1940:- डिक और मेक दो भाईयों ने केलिफोर्निया के एक शहर सेनबेर्नार्डिनो के बाजार में 14वीं गली में रेस्टोरेट की शुरूआत की। चूंकि यह स्वाद का सौदा था अत: लोगों को पसंद आया और काम चल पड़ा।
1948 :- पूरे आठ साल बाद तीन महीने के लिए रेस्टोरेट की शटर डाउन कर दी गई और जब दिसम्बर में यह रेस्टोरेंट पुन: प्रारंभ हुआ तो कुछ चौंकाने वाले परिवर्तन हो चुके थे। इस रेस्टोरेंट में दिन में 9 बार मीनू बदल जाता था और मात्र 15 सेंट में ”हेमबर्गर उपलब्ध कराया जा रहा था। हेमबर्गर जैसे स्वादिष्ट भोज्यपदार्थ के लिए यह बहुत कम कीमत थी। स्वभाविक है भीड़ टूट पड़ी।
1954 :- मल्टीमिक्सर के सेल्समेन रे-क्रॉक इस रेस्टोरेंट में आए। रे-क्रॉक अपने जीवन के 52 वर्ष पूरे कर चुके थे और तब इस रेस्टोरेंट व इसके हेमबर्गर को देखकर उन्हें ध्यान में आया कि उनका भविष्य इसी में है। उन्होंने सोचा कि जब यह स्वाद देश भर में पसंद किया जाता है, केलिफोर्निया के जितने भी लोग सेनबेर्नार्डिनो शहर में आते हैं तो मेकडानल्ड्स का हेमबर्गर जरूर खाते हैं और कई लोग तो अपने रिश्तेदारों व मित्रों को इसे पैक करके भी भेजते हैं तो रेस्टोरेंट प्रबंधन की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर इसकी फ्रेंचायजी क्यों नहीं दे देते। इसके लिए उन्होंने दोनों भाईयों के सामने प्रस्ताव रखा। चूंकि दोनों भाईयों को इस रेस्टोरेंट को चलाते हुए पूरे 14 साल हो गए थे, वे सफल थे और खुश थे अत: उनका अपना एक माइंडसेट था और उन्होंने कहा कि यह नहीं हो सकता। लोगों को हमारे हाथ के बने ताजा हेमबर्गर पसंद हैं और वे मेकडानल्ड्स पर आना ही पसंद करते हैं। लेकिन रे-क्रॉक की कल्पनाशक्ति तो कुछ और ही बोल रही थी। अत: उन्होंने दोनों भाईयों के साथ एक करार किया और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फ्रेंचायजी के अधिकार उनसे ले लिए। अब जबकि सारे अधिकार उनके पास थे अत: वे इसका नाम भी बदल सकते थे परंतु उन्होंने देखा कि रे-क्रॉक की तुलना में मेकडानल्ड्स ज्यादा अच्छा लगता है अत: उन्होंने कोई नया नाम नहीं रखा और इसकी फ्रेंचाइजी देने की प्रक्रिया पर काम शुरू किया।
1955 :- अप्रैल 15 को उनका पहला फ्रेंचाइजी स्टोर खुला। रे-क्रॉक ने न केवल स्वाद वाले हेमबर्गर उपलब्ध कराए बल्कि इसके भीतरी और बाहरी साजसज्जा का भी पूरा ख्याल रखा। यह एक सेल्फ सर्विस रेस्टोरेंट था लेकिन कुछ इतनी विनम्रता से डिजायन किया गया था कि लोगों को पहले पैसे चुकाने के बाद अपना हेमबर्गर खुद उठाने में बेइज्जती का अहसास नहीं होता था बल्कि उन्हें लगता था कि यह एक नए जमाने का रेस्टोरेंट है। इसकी पहले दिन की बिक्री थी 316.12 डॉलर। किसी नए रेस्टोरेंट के लिए यह उत्साहवर्धक परिणाम था। कल्पना+योजना+विधिसम्मत करार+अहंकार के बिना काम+बाजार का सर्वे+अपने पास उपलब्ध प्रोडक्ट+उसको पसंद किए जाने की संभावनाएं और अपने विचार से सहमत लोगों के समूह को जुटा लेने के बाद जो काम शुरू हुआ तो अपने जीवन की आधी से अधिक उम्र बिता चुके 52 वर्षीय रे-क्रॉक की सफलता का परचम जैसे आसमान की बुलंदियों पर पहुंचने लगा।
1965 :- मात्र 10 सालों में यूनाइटेड स्टेट्स के तमाम देशों में रे-क्रॉक के 700 रेस्टोरेंट सफलतापूर्वक संचालित हो रहे थे। 1958 :- रे-क्रॉक ने अपने रेस्टोरेंट्स की श्रंखला से 100 मिलियन हेमबर्गर्स की बिक्री पूरी की। यह उस समय की बहुत बड़ी संख्या होती है, आज भी यह बड़ी संख्या है। (1 मिलियन अर्थात 10 लाख)यह सबकुछ हुआ केवल तीन वर्षों में। 700 रेस्टोरेंट्स, 100 मिलियन हेमबर्गर्स की बिक्री, निश्चित रूप से सेल्स की दुनिया में एक बड़ा रिकार्ड है। 1961 में मेकडानल्ड्स हेमबर्गर विश्वविद्यालय की शुरूआत हुई, जहां पाककला में स्नातक एवं स्नात्कोत्तर डिग्रियां दी जातीं हैं। यह अपनी तरह की अलग ही यूनिवर्सिटी थी। 1962 में पहली बार मेकडानल्ड्स में रेस्टोरेंट के अंदर कुर्सियां लगाईं गईं और ग्राहकों को बैठकर खाने की सुविधा दी, इससे पहले यह सुविधा नहीं थी। 1964 में मेकडानल्ड्स शेयरबाजार में कूद पड़ा। मेकडानल्ड्स के पहले शेयर की बिक्री 22.50 डॉलर में हुई जो अपनी बेसिक रेट से 12.50 डॉलर ज्यादा था। क्या आप विश्वास कर सकते हैं, आपके शहर का सबसे प्रसिद्ध समोसे बेचने वाला, एक दिन इतना बड़ा आदमी बन सकता है और वह भी केवल अपनी कल्पनाशक्ति व योजना के आधार पर ..?
1967 :- दुनिया के 118 देशों में मेकडानल्ड्स के रेस्टारेंट की विशाल श्रंखला मौजूद थी।
1978 :- जापान के कनागावा शहर में मेकडानल्ड्स का 5000वां रेस्टोरेंट शुरू हुआ।
1980 :- जर्मनी के मुनिच शहर में मेकडानल्ड्स का 6000वां रेस्टोरेंट शुरू हुआ।
1984 :- रे-क्रॉक ने दुनिया को अलविदा कहा। कुल 84 साल की उम्र में से 52 साल तक वे एक सेल्समेन थे और बचे हुए 30 सालों में वे दुनिया की सबसे बड़ी और आश्चर्यजनक रेस्टोरेंट श्रृंखला के मालिक रहे। वो चले गए, लेकिन उनका नाम अमर हो गया, आज भी मेकडानल्ड्स दुनिया की सबसे बड़ी रेस्टोरेंट श्रृंखला है और सबसे खास बात यह कि मेकडानल्ड्स में हेमबर्गर का स्वाद जैसा केलिफोर्निया में होता है वैसा ही इन्दौर के ट्रेजर आइसलेण्ड में। पूरी दुनिया में बिल्कुल एक ही स्वाद। स्वाद के मामले में यह जादू या तो द्वापरयुग में भक्त सुदामा ने किया था या इस कलयुग में रे-क्रॉक ने कर दिखाया। आपको याद ही होगा, भक्त सुदामा ने एक ऐसी मिठाई बनाई जो कई दिनों तक बासी नहीं होती, जी हां, मथुरा के पेड़े। आपको क्या लगता है उम्र के 52 साल बाद एक सेल्समेन रे-क्रॉक को मिली यह सफलता किसका परिणाम थी।
1. क्या वो बाजार में सबसे ज्यादा बिकने वाले प्रोडक्ट को बेचने निकला था..? 2. क्या उससे पहले किसी ने यह व्यवसाय किया था..?
3. क्या उसने किसी भी दूसरे प्रतिष्ठान की व्यवस्था को हूबहू स्वीकार किया था..? 4. क्या उसने ऐसा कुछ सोचा था ”जो आजतक नहीं हुआ अब कैसे होगा..?
5. क्या वह भाग्य या केवल ईश्वर भरोसे था…?
नहीं, रे-क्रॉक ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। उसने कुछ नया सोचा, ऐसा जो उससे पहले किसी ने नहीं सोचा था। वह असली कर्मयोगी था। अब सवाल यह उठता है कि क्या ऐसा कुछ नया सोचने की शक्ति ईश्वर ने केवल रे-क्रॉक को ही दी थी..? क्या आप कुछ नया नहीं सोच सकते, क्या आप राजस्व वृद्धि के लिए कुछ ऐसा नहीं कर सकते जो इससे पहले किसी ने न किया हो। पूरी दुनिया में नहीं तो न सही, अपने पूरे शहर में तो फैल सकते हैं। एक 52 वर्षीय वयोवृद्ध सेल्समेन यदि अपने माइंडसेट और परंपराओं को तोड़ सकता है तो क्या वो लोग नहीं तोड़ सकते जो उससे कम उम्र के हैं। क्यों हम किसी परिवर्तन का कारण नहीं बनते, क्यों हम हर परिवर्तन को सबसे पहले अस्वीकार कर देते हैं और फिर उसी व्यवस्था का तब मजा लेने लगते हैं जब कुछ दूसरे लोग उसे स्वीकार करते हैं। क्यों हम दूसरों की नकल करने की आदत नहीं छोड़ते, क्यों हम अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग नहीं करते। क्यों हम खुद से तर्क नहीं करतेक्यों हम केवल और केवल किसी भी व्यवस्था के बिफल होने के कारण तलाशते हैं। क्यों हम सकारात्मक रहते हुए किसी भी नए प्रस्ताव पर विचार नहीं करते। क्यों हम कल्पनाओं से डरते हैंक्यों हम विकास की योजनाएं नहीं बनाते। क्या हम इसके लायक नहीं, अयोग्य हैं, अतार्किक हैं, भेड़ की प्रजाति से हैं जो एक के पीछे एक चला करती हैं। नए रास्ते नहीं तलाशती। कीजिए, खुद से सवाल कीजिए, जबाव भी खुद को ही दीजिए।
क्यों मैं रे-क्रॉक नहीं बन सकता…? साभार
रे-क्रॉक का जन्म: 5 अक्तूबर 1902, को ओक पार्क, इलिनॉय, संयुक्त राज्य अमेरिका व उनकी मृत्यु: 14 जनवरी 1984,को सैन डिएगो, कैलिफ़ोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी ।