लखनऊ. राजेंद्र चौधरी ने यह भी बताया है कि इस बीच विगत एक सप्ताह से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हजारों कार्यकर्ताओं, प्रत्याशियों, नेताओं और नव निर्वाचित विधायको से भेंट कर चुके हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष से भेंट करने वाले कार्यकर्ताओं के उत्साह में कोई कमी देखने को नहीं मिली। उन सभी ने अखिलेश यादव के नेतृत्व के प्रति अपनी आस्था दुहराई। ऐसे परिणामों की किसी को उम्मीद नहीं थी। आज भी पूरे प्रदेश में लोग सदमें में हैं। विशेष तौर पर गांवों में किसानों को लगता है कि उनके साथ छल हुआ हैं उन्हें यकीन है कि गरीबों और किसानों का अखिलेश से शानदार नेता कोई दूसरा नहीं हो सकता। लोगों का मानना है कि जन सामान्य और कार्यकर्ताओं के दुःख दर्द की चिंता को अखिलेश अपनी चिंता मानते है। उन्होंने ही गरीबों और महिलाओं के हित में पूरी ईमानदारी से काम किया है।
अखिलेश यादव से आकर मिलनेवाली कई महिलाएं तो उनके सामने आकर अपनी रूलाई नहीं रोक पाती हैं। ये वे महिलाएं हैं जिन्हें समाजवादी पेंशन मिली है, बेटियां हैं जिन्हें कन्या विद्याधन मिला है अथवा जिन्हें कौशल प्रशिक्षण का लाभ मिला है। वस्तुतः अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में जनहित की तमाम योजनाओं से लाभान्वितों को अपना सब कुछ खोया-खोया सा लगता है। अखिलेश यादव इन सबको ढ़ांढ़स बंधाते हैं, सांत्वना देते हैं और परेशान न होने का भरोसा दिलाते हैं।
सच तो यह है कि विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के बाद भी उत्तर प्रदेश में कोई जन उत्साह या उमंग नज़र नहीं आती है। लोग चुनाव परिणामों से हतप्रभ और सशंकित है। लोगों को इस पर आसानी से विश्वास नही हो रहा है। आज ही गाजीपुर से आए हुए कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से कहा कि गाजीपुर से वाराणसी तक पशु पालकों के घरों में दो दिन तक चूल्हा नहीं जला। कितने ही कार्यकर्ता अब तक इस सदमें से उबर नहीं पाये है। अखिलेश यादव ने सभी साथियों से निराश न होने और नए जोश के साथ पुनः संगठन को मजबूती देने में जुट जाने को कहा। बड़ी संख्या में नौजवान और अल्पसंख्यक अपने प्रिय नेता और भैया से मिलने लगातार आ रहे हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है उनके वोट कहां गुम हो गए। जो जोश-खरोश चुनावी सभाओं में दिख रहा था उसके परिणाम इस तरह कैसे हो सकते है। खुद अखिलेश यादव ने देखा था उनकी सभाओं में बड़ी संख्या में नौजवान स्मार्टफोन लिए हुए थे। अल्पसंख्यक समुदाय के लोग कसम खा रहे हैं कि वे सब समाजवादी पार्टी की साइकिल के साथ खड़े रहे फिर क्या हुआ कि साइकिल के वोट कमल में बदल गए। राजनीति में शायद यह पहली घटना है जिस पर लोगों को सहसा विश्वास नहीं है कि ऐसे अप्रत्याशित परिणाम को भी उन्हें देखना पड़ा।
माहौल में चारों तरफ धुंधलका छाया है कहीं कुछ स्पष्ट नहीं। यह उजाले पर अंधेर राज का अगाज जैसा है। किसानों को अपना भविष्य अनिश्चित दिखता है। बीमारों को अस्पतालों में इलाज और 108 नं0 की सुविधा खोने का डर सताने लगा है। महिलाएं परेशान हैं कि अब उनकी सुध कौन लेगा? उन्हें मिलने वाली समाजवादी पेंशन का क्या होगा? कई बुनकर और दस्तकार भाई भी यहां मिलने आए वे इस बात को बार-बार याद कर रहे थे कि श्री यादव के मुख्यमंत्री रहते ही उन्हें बिजली में राहत मिली थी और उनके उत्पादन की बिक्री की व्यवस्था की गई थी। अब वे परेशान थे कि उनकी सुध कौन लेगा? कलाकार साहित्यकारों को भरोसा नहीं है कि कोई उनका पुरसाहाल होगा। गरीब को अब कौन खाद्य के पैकेट देगा और सूखा-बाढ़ में उनके साथ खड़ा होगा। श्री अखिलेश यादव में ही उन्हें अपना भविष्य दिखता था और भरोसा था कि आगे उनकी जिंदगी में बेहतर बदलाव आएंगे। अब मन निराश और हताश है। फिर भी एक मात्र आशा के केन्द्र के रूप में श्री अखिलेश यादव जी का नाम ही उनकी जु़बान पर आता है।
ये क्या से क्या हो गया जहां चमन था सहरा हो गया।