9 अक्टूबर को संतगाडगे ऑडिटोरियम में शाम 7 बजे होगा मंचन
लखनऊ। सुविख्यात मराठी नाटककार वि.वा.शिरवाडकर की कालजयी मराठी नाट्य रचना ‘नट सम्राट’ का हिन्दी में मंचन वरिष्ठ नाट्य निर्देशक पुनीत अस्थाना के निर्देशन में सोमवार, 9 अक्टूबर को शाम 7 बजे थर्ड विंग नाट्य संस्था की ओर से गोमती नगर स्थित संगीत नाटक अकादमी के सन्त गाडगे जी महाराज ऑडिटोरियम में किया जा रहा है। यह नाटक पहली बार लखनऊ की किसी संस्था की ओर मंचित होगा। पुनीत अस्थाना ने आज से लगभग 40 साल पहले बाहर की एक संस्था के लिये इस नाटक को निर्देशित किया था।
संगीत नाटक अकादमी के परिसर में चल रहे इस नाटक के रिहर्सल कक्ष में शुक्रवार को हुई प्रेसवार्ता में पुनीत अस्थाना ने बताया कि इस नाटक का हिन्दी अनुवाद प्रसिद्ध साहित्यकार र.श.केलकर ने किया है। यह नाटक मराठी रंगमंच के जानेमाने अभिनेता गणपतराव बेलवरकर जिन्हे उनके प्रशंसक अप्पा साहब कहते थे पर आधारित है। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि महज उनके नाम से दर्शक, नाटक देखने के लिये उमड़ पड़ते थे। पचास वर्षो तक रंगमंच पर एक छत्र राज करने के बाद अप्पा साहब मंच को अलविदा कह देतें हैं। इस अवसर पर महाराष्ट्र सरकार उन्हे ‘नट सम्राट’ की उपाधि से विभूषित करती है। सफलता के आनन्द से अभिभूत अप्पा साहब इस मौके पर अपनी सारी धन-सम्पत्ति अपने विवाहित लड़के और लड़की के बीच बांट देतें हैं। कुछ वर्षों तक तो सब ठीक चलता है पर बाद में वही अप्पा साहब परिवार के लोगों को बोझ लगने लगते है। बहु के व्यवहार से त्रस्त होकर आखिरकार अप्पा साहब अपनी पत्नी कावेरी के साथ घर छोड़ कर दूसरे शहर में रहने वाली अपनी लड़की नलू से मिलने बिना बताए निकल पड़ते हैं। आखिरकार दोनों बुढ्ढे-बुढ़िया गिरते पड़ते अपनी लड़की नलू के घर पहुंच जाते हैं। नलू शुरू में तो बड़ी गर्मजोशी के साथ अपने बूढ़े मां-बाप का स्वागत करती है, पर जब उसे यह मालूम पड़ता है कि बूढ़े मां-बाप हमेशा के लिये उनके पास रहने आएं है तो वह भी असहज हो उठती है। इसी बीच नलू के पति, प्रभाकर का पर्स चोरी हो जाता है जिसमें उनकी पूरी तनख़ाह रखी होती है। परिस्थितिवश चोरी का इल्ज़ाम अप्पा साहब पर लगता है और इसी सदमें में अप्पा की पत्नी का स्वर्गवास हो जाता है। पत्नी कावेरी की मौत का गहरा असर अप्पा साहब के दिमाग़ पर पड़ता है और अप्पा साहब अर्धविक्षिप्त हो जातें हैं। उसी हालत में अप्पा साहब एक दिन घर छोड़ कर निकल जातें हैं। गांव-गांव शहर—शहर भटकते हुए मुम्बई जा पहुंचते हैं। उनके परिवार वाले भी उन्हें खोजते-खोजते एक थियेटर के सामने पहुंचते हैं जहां अप्पा साहब एक बूटपालिश करने वाले के पास बैठे दिखाई देतें हैं। उनका लड़का नन्दा और लड़की नलू उनसे घर वापस चलने का अनुरोध करतें हैं। इससे अप्पा साहब उत्तेजित हो जातें हैं और उसी उत्तेजना में जूलियस सीज़र का सुप्रसिद्ध अंतिम संवाद बोलते बोलते प्राण त्याग देतें हैं।
संस्था की अध्यक्ष सरोज अग्रवाल ने बताया कि यह नाटक वर्तमान दौर में और भी प्रासंगिक हो गया है। इस नाटक के माध्यम से वह यह संदेश देना चाहती है कि बच्चे चाहें जितनी भी शैतानियां करें, चाहें कितना ही नुकसान क्यों न कर दें, पर मां-बाप उन्हें छाती से लगा कर रखतें हैं पर अकसर वहीं बच्चे, बड़े हो कर अपने बूढ़े मां—बाप को अपने से अलग रखना चाहतें क्योंकि ढलती उम्र में ‘उनके’ रहने सहने का तौर तरीका ‘उन्हें’ पसन्द नहीं आता। मां—बाप अपने बच्चे की हर हरकत को बर्दाश्त कर लेतें हैं, क्योंकि बच्चे उनके जिगर का टुकड़ा होतें हैं पर बच्चों के लिये बूढ़े मां—बाप केवल एक अनुपयोगी वस्तु बन कर रह जातें हैं। संस्था की सचिव नंदिता पंडित ने बताया कि नट सम्राट का केन्द्रीय किरदार केशव पंडित अदा कर रहे हैं वहीं अन्य किरदार अर्चना शुक्ला, तुषार बाजपेई, श्यामली दीक्षित, नवनीत भाटिया, अली खान, पावनी अस्थाना, गुरुदत्त, राहुल सचदेवा, हरीष बडोला, अंजली सचान, सुशील कुमार निभा रहे हैं। नाटक का आकर्षक सेट शकील ब्रदर्स की ओर से तैयार करवाया जा रहा है। प्रकाश परिकल्पना एम हफीज की है।