वाराहगिरि वेंकट गिरि भारत के चौथे राष्ट्रपति थे। वी. वी. गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति के अतिरिक्त उपराष्ट्रपति, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, केरल के राज्यपाल और कर्नाटक के राज्यपाल भी रहे।
‘वाराहगिरि वेंकट गिरि’ का जन्म 10 अगस्त, 1894 को बेहरामपुर, ओड़िशा में हुआ था। इनका संबंध तेलुगु भाषी ब्राह्मण परिवार से था। वी. वी. गिरि के पिता वी. वी. जोगिआह पंतुलु, बेहरामपुर के लोकप्रिय वकील और स्थानीय बार काउंसिल के नेता भी थे। वी. वी. गिरि की प्रारंभिक शिक्षा इनके गृहनगर बेहरामपुर में ही संपन्न हुई। इसके बाद यह ‘डब्लिन यूनिवर्सिटी’ में क़ानून की पढ़ाई करने के लिए आयरलैंड चले गए। वहाँ वह डी वलेरा जैसे प्रसिद्ध ब्रिटिश विद्रोही के संपर्क में आने और उनसे प्रभावित होने के बाद आयरलैंड की स्वतंत्रता के लिए चल रहे ‘सिन फीन आंदोलन’ से जुड़ गए। परिणामस्वरूप आयरलैंड से उन्हें निष्कासित कर दिया गया। प्रथम विश्व युद्ध के समय 1916 में वी. वी. गिरि वापस भारत लौट आए। भारत लौटने के तुरंत बाद वह ‘श्रमिक आन्दोलन’ से जुड़ गए। इतना ही नहीं रेलवे कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से उन्होंने बंगाल-नागपुर रेलवे एसोसिएशन की भी स्थापना की।
1916 में भारत लौटने के बाद वी. वी. गिरि श्रमिक और मज़दूरों के चल रहे आंदोलन का हिस्सा बन गए थे। हालांकि उनका राजनीतिक सफ़र आयरलैंड में पढ़ाई के दौरान ही शुरू हो गया था, लेकिन ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ का हिस्सा बनकर वह पूर्ण रूप से स्वतंत्रता के लिए सक्रिय हो गए। वी. वी. गिरि ‘अखिल भारतीय रेलवे कर्मचारी संघ’ और ‘अखिल भारतीय व्यापार संघ’ (कांग्रेस) के अध्यक्ष भी रहे। 1934 में वह इम्पीरियल विधानसभा के भी सदस्य नियुक्त हुए। 1937 में मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के आम चुनावों में वी. वी. गिरि को कॉग्रेस प्रत्याशी के रूप में बोबली में स्थानीय राजा के विरुद्ध उतारा गया, जिसमें उन्हें विजय प्राप्त हुई। 1937 में मद्रास प्रेसिडेंसी में कांग्रेस पार्टी के लिए बनाए गए ‘श्रम एवं उद्योग मंत्रालय’ में मंत्री नियुक्त किए गए। 1942 में जब कांग्रेस ने इस मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया, तो वी. वी. गिरि भी वापस श्रमिकों के लिए चल रहे आंदोलनों में लौट आए।
अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ चल रहे ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए, अंग्रेज़ों द्वारा इन्हें जेल भेज दिया गया। 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद वह सिलोन में भारत के उच्चायुक्त नियुक्त किए गए। सन 1952 में वह पाठापटनम सीट से लोकसभा का चुनाव जीत संसद पहुंचे। सन 1954 तक वह श्रममंत्री के तौर पर अपनी सेवाएँ देते रहे। वी. वी. गिरि उत्तर प्रदेश, केरल, मैसूर में राज्यपाल भी नियुक्त किए गए थे। वी. वी. गिरि सन 1967 में ज़ाकिर हुसैन के काल में भारत के उपराष्ट्रपति भी रह चुके थे। इसके अलावा जब ज़ाकिर हुसैन के निधन के समय भारत के राष्ट्रपति का पद ख़ाली रह गया, तो वाराहगिरि वेंकटगिरि को कार्यवाहक राष्ट्रपति का स्थान दिया गया। 1969 में जब राष्ट्रपति के चुनाव आए तो इन्दिरा गांधी के समर्थन से वी. वी. गिरि देश के चौथे राष्ट्रपति बनाए गए।
24 अगस्त, 1969 को वी. वी. गिरि ने भारत के चौथे राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली। इंदिरा गांधी ने वी. वी. गिरि के निर्वाचन के लिए तब कांग्रेसियों को अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट करने के लिए कहा था। वी. वी गिरि को 50.2 प्रतिशत वोट मिले थे और लगभग नगण्य अंतर से ही वह जीत पाये थे। उनके विरुद्ध नीलम संजीवा रेड्डी चुनाव मैदान में थे। यदि रेड्डी जीते गये होते तो इंदिरा गांधी और वी. वी. गिरि की तकदीर की तस्वीर ही दूसरी हो सकती थी। इसलिए वस्तुस्थिति को समझकर गिरि इंदिरा गांधी के प्रति आभारी रहे तो इसमें गलत तो कुछ हो सकता है, पर निंदनीय नहीं। 24 अगस्त, 1974 को इन्होंने राष्ट्रपति पद छोड़ा। उसी दिन डाक विभाग ने इनके सम्मान में 25 पैसे का नया डाक टिकट जारी किया था। वे एक विदेशी शिक्षा प्राप्त विधिवेत्ता, सफल छात्र नेता, अतुलनीय श्रमिक नेता, निर्भीक स्वतंत्रता सैनानी, एक जेल यात्री, एक प्रमुख वक्ता, एक त्यागी पुरुष थे, जिसने केन्द्रीय मंत्री पद को त्याग दिया था, अपने सिद्घांतों पर अडिग रहने वाले वे नैष्ठिक पुरुष थे।
वाराहगिरि वेंकटगिरि को श्रमिकों के उत्थान और देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया। 85 वर्ष की आयु में वाराहगिरि वेंकट गिरि का 23 जून, 1980 को मद्रास में निधन हो गया।