Er S D Ojha-भगोरिया मेले का आयोजन होली से पहले किया जाता है । 7-10 दिन तक चलने वाला यह मेला मध्य प्रदेश के झाबुआ , अलीराज पुर , खरगोन , बड़बानी , धार , बुराहनपुर और खण्डवा जिले के कुछ हलकों में आयोजित किया जाता है । इसका समापन होलिका दहन के दिन होता है । पूरे क्षेत्र में यह मेला लगभग 60-70 जगहों पर होता है , जिनमें से केवल अकेले झाबुआ और अलीराजपुर को हीं मिलाकर 50 आयोजन हो जाते हैं । शेष बाकी के और इलाकों में होता है । इस भगोरिया मेला को भील , बारेला एंव भीलाला आदि सभी आदिवासी समाज बड़े पैमाने पर सदियों से मनाता आ रहा है ।
भगोरिया मेले में युवतियां सज धज कर मेले में भाग लेने आती हैं । यदि एक गांव की दस लड़कियां हैं तो उन सबके कपड़े एक हीं तरह के होते हैं। जब पलाश के चटक रंग फूल खिल जाते हैं तो आदिवासी मन फागुन के आगम से खुश हो जाता है । वे होली से सात से दस दिन पहले भगोरिया उत्सव मनाते हैं । दरअसल यह उत्सव होली के पहले की तैयारी होती है । होली से पहले नये कपड़े बन जाते हैं । भगोरिया मेले से होली का सब सामान ( अबीर , गुलाल और खाने का सभी सामान ) खरीद लिया जाता है । पूरे साल भर की जरूरत की सारी खरीददारी भी इस मेले से हो जाती है । किसान नाच गाकर पूरे साल की थकान इस मेले में उतारते हैं ।
कहते हैं कि सर्व प्रथम इस मेले का आयोजन राजा भोज ने करवाया था । उसके बाद दो भील राजाओं (कसूमार और बालून ) ने राजा भोज का अनुशरण किया । इसके बाद तो पूरे आदिवासी क्षेत्र के लिए भगोरिया एक परिपाटी बन गई । इसे स्थानीय भाषा में भौंगर्या कहा जाता है । मेले में युवतियां टैटू गुदवाती हैं । झूलों का आनंद लेती हैं । श्रृंगार का सामान खरीदती हैं । भगोरिया मेले में गुड़ की जलेबी अच्छी बनती है । बच्चे , बूढ़े और जवान सभी इसका रसास्वादन करते हैं । युवक पारम्परिक लिबास में मेले में भाग लेते हैं । वे बांसुरी बजाते हैं । पारम्परिक वाद्य यंत्र ढोल और मंदल बजाते हैं ।युवतियां इन वाद्य यंत्रों की थाप पर थिरकती हैं । सब कुछ पारम्परिक होते हुए भी माहौल उस समय अपारम्परिक हो जाता है , जब कुछ युवक जींस पहन के इस मेले में आ टपकते हैं । ऐसा लगता है कि रेशमी कपड़े में किसी ने पैबंद लगा दिया हो ।
वास्तव में भगोरिया मेला वेलेंटाइन डे का हीं एक रूप होता है । वेलेंटाइन डे में लड़का लड़की को फूल देता है , जब कि भगोरिया में लड़का लड़की को पान पेश करता है । यदि लड़की ने पान स्वीकार कर लिया तो इसका मतलब कि लड़की राजी है । फिर लड़का व लड़की मेले से भाग जाते हैं ।
इसीलिए इस मेले को भगोरिया कहते हैं । लड़के लड़की तब तक वापस नहीं आते हैं जब तक कि दोनों के मां बाप उनकी शादी के लिए राजी नहीं हो जाते हैं । कुछ जगहों पर लड़का लड़की के गाल पर गुलाबी गुलाल मलता है । यदि प्रत्युत्तर में लड़की भी लड़के के गाल पर गुलाल मल दे तो मतलब निकलता है कि दोनों एक दुसरे को चाहते हैं । फिर दोनों को भागना होता है । मां बाप को अंतत: मानना पड़ता है । फिर दोनों के मां बाप धूमधाम से उनकी शादी कर देते हैं । आखिर प्यार भरा दिल कौन तोड़ना चाहता है ?बेशक मंदिर मस्जिद तोड़ो , बुल्लेशाह ये कहता । पर प्यार भरा दिल कभी न तोड़ो इसमें दिलबर रहता ।