स्वप्निल संसार । लखनऊ । केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा की गयी नोट बन्दी के 42 दिन हो गये हैं परन्तु अभी भी सरकार की नोट बन्दी के पीछे क्या उद्देश्य है इसको लेकर न तो सरकार ही अपनी मंशा को बता पायी है और न ही लगातार बदलते हुए रिजर्व बैंक आफ इण्डिया के आदेशों से इस नोट बन्दी के फैसले के उद्देश्य स्पष्ट होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार का उद्देश्य निश्चित रूप से भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, नकली करेंसी तथा आतंकवादियों से लड़ना तो नहीं था।
कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ0 हिलाल अहमद ने मंगल वार को जारी बयान में कहा कि यदि मोदी सरकार का भ्रष्टाचार से लड़ना उद्देश्य है तेा वे लोकपाल की नियुक्ति क्यों नहीं करतेे? उन्होने आरोप लगाया है कि इस सम्पूर्ण व्यवस्था से समस्त छोटे उद्यमियों का व्यापार पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। किसान अपनी फसल, सब्जी, फल इत्यादि बाजार में बेंचने में असमर्थ है। दूसरी ओर बड़े-बड़े व्यापारिक घरानों एवं निजी वित्तीय कम्पनियों को अपार लाभ प्राप्त हो रहा है कैशलेस के नाम पर। प्रधानमंत्री जी को दीवाली के पटाखे, खिलौने एवं रोशनी की लड़ियों में तो चीन दिखाई देता है परन्तु वे जिस वित्तीय कम्पनी को लाभ पहुंचा रहे हैं(पेटीएम) उसमें उन्हें चीनी निवेश क्यों नहीं दिखता?
डॉ0 हिलाल अहमद ने कहा कि यदि भारतवर्ष के छोटे-छोटे खुदरा व्यापारियों, फल एवं सब्जी विक्रेताओं को यह मजबूर किया गया कि वे कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ें तो यह सारे के सारे छोटे-छोटे व्यापारियों के व्यापार बन्द हो जायेंगे और इनकी जगह खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश सरलतापूर्वक आ जायेगा। क्या यह पूरी नोट बन्दी की कवायद इसीलिए की गयी है?
विदेशी कम्पनियों (विशेषकर चीनी कम्पनी अलीबाबा) को लाभ पहुंचाने में मोदी सरकार इतनी अन्धी हो गयी है कि वह अपने देशवासियों को बेरोजगार कर दे रही है और उनके मुंह से रोटी छीन ले रही है। आज सम्पूर्ण ग्रामीण भारत कैश लेस हो गया है और वह अपनी दैनिक उपयोग की वस्तुओं को भी नहीं खरीद पा रहा है।
प्रवक्ता ने कहा कि मोदी सरकार की यह गरीबों के विरूद्ध नीति को देश की जनता भलीभांति समझ रही है और इसका करारा जवाब ईवीएम मशीन के द्वारा निश्चित रूप से भाजपा को देगी।