मौसम के करवट बदलने के बीच मुलायम सिंह यादव ने जिस तरह यह घोषणा की कि वे एक अलग पार्टी नहीं बनाएंगे, समाजवादी पार्टी उनकी ही पार्टी है। साथ ही उनका अखिलेश यादव को अपना आशीर्वाद देना, इस ओर साफ़तौर से इशारा करता है कि एक नेता पर पिता का दिल हावी हो गया। बहरहाल, कारण चाहे जो भी रहे हों, मुलायम सिंह यादव के इस रूख़ के बाद अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अखिलेश यादव ने जो ट्वीट किया, उससे लगता है कि उन्हें बहुत राहत मिली। वहीं सबसे अधिक अगर किसी को झटका लगा है तो वे हैं शिवपाल सिंह यादव। जिनके दिल के अरमां दिल ही में रह गए। अब ऐेसे में सवाल यह पैदा होता है कि मुलायम सिंह यादव के इस तरह ‘यूटर्न लेने से उनके अनुज शिवपाल सिंह यादव, जिनके बारे में नेताजी ने एक बार कहा था कि आज के जमाने में लक्ष्मण जैसा भाई मिलना मुश्किल है तो उस लक्ष्मण का अब क्या होगा? क्योंकि जिस तरह से गत 23 सितंबर को समाजवादी पार्टी के आयोजित हुए 8वें राज्य सम्मेलन में पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अप्रत्यक्ष रूप से चुन-चुन कर शिवपाल सिंह यादव पर निशाना साधा उसके बाद लगता तो यही है कि समाजवादी पार्टी में शिवपाल के लिए अब कोई जगह नहीं बची है, जो पहले से ही पार्टी में हाशिए पर हैं। इसके अलावा अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच जारी आपसी रार किसी से छिपी नहीं हैं, जिसके ख़त्म होने के आसार भी फिलहाल नजऱ नहीं आ रहे हैं। यानी शिवपाल सिंह यादव के लिए कुल मिलाकर स्थिति विकट है, जिससे निकलने के लिए अब वे क्या करेंगे, इस पर सबकी निगाहें लगी रहेंगी। क्या शिवपाल सिंह यादव नई पार्टी बनाएंगे या सपा से नाता तोड़ किसी और दल की शरण लेंगे? वैसे भी इन दिनों देश-प्रदेश की राजनीति में नेताओं का एक दल से दूसरी पार्टी में पलायन का दौर चल रहा है।
राजनीति में रुचि रखने वाले लोगों की नजऱ सपा के राज्य सम्मेलन से कहीं अधिक 25 सितंबर को होने वाले मुलायम सिंह यादव के संवाददाता सम्मेलन की ओर लगी हुई थी जिसके बारे में चर्चाओं का बाज़ार गर्म था कि मुलायम सिंह यादव इस दिन कोई बड़ा ऐलान कर सकते हैं, मसलन नई पार्टी बनाने की घोषणा इत्यादि कर सकते हैं। खुद शिवपाल यादव भी इसके लिए झंडे-बैनर व समर्थकों के साथ अपनी पूरी तैयारी किए हुए बैठे थे। मुलायम सिंह यादव की संभावित पार्टी का नाम क्या हो सकता है इसकी ख़बरें भी मीडिया में आने लगी थीं। इन अटकलों को बल उस वक़्त और भी मिला जब सपा के राज्य सम्मेलन में पार्टी द्वारा मुलायम सिंह और शिवपाल को बुलाया तक नहीं गया। जो सपा के इतिहास में पहला अवसर था कि बिना मुलायम सिंह के पार्टी का कोई राज्य सम्मेलन आयोजित हुआ हो। हां, एक जनवरी 2017 के विशेष अधिवेशन को छोड़कर, वहां तो खैर मुलायम सिंह यादव को पार्टी अध्यक्ष पद से बेदखल कर अखिलेश यादव को पार्टी की बागडोर सौंपी गई थी। इधर, मीडिया भी ब्रेकिंग न्यूज़ की संभावना को लेकर उत्साहित था। पर, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिसको लेकर तरह-तरह के कयासों का दौर जारी था। मुलायम सिंह यादव ने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित भी किया और उस पटकथा को नहीं पढ़ा जिसमें नई पार्टी के गठन होने का पूरा विवरण था। चर्चा है कि वे उसे छिपा कर वापस अपने साथ ले गए। हालांकि इस संवाददाता सम्मेलन मं स्वयं शिवपाल सिंह नहीं उपस्थित थे, लेकिन जहां कहीं भी रहे होंगे नई पार्टी के गठन पर मुलायम सिंह के साफ़ बच कर निकल जाने के समाचार देख कर उनके चेहरे का रंग ही बदल गया होगा। जो पिछले विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से ही लगातार दो बातें कह रहे थे कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) का सपा में बहुत अपमान हुआ है और अब वे नई पार्टी या मोर्चे का गठन करेंगे। इस संबंध में नेताजी का जो भी निर्णय होगा वे उसे स्वीकार करेंगे। एक बार तो अकेले शिवपाल यादव ने ही नए मोर्चें के गठन की घोषणा करने की तैयारी भी कर ली थी किन्तु मुलायम सिंह के मना करने पर वे रुक गए थे। संभवत: उन्हें इस बात की उम्मीद रही होगी कि आगे चल कर मुलायम सिंह ही यह घोषणा करना चाहें। लेकिन जब नई पार्टी के गठन का समय आया तो मुलायम सिंह ने चुप रह कर एक तरह शिवपाल सिंह यादव को और भी अधिक निराश कर अधर में डाल दिया।
शिवपाल यादव जिन्होंने अपने भ्राताश्री मुलायम सिंह यादव की छत्र-छाया में रहकर राजनीति का क, ख, ग सीखा। नब्बे के दशक में सैफ़ई से लेकर राजधानी लखनऊ तक मुलायम सिंह यादव के सिपाहसालार, उनकी सरकारों में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहने के अलावा विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे। शिवपाल सिंह यादव ने कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि आज उन्हें ऐसे भी दिन देखने पड़ेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि शिवपाल सिंह की वर्तमान स्थिति, सपा में बिखराव व परिवार में एकता का न होना इसके लिए काफ़ी हद तक मुलायम सिंह यादव भी जि़म्मेदार हैं। क्योंकि १५ मार्च २०१२ को जब मुलायम सिंह यादव ने अपने पुत्र अखिलेश यादव को सपा सरकार की कमान सौपते हुए उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया था, तभी वे इस बात की घोषणा कर देते कि अखिलेश यादव ही भविष्य में उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगे और शिवपाल सिंह के पार्टी में किए गए योगदान को देखते हुए उनकी भी भूमिका निर्धारित कर देते तो शायद आज सपा ही नहीं, बल्कि यादव परिवार भी एकजुट होता और स्वयं मुलायम सिंह भी निश्ंिचत हो जाते जो अभी भी सब कुछ सामान्य न होने पर कहीं न कहीं तनावग्रस्त तो जरूर होंगे।
फिलहाल ये साफ है कि शिवपाल सिंह यादव के लिए सपा में अब हालात ऐसे नहीं रहे जिसे वे पार्टी में अपने पुरानी जगह को हासिल कर सकें। ऐसे में शिवपाल सिंह राजनीति छोड़ जसवंतनगर जा कर भला खेती-बाड़ी करने से रहे। प्रदेश के प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से हैं, शुरू से सियासत में ही हैं सो राजनीति ही उन्हें भाएगी। लेकिन मंच और बैनर क्या होगा यह अब उन्हें ही तय करना होगा। क्या वे अलग अपनी पार्टी बनाएंगे? या फिर सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल होंगे अथवा संकट के दौर से गुजर रही बसपा के हाथी पर बैठना चाहेंगे? मालूम हो कि विधानसभा चुनाव के समय जब मुलायम सिंह के करीबी अंबिका चौधरी सपा छोड़कर बसपा में शामिल हुए थे तो एक मौके पर मायावती ने शिवपाल यादव को बसपा में आने का न्यौता देते हुए कहा था कि शिवपाल सिंह अगर बसपा में आते है तो पार्टी में उनका स्वागत है। प्रदेश में भाजपा सरकार के गठन के बाद शिवपाल सिंह एक बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात भी कर चुके हैं, तब तरह-तरह की अटकलों ने जो पकड़ा था। जिस पर उन्होंने शिष्टाचार भेंट बताया था। हालांकि शिवपाल यादव के सामने विकल्पों की कमी नहीं लेकिन किसी एक का चुनना उनके लिए आसान भी नहीं है। (हिफी)