‘विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस’ विश्व में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य के सहयोगात्मक प्रयासों को संगठित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य संघ (वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ) ने विश्व के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को यथार्थवादी बनाने के लिए 1992 में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की स्थापना की थी।
मानसिक विकार विश्व में रुग्ण-स्वास्थ्य और विकलांगता उत्पन्न करने वाला प्रमुख कारण हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार 450 मिलियन लोग वैश्विक स्तर पर मानसिक विकार से पीड़ित हैं। विश्व में चार व्यक्तियों में से एक व्यक्ति जीवन के किसी मोड़ पर मानसिक विकार या तंत्रिका संबंधी विकारों से प्रभावित है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित दस से उन्नीस वर्ष की उम्र के व्यक्तियों की वैश्विक रोग भार में सौलह प्रतिशत हिस्सेदारी है।
किशोरावस्था और वयस्कता के शुरुआती वर्ष जीवन का वह समय होता है, जब कई बदलाव होते हैं, उदाहरण के लिए स्कूल बदलना, घर छोड़ना तथा कॉलेज, विश्वविद्यालय या नई नौकरी शुरू करना। कई लोगों के लिए ये रोमांचक समय होता हैं तथा कुछ मामलों में यह तनाव और शंका का समय हो सकता है। कई लाभों के साथ ऑनलाइन प्रौद्योगिकियों का बढ़ता उपयोग इस आयु वर्ग के लोगों के लिए अतिरिक्त दबाव भी लाया है, हालांकि यदि इसे पहचाना और प्रबंधित नहीं किया जाता है, तो यह तनाव मानसिक रोग उत्पन्न कर सकता है।
वयस्कों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं:
सभी मानसिक रोगों में से आधे चौदह वर्ष की उम्र तक शुरू होते है, लेकिन अधिकांश मामले रोग की जानकारी और उपचार के बिना रह जाते है। किशोरों में रोग भार के संदर्भ में अवसाद तीसरा प्रमुख कारण है। आत्महत्या पंद्रह से उनतीस वर्षीय लोगों के बीच मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है। किशोरों में अल्कोहल और मादक पदार्थों का हानिकारक उपयोग कई देशों में एक प्रमुख समस्या है तथा यह असुरक्षित यौन संबंध या खतरनाक ड्राइविंग जैसा ज़ोखिमपूर्ण व्यवहार उत्पन्न करता है। आहार विकार भी चिंता का विषय हैं। यदि उपचार नहीं किया जाता है, तो ये स्थितियां बच्चों के विकास, शिक्षा प्राप्ति तथा उनकी जीवन अपेक्षाएँ पूरी करने और जीवन उत्पादकता की क्षमता को प्रभावित करती हैं।
बेहतर समझ से रोकथाम की शुरूआत:
भारत में लगभग 356 मिलियन लोग दस से चौबीस वर्ष की आयु के बीच हैं; भारत, लगभग तीस प्रतिशत युवा जनसंख्या के साथ युवाओं का देश है। किशोरों और वयस्कों के बीच मानसिक परेशानी की रोकथाम और प्रबंधन की शुरूआत जागरूकता बढ़ाकर और मानसिक रोग के प्रारंभिक चेतावनी संकेतों और लक्षणों को समझकर कम उम्र से की जानी चाहिए।
अभिभावक (माता-पिता) और शिक्षक घर एवं स्कूल में रोजमर्रा की चुनौतियों का मुक़ाबला करने में सहयोग के लिए बच्चों और किशोरों के जीवन कौशल निर्माण करने में मदद कर सकते हैं जैसे कि सामाजिक कौशल, समस्या सुलझाने का कौशल और आत्मविश्वास बढ़ाना। प्रयास संसाधन और सेवाएं उत्पन्न और विकसित करने पर केंद्रित होना चाहिए, जो कि वयस्कों को सशक्त और जुड़ा महसूस होने में सहयोग करता हैं। मनोवैज्ञानिक सहयोग स्कूलों और अन्य सामुदायिक स्तरों पर प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा प्रदान किया जा सकता है जो कि मानसिक स्वास्थ्य विकारों का पता लगा सकते हैं तथा उन्हें प्रबंधित कर सकते हैं। किशोरावस्था स्वास्थ्य को प्रोत्साहित और संरक्षित करने से न केवल किशोर स्वास्थ्य को, बल्कि समाज और देश को भी लाभ होता है क्योंकि इससे ‘स्वस्थ युवा’ जनबल, परिवार और समुदाय तथा समाज में अधिक योगदान करने में सक्षम बनता हैं।
मानसिक स्वास्थ्य को सहयोग करने के लिए राष्ट्रीय गतिविधियां:
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम*: भारत सरकार ने जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम-मुख्य कार्यान्वयन इकाई से सबके लिए न्यूनतम मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता और पहुंचनीयता सुनिश्चित करने के लिए 1982 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को एकीकृत करना और सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल की ओर बढ़ना है।
10 अक्टूबर 2014 को राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति की घोषणा की गयी तथा भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 लाया गया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अंतर्गत किशोरावस्था प्रजनन और यौन स्वास्थ्य कार्यक्रम (एआरएसएच) वयस्कों से संबंधित विभिन्न स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है। भारत सरकार के कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम हैं तथा राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पहलें और राष्ट्रीय योजनाएं (राष्ट्रीय सामाजिक सेवा योजना, नेहरू युवा केंद्र संगठन, राष्ट्रीय युवा नीति 2014) हैं, जो कि युवाओं के सकारात्मक विकास के लिए कार्यों की रूपरेखा तैयार करती हैं।