पुण्य तिथि पर विशेष स्वप्निल संसार। मकबूल फ़िदा हुसैन,एम एफ़ हुसैन के नाम से जाने जाने वाले चित्रकार थे। कलाकार के तौर पर उन्हे 1940 के दशक में ख्याति मिली। 1952 में उनकी पहली एकल प्रदर्शनी ज़्युरिक में हुई। इसके बाद उनकी कलाकृतियों की अनेक प्रदर्शनियां यूरोप और अमेरिका में हुईं।
1966 में भारत सरकार ने उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया। उसके एक साल बाद उन्होने अपनी पहली फ़िल्म बनायी: थ्रू द आइज़ ऑफ अ पेन्टर यह फ़िल्म बर्लिन उत्सव में दिखायी गयी और उसे ‘गोल्डेन बियर’ से पुरस्कृत किया गया।
मक़बूल फ़िदा हुसैन बहुत छोटे थे जब उनकी मां का देहांत हो गया। इसके बाद उनके पिता इंदौर चले गए जहाँ हुसैन की प्रारंभिक शिक्षा हुई। बीस साल की उम्र में हुसैन बम्बई गये और उन्हे जे जे स्कूल ओफ़ आर्ट्स में दाखला मिल गया। शुरुआत में वे बहुत कम पैसो में सिनेमा के होर्डिन्ग बनाते थे। कम पैसे मिलने की वजह से वे दूसरे काम भी करते थे जैसे खिलोने की फ़ैक्टरी में जहाँ उन्हे अच्छे पैसे मिलते थे। पहली बार उनकी पैन्टिन्ग दिखाये जाने के बाद उन्हे बहुत प्रसिद्धी मिली। अपनी प्रारंभिक प्रदर्शनियों के बाद वे प्रसिद्धि के सोपान चढ़ते चले गए और विश्व के अत्यंत प्रतिभावान कलाकारों में उनकी गिनती होती थी।
947 में वे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप में शामिल हुए। युवा पेंटर के रूप में एमएफ़ हुसैन बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट्स की राष्ट्रवादी परंपरा को तोड़कर कुछ नया करना चाहते थे। 1955 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। 1967 में उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म थ्रू द आइज़ ऑफ़ अ पेंटर बनाई। ये फ़िल्म बर्लिन फ़िल्म समारोह में दिखाई गई और फ़िल्म ने गोल्डन बेयर पुरस्कार जीता।
1971 में साओ पावलो समारोह में उन्हें पाबलो पिकासो के साथ विशेष निमंत्रण देकर बुलाया गया था। 1973 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया तो 1986 में उन्हें राज्यसभा में मनोनीत किया गया। भारत सरकार ने 1991 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 92 वर्ष की उम्र में उन्हें केरल सरकार ने राजा रवि वर्मा पुरस्कार दिया। क्रिस्टीज़ ऑक्शन में उनकी एक पेंटिंग 20 लाख अमरीकी डॉलर में बिकी। इसके साथ ही वे भारत के सबसे महंगे पेंटर बन गए थे।
हिन्दू देवियो के चित्रो पर बवाल
भारतीय देवी-देवताओं पर बनाई, इनकी विवादित पेंटिंग को लेकर भारत के कई हिस्सों में प्रदर्शन भी हुए। भारत माता की विवादित पेंटिंग बनाने पर पत्रकार तेजपाल सिंह धामा एम एफ हुसैन से पत्रकार वार्ता के दौरान उलझ बैठे थे, 2006 में हुसैन ने हिन्दुस्तान छोड़ दिया था और तभी से लंदन में रह रहे थे। 2010 में कतर ने उनके सामने नागरिकता का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 2008 में भारत माता पर बनाई पेंटिंग्स के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे मुकदमे पर न्यायाधीश की एक टिप्पणी “एक पेंटर को इस उम्र में घर में ही रहना चाहिए” जिससे उन्हें गहरा सदमा लगा और उन्होंने इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील भी की। हालांकि इसे अस्वीकार कर दिया गया था। 9 जून 2011 को लंदन में इनका निधन हो गया।
फोटो सोशल मिडिया से