नई दिल्ली: प्रख्यात भारतीय वैज्ञानिक और शिक्षाविद् प्रोफेसर यश पाल का रात को नोएडा में निधन हो गया है. वह 90 साल के थे. कॉस्मिक किरणों के अध्ययन और शिक्षा संस्थानों के निर्माण में अपने योगदान के लिए प्रो. यश पाल को पहचाना जाता है. उनके परिवार ने बताया कि लोधी रोड विद्युत शवदाह गृह में मंगलवार दोपहर तीन बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.प्रो. यश पाल ने विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. साथ ही उन्हें कॉस्मिक किरणों के अध्ययन में योगदान देने के लिए जाना जाता है.कॉस्मिक यानी ब्रह्मांडीय किरणें अत्यधिक ऊर्जा वाले कणों समूह होती हैं, जो बाहरी अंतरिक्ष में पैदा होते हैं और छिटक कर पृथ्वी पर आ जाते हैं.इसके लिए उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं. 1976 में विज्ञान और अंतरिक्ष तकनीक में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें पद्मभूषण और 2013 में पद्मविभूषण सम्मान से नवाज़ा जा चुका है.इसके अलावा प्रो. यश पाल कई महत्वपूर्ण संस्थाओं में अपना योगदान दे चुके हैं. 1983 से 1984 तक वह योजना आयोग के मुख्य सलाहकार रहे हैं. 1986 से 1991 तक वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष थे. इसके अलावा 2007 से 2012 तक जेएनयू के कुलपति रहे. दूरदर्शन पर प्रसारित हो चुके मशहूर विज्ञान आधारित कार्यक्रम टर्निंग पॉइंट के प्रस्तोता भी रहे हैं.
देश के बड़े वैज्ञानिकों में शुमार प्रोफेसर यश पाल का जन्म 26 नवंबर 1926 को झांग में हुआ था, जो कि अब पाकिस्तान में है. उनकी परवरिश कैथल में हुई. 1949 में पंजाब विश्वविद्यालय से उन्होंने भौतिक विज्ञान में एमए किया था. इसके बाद 1958 में अमेरिका के मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी से भौतिक विज्ञान में पीएचडी की. उन्होंने अपने करिअर की शुरुआत बम्बई अब मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट आॅफ फंडामेंटल रिसर्च से किया था. वह कॉस्मिक रे समूह के सदस्य के रूप में इस संस्था से जुड़े थे.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए ट्विटर पर लिखा, प्रोफेसर यश पाल के निधन से दुखी हूं. हमने एक वैज्ञानिक और शिक्षाविद खो दिया जिन्होंने भारतीय शिक्षा में अपना बहमूल्य योगदान दिया है.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा, प्रोफेसर यश पाल को कॉस्मिक किरणों के अध्ययन में उल्लेखनीय योगदान, संस्था निर्माता और एक कुशल प्रशासक के रूप में याद रखा जाएगा.कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि भारतीय शिक्षा के बारे में उनकी रिपोर्ट ‘बोझ के बिना शिक्षा’ को एक असाधारण दस्तावेज़ माना जाता रहेगा.