के सिंहासन को राजेश खन्ना ने हिला दिया था,तब रूमानी और सामाजिक फिल्मों के किंग माने जाते थे राजेंद्र कुमार.राजेंद्र कुमार एक नेक दिल इंसान थे कई लोगों की उन्हें मदद की,भाई नरेश कुमार को निर्माता के रूप में मौका दिया,जीजा ओम प्रकाश रल्हन (फूल और पत्थर), (तलाश) की मदद की. फ़िल्मी दुनिया में विवाद भी ज़रूरी हैं,शादी शुदा हीरो राजेंद्र कुमार जो तीन बच्चों के बाप बन चुके थे ‘आई मिलन की बेला'(1964)इस फिल्म में विलन थे धर्मेन्द्र,फिल्म की नायिका थी सायरा बानू यही से चर्चे शुरू हो गये थे राजेंद्र-सायरा के रोमांस के ‘अमन’ और ‘झुक गया आसमान’ में यह प्यार दिखाई भी दिया था, के. आसिफ की फिल्म ‘सस्ता खून, महँगा पानी’ में भी इस जोड़ी को लिया गया हालाकी यह फिल्म नहीं बन सकी थी.राजेंद्र-सायरा के रोमांस के किस्से फ़िल्मी किताबों में छपने लगे,जुबली कुमार की पत्नी शुक्ला, जो तीन बच्चों की माँ बन चुकी थीं परेशान हो गयी थी, तब के मोस्ट इलिजिबल बैचलर’ दिलीप कुमार ने सायरा को शादीशुदा और बाल-बच्चेदार राजेंद्र कुमार से दूर रहने के लिए समझाया सायरा की माँ नसीम बानू भी इस रिश्ते से खुश नहीं थी,11 अक्टूबर 1966 को 25 साल की सायरा बानो की शादी 44 साल के दिलीप कुमार से हो गई थी,इसके बाद राजेंद्र कुमार का नाम किसी और हेरोइन के साथ नहीं जुडा. उनकी आख़िरी फिल्म थी अर्थ जो 1998 में रिलीज़ हुई थी.राजेंद्र कुमार को वर्ष 1969 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. जीवन के आखिरी दिनों में वह कैंसर की चपेट में आ गए. 12 जुलाई, 1999 को भारतीय सिनेमा जगत के इस महान अभिनेता का निधन हो गया उनके 70 वे जन्मदिन 20 जुलाई से आठ दिन पहले. आशीर्वाद बंगला इन्ही का कभी हुआ करता था, जिसको खरीदकर उसे राजेश खन्ना ने अपना आशियाना बनाया था .