7 नवम्बर,का दिन अपने देश के महान भौतिकी वैज्ञानिक तथा 1954 में भारत रत्न से सम्मानित सर सी.वी.रमन के जन्म दिवस के रूप में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह तिथि विशेष रूप से नवीनतम विज्ञान में रुचि रखने वाले विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शोध एवं विकास का कार्य करने वाले विज्ञान उपयोगी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने वाले तथा आज हर ख्याति प्राप्त भारतीय वैज्ञानिक तकनीकी विद युवा विज्ञान संचारक के साथ-साथ स्पष्ट प्रत्येक प्रतिभाशाली बाल वैज्ञानिक के लिए महत्वपूर्ण है जो आज और कल की हर वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा व संकल्प धारण करने का प्रेरित करती है। 7 नवम्बर, 1888 को तमिलनाडु में स्थित त्रिचिनापल्ली में जन्म सर चन्द्र शेखर वेकटारामन सर सी. वी. रमन ऐसे भारतीय वैज्ञानिक प्रतिभा का नाम है जिसे विश्व भर के लोग परिचित ही नहीं हैं बल्कि वे स मूचे एशिया भर में सर्वप्रथम नोबल पुरस्कार पाने वाले एक विलक्षण व्यक्तित्व का पुंज भी है। इसका मुख्य कारण उनका प्रकाश सम्बन्धी अनुसंधान रमन प्रभाव के नाम से विख्यात है। सर रमन कभी भी शिक्षा पाने के लिए विदेश न जाने वाले और जीवन के हर पल में भारतीय गौरव की अमिट छाप छोड़ने वाले देश के सबसे बड़े भौतिक वैज्ञानिक रहे हैं। 12 वर्ष की आयु में मैट्रिक परीक्षा के बाद 1903 बी.ए. की परीक्षा में विश्वविद्यालय में अकेले ही प्रथम श्रेणी में पास करने के साथ साथ भौतिक विज्ञान में स्वर्णपदक पाने वाले सर रमन ने 17 वर्ष में ही एम.ए. की परीक्षा पास करके भारत सरकार के वित्त विभाग की प्रतियोगिता में हिस्सा ले लिया था। ‘‘होन हार बिरवान के होत चीकने पात’’ कहावत को चरितार्थ करने वाले सर रमन जून, 1907 में वरिष्ठ वित्त अधिकारी के रूप में सहायक महालेखाकार के पद पर कलकत्ता में कार्यरत हो गये। लेकिन 1907 में ही सरकारी हिसाब किताब की गलियों में भटके हुए सर रमन अब अपने घर को यानि फिर विज्ञान की दुनियां की ओर लौट रहे थे। बात 1921 की है जब सर रमन पहली बार विश्वविद्यालयों की कांग्रेस में आक्सफोर्ड लन्दन गये तो वहां पर जब दूसरे वैज्ञानिक प्रतिनिधि अपने आराम के क्षणों में लन्दन के दर्शनीय वस्तुओं को देखकर अपना मनोरंजन कर रहे थे तब सर रमन वहां के सेण्ट पॉल गिरिजा घर में फुसफुसाते गलियारों का रहस्य समझने में लगे हुए थे। सर सी.वी.रमन की जिज्ञासा का दूसरा उल्लेखनीय उदाहरण इस प्रकार है कि जब अपनी इस यात्रा को समाप्त करने के लिए सर रमन जहाज से स्वदेश लौट रहे थे तो उन्होंने भूमध्य सागर के पानी में गहरा नीलापन देखा। जबकि पहले बंगाल की खाड़ी में काला सा मैला पन देखा था। बस कलकत्ता पहुंचने पर उन्होंने पार्थिव वस्तुओं में प्रकाश के प्रकीर्णन यानि विखरने का नियमित अध्ययन प्रारम्भ कर दिया। रमन मे देशभक्ति की भावन कूट कूट कर भरी हुई थी। वि चाहते थे कि भारत के वैज्ञानिक विदेशी माडलो की नक करने के बजाय देश की जरूरतो के मुताबिक वैज्ञानिक शोध करें। इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होने बैंगलुरू मे रमन रिसर्च इंस्टीटयूट की स्थापना की। यह संस्थान आज भी देश के अग्रणी शोध केंद्रो में गिना जाता है। द्रवो द्वारा प्रकाश किरणो के बिखराव पर किये गये शोध कार्य पर रमन को नोबल पुरस्कार मिला। यह शोध रमन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। इस रमन प्रभाव का उपयोग अनेक वैज्ञानिक शोध कार्यो में किया गया और इस पर आधारित महत्वपूर्ण औद्योगिक उपकरण भी बनाये गये। है। क्या है रमन प्रभाव ष्प्रकाश जब किसी पादर्शी माध्यम से गुजरता है तो इससे टकराकर लौटने वाली किरणो में से कुछ तरंगो की लंबाई बदल जाती हैष्। सर सी.वी.रमन लगभग 7 वर्ष अपनी इस खोज पर पहुंचे जो 28 फरवरी 1928 को रमन प्रभाव के नाम से भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में सदा-सदा के लिए विश्व स्तर पर विख्यात हो गये। भारत के प्रथम नोबल पुरस्कार पाने वाले भौतिक विज्ञानी सर सी.वी.रमन के सम्मान में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार की ओर से 1987 में 28 फरवरी को एक अनुकरणीय तथा अनुसरणीय यादगार बनाने के लिए राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की घोषणा की गयी ताकि प्रतिवर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर सर सी.वी.रमन के साथ-साथ उन सभी तमाम विश्व स्तरीय ख्याति प्राप्त भारतीय वैज्ञानिकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व तथा उनकी उपलब्धियों को समूचे राष्ट्र के समक्ष रख कर भारत की समग्र आत्म निर्भरता बढ़ाने में एक मात्र सहायक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जुड़ें देश के कोने-कोने में कार्यरत वैज्ञानिकों व तकनीकीविदों के क्रियाकलापों, उपलब्धियों तथा उनके विकास के उपयोग की समीक्षा करते हुए इस विषय पर प्रत्येक भारतीय नागरिक चिन्तन करें कि वैज्ञानिक व तकनीकी के क्रियाकलापों में हमारा कितना रचनात्मक योगदान है। आज का युग वैज्ञानिक युग है और आने वाली 21वी शताब्दी भी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के महत्व से कदापि अलग नहीं रहेगी। ऐसी स्थिति में जब हमारी दैनिक जीवन का प्रत्येक क्रिया-कलाप व व्यवहार विज्ञान के किसी न किसी सिद्धान्त के प्रयोग से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है। तब सर्वप्रथम हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक हो जाता है कि दैनिक जीवन में जुड़ें विज्ञान के ज्ञान और उसकी उपलब्धियों को व्यापक तथा बेहतर ढंग से उपयोग में लायें। बल्कि दैनिक क्रिया-कलापों में व्याप्त अवैज्ञानिक सोंच तथा निजी स्वार्थवश अनावश्यक रूप से उपयोग किये जा रहे विज्ञान व तकनीक के साथ-साथ प्रत्येक प्राकृतिक संसाधन की बरबादी को रोकें और अपनी आनी वाली पीढ़ी के लिए भी जीवन की सभी प्राकृतिक सुविधाए व सम्भावनाएं बनाये रखें। यह कहना पूर्ण सत्य है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की प्रगति व उपलब्धियों के बिना भारत ही नहीं बल्कि विश्व के किसी भी देश में बौद्धिक एवं आर्थिक आत्मनिर्भरता, सांस्कृतिक धरोहर में वृद्धि और उसकी रक्षा कर पाना नितान्त असम्भव है। मानव के विकास का इतिहास तथा विज्ञान इतिहास इस बात का सबूत है कि किसी भी क्षेत्र में चाहें वह स्वास्थ्य हो, कृषि हो, आवास हो, रोजी – रोजगार हो, मार्ग-परिवहन हो, दूर-संचार हो, पेयजल हो स्वच्छ पर्यावरण हो या फिर अन्तरिक्ष और महासागर की खोज हो हमारे देश के अनगिनित वैज्ञानिक तथा तकनीकीविद महत्वपूर्ण क्षेत्र में सदा विश्व के अन्य देशों की प्रतिभाओं की तुलना में निरन्तर अग्रणी ही रहे हैं। फिर भी हमारे देश को जरूरत इस बात की है कि अन्य पिछड़े विकसित व विकासशील देशों की भांति अपने देश में भी अवैज्ञानिक सोंच, क्रियाकलाप, व्यवहार के कारण अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, झाड़फूंक टोना-टोटका, दिशा-शूल, जीव-बलि जातीय, भेद, लिंग भेद जैसी तमाम पाखण्डी विद्वेषपूर्ण और प्राणघाती परम्पराओं में फंसे लोगो को भी नवीन वैज्ञानिक सोंच के द्वारा मुक्ति दिला कर नवसामाजिक जीवन की आत्मनिर्भरता के प्रवाह में जोड़ा जाये। ताकि देश का हर बालक-बालिका, युवा, भाई-बहन और बुजुर्ग सही ज्ञान-विज्ञान तथा उपयोगी प्रौद्योगिकी की नित नवीन उपलब्धियों के द्वारा अपने जीवन को बेहतर स्वास्थ्य, स्वच्छता पोषण पेय जल कृषि, खाद्यान्न पर्यावरण आवास शिक्षा रोजगार के साथ-साथ आत्म सुरक्षा के लाभ से जुडे़ं। हम सभी को एकजुट होकर सही मायने में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का उत्सव समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए सार्थक बनाना होगा। आज इस पुनीत तिथि के अवसर पर सभी अध्ययनरत विद्यार्थियों, अध्यापक-अध्यापिकाओं को ही नहीं बल्कि हर व्यक्ति को दृढ़ संकल्प लेना चाहिए कि भारत की प्रत्येक प्राकृतिक सम्पदा के विकास, संरक्षण और उसमें निहित शान्ति के लिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के महत्वपूर्ण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को हर पल अपने देश में ही रहकर विकसित करे। अपनी बौद्धिक क्षमता को विश्वव्यापी और उपयोगी बनायें जिससे भारत की क्षमता, शक्ति, ऊर्जा और आत्म निर्भरता का प्रमाण हर देश को आगे भी आश्चर्य चकित करता रहे। इतना ही नहीं भारत भूमि में रहकर बिना किसी भी प्रकार के भेद- भाव, अन्ध-विश्वास व अवैज्ञानिक सोच का वातावरण नष्ट करके हम सभी को एक जुट होकर जीवन के हर पल होने वाली हर घटना वस्तु व्यवहार में क्यां, कहां, कैसे, कब, किसने जैसे जिज्ञासा भरे प्रश्नों को पैदा करें और उनके सही समाधान को खोजकर अपने घर, परिवार और समाज की हर बुराई को दूर करने में अपने व्यवहार व क्रियाकलाप को विज्ञान के योगदान में ज्यादा से ज्यादा जोड़ें जिससे हम अपने भारत में ही रहकर विज्ञान और वैज्ञानिकों की मजबूत श्रृंखला से भारत की हर प्रातः हरियाली और हर सांझ खुशियाली से भर दें और एक स्वर में कहें कि हमारा पवित्र व पावन भारत शान्ति का भारत है। अपने सकारात्मक विचारों और कार्यो द्वारा कुछ कर दिखाने की आजादी का भारत, अपनी आत्म निर्भरता का भारत, निरन्तर आगे बढते रहने का भारत, भविष्य की प्रौद्योगिकियों का भारत, आपसी भेद-भाव से मुक्त भारत, अशिक्षा से मुक्त भारत, अंधविश्वासों से मुक्त भारत, सम्पन्नता का भारत, सद्भाव व ईमानदारी का भारत तथा बौद्धिक सम्पदा का भारत है। एस.एम.प्रसाद-संयुक्त निदेशक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद-लखनऊ-उ. प्र.