इधर-उधर भटकने की नियति ने आज रोहिंग्या मुसलमानों को कहीं का नहींं रखा है। उनका अपना कोई देश नहीं रह गया है। हमारे पड़ोसी देश बर्मा, जिसे अब म्यांमार कहते हैं, ने भी उन्हें अपने देश का नागरिक मानने से इंकार कर दिया है। वे पड़ोस के देशों में भागते हैं तो वहां भी उन्हें शरण नहीं मिल रही है। एक समय था जब म्यांमार में वे बौद्ध धर्मावलम्बियों के साथ बड़े प्रेम से रहते थे लेकिन एक रोहिंग्या ने बौद्धधर्म अनुयायी युवती से दुराचार किया और इसके बाद ही उनके प्रति आक्रोश पैदा हो गया। म्यांमार में हिंसा के चलते अबतक एक लाख 23 हजार रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश के लिए पलायन कर चुके है। म्यांमार में विद्रोहियों ने गत दो दिनों में ही उत्तरी म्यांमार के गांवों में सैकड़ों मकानों में आग लगा दी। विद्रोहियों ने औकप्यूमा गांव में सुरक्षा बलों के साथ झड़प होने के बाद 50 घरों को आग के हवाले कर दिया और औंता गांव में भी 120 घर फूंक डाले।
रोहिंग्या मुसलमानों के साथ इस प्रकार का अन्याय वर्षों से हो रहा है। ऐसे में उनके सामने म्यांमार छोडऩे के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं बचा है। अभी ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेने के दौरान भारत के प्रधान मंत्री म्यांमार की यात्रा पर भी गये। उन्होंने आंग सांग सु की के प्रतिनिधित्व वाली सरकार से इस मामले को सुलझाने की अपील जरूर की है लेकिन भारत ने भी उन्हें शरणार्थी मानने से इंकार किया है। भारत में भी लगभग 40 हजार के रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं। केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री किरण रिजजू उन्हें बाहर भेजना चाहते है।
एक समय था जब म्यांमार भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। माना जाता है कि 12 वीं सदी में रोहिंग्या म्यांमार गये थे। सम्राट अशोक का बौद्ध धर्म वहां चलता था। आज भी वहां का राष्ट्रीय धर्म यही है और भारत के बौद्ध तीर्थ म्यांमार के लोगों के लिए सबसे पवित्र माने जाते है। ब्रिटिश शासन के दौरान 1824 से 1948 तक भारत और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में मजदूर म्यांमार ले जाए गये थे। म्यांमार भी ब्रिटेन का उपनिवेश था, इसलिए उसे भारत का ही एक राज्य माना जाता था। रोहिंग्या मुसलमानों का भारत से वहां जाना कोई आपत्तिजनक नहीं था। ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद म्यांमार ने इस आवाजाही को अवैध घोषित कर दिया। इस बीच म्यांमार में लोकतंत्र पर राजतंत्र हावी हो गया और लोकतांत्रिक अधिकारों को जबर्दस्त तरीके से कुचला गया।
म्यांमार को 1948 में आजादी मिली थी और इसी के बाद वहां नागरिकता कानून बनाया गया। रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता समाप्त कर दी गयी। म्यांमार के नागरिकता कानून में रोहिंग्या मुसलमानों को शामिल ही नहीं किया गया और यह माना गया कि भारत और बांग्लादेश के जिन स्थानों से ये लाये गये, वहीं के ये नागरिक है। वहां पर जो लोग पीढिय़ों से रह रहे थे, उनके परिचय पत्र जरूर बनाये गये। उन्होंने चुनाव भी लड़ा और कुछ रोहिंग्या सांसद भी चुने गये।
रोहिंग्या मुसलमानों के लिए सबसे दुर्दिन 1962 में आए जब चीन ने भारत पर हमला किया था और म्यांमार में भी सैन्य विद्रोह हो गया। उस समय रोहिंग्या मुसलमानों को विदेशी पहचान पत्र जारी किये गये थे अर्थात वे उस देश के नहीं बल्कि विदेशी नागरिक हैं। उन्हें रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं से वंचित कर दिया गया था। इसके बाद म्यांमार में 1982 में एक और नागरिक कानून बना था जिसने रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता पूरी तरह से छीन ली और उन्हें तरह-तरह से प्रताडि़त भी किया जाने लगा ताकि वे म्यांमार छोड़कर भाग जाएं।
इसी के चलते लगभग 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान भारत के विभिन्न राज्यों में अवैध रूप से रह रहे हैंं संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से इन मुसलमानों को शरणार्थी कहा गया है। भारत इससे सहमत नहीं है और इन्हें घुसपैठिया माना जाता है। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने इन रोहिंग्या मुसलमानों का पता लगाकर इन्हें म्यांमार भेजने पर विचार करने को कहा है। दरअसल कुछ रोहिंग्या मुसलमानों ने उग्रवादियों से सांठ- गांठ भी कर रखी है और भारत में उनका इस प्रकार रहना खतरे से खाली नहीं है। म्यांमार में बहुसंख्यक बौद्धों के साथ झड़प के बाद रोहिंग्या मुसलमानों के उग्र धड़े ने अक्टूबर 2016 में हरकत अल यकीन नाम से एक समूह का गठन किया। इसका काम हिंसक तरीके से अपने अधिकार प्राप्त करना है। इसलिए उनके जवाब में म्यांमार की सेना तात्मादा ने सैन्य अभियान चलाया। दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़पें होती रहती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि चंद उग्रवादी रोहिंग्या के चलते कितने ही निर्दोष रोहिंग्या मुसलमान मारे जा रहे हैं। सवाल उसी नियति का है। एक रोहिंग्या ने यदि बौद्ध धमीवलम्बी युवती से दुराचार और हत्या न की होती तो शायद बहुसंख्यक बौद्ध उन्हें मेहनती कामगारों के रूप में अभी अपना ही समझ रहे होते। अब वहीं रोहिंग्या म्यांमार की सेना के शिकार बने हैं। निर्दोष रोहिंग्याओं के साथ हत्या और दुराचार जैसी घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। अभी ताजा हिंसा का मामला म्यांमार के रखाइन प्रांत से सामने आया है। यहां पर २५ अगस्त २०१७ को रोहिंग्या उग्रवादियों ने पुलिस चौकियों पर हमला किया था, जिसमें १२ सैनिक मारे गये थे। उग्रवादियों का उद्देश्य बड़े पैमाने पर हथियार लूटना था, हालाकि इसमें वे सफल नहीं हो पाये। रोहिंग्या समूह के कुछ लोगों ने गलत रास्ता पकड़ लिया है। इंटर नेशनल क्राइसेस ग्रुप के अनुसार हरकत अल यकीन (एआरएसए) संगठन का कमांडर पाकिस्तान के कराची में रोहिंग्या परिवार में जन्मा अताउल्ला है। अताउल्ला कराची से सऊदी अरब गया था। इसके बाद वह कहां रह रहा है, यह किसी को नहीं मालूम। हरकत अलयकीन को मुस्लिम देशों से पैसा मिलने की बात भी सामने आयी है। इसलिए रोहिंग्या समुदाय को अब भारत का निवासी और शरणार्थी मान लेना ठीक नहीं होगा। केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री किरण रिजिजू ने इसी लिए कठोर भाषा का प्रयोग करते हुए कहा है कि हमें भारत में अवैध रूप से रह गये रोहिंग्या मुसलमानों को बाहर निकालना ही होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने म्यांमार में स्टेट काउंसलर आंगसान सुकी से मिलकर म्यांमार में हिंसा रोकने की अपील की है। श्री मोदी की म्यांमार की पहली द्विपक्षीय यात्रा ऐसे समय मे हुई है जब वहां सेना और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच जमकर संघर्ष हो रहा है। सवा लाख से अधिक रोहिंग्या बंग्ला देश पलायन कर गये और वहां से वे भारत में घुसने का प्रयास भी करेंगे। यह ठीक है कि 1937 तक म्यांमार भारत का हिस्सा था लेकिन अब दोनों देशों की अन्तर राष्ट्रीय सीमा तय है। बांग्लादेश भी एक नया राष्ट्र बन चुका है। इसलिए म्यांमार में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को वहां की सरकार को ही संरक्षण देना पड़ेगा। श्री मोदी ने आपसी रिश्ते मजबूत करने के लिए म्यांमार के साथ लगभग एक दर्जन समझौते भी किये हैं लेकिन केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री ने देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति जो रणनीति बनायी है, उसे लागू करना ही श्रेष्ठ रहेगा। (हिफी)
