भारत की एक बहुत अच्छी परम्परा में प्रश्न माने जाते हैं। ये जिज्ञासा के प्रतीक हैं। हमारा पूरा वैदिक साहित्य इन्हीं प्रश्नों की देन है। पुराणों में प्रश्न किये गये तो उनके उत्तर में अथाह ज्ञान सामने आया। महा धनुर्धर अर्जुन कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान कृष्ण से प्रश्न न पूछते तो भगवद् गीता जैसा गं्रथ हमें कैसे मिलता। हम अनादिकाल से सत्यनारायण की कथा सुनते आ रहे हैं जिसमें ऋषि गण नारद मुनि से पृथ्वी के लोगों का कष्ट बताते हुए उसके निवारण का उपाय पूछते हैं तो नारद जी उन्हें भगवान सत्यनारायण के बारे में बताते हैं। इस प्रकार के ढेर सारे उदाहरण मिलते हैं जब जनकल्याण में सवाल उठाये गये। ये सवाल अब भी उठाये जाते हें लेकिन कभी प्रत्यक्ष रूप में तो कभी अप्रत्यक्ष रूप में। बच्चा रोता है, तो अप्रत्यक्ष रूप से ही वह सवाल उठाता है कि मुझे दूध चाहिए। बड़े होने पर वह प्रत्यक्ष रूप से अपनी बात कह देता है। हरियाणा के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अशोक खेमका उम्रदराज तो हो गये लेकिन उन्होंने सवाल अप्रत्यक्ष रूप से ही किया है। उनका सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग से तबादला कर दिया गया। श्री खेमका ने इसका कोई विरोध नहीं किया लेकिन इतना जरूर कहा कि यह क्रैश लैंडिंग है। इस प्रकार उन्होंने संकेतों में सवाल किया है।
अशोक खेमका की गिनती ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसरों में होती है। हालांकि देश की जनता के गले से यह बात कतई नहीं उतरती कि कोई नेता अथवा अधिकारी पूरी तरह दूध में धुला हुआ है। एक-दो अगर मिल भी जाएं तो वे अपवाद स्वरूप हैं। सरकारी योजनाओं में सभी का हिस्सा तय हो चुका है। इसके लिए मांगना नहीं पड़ता और इसे ईमानदारी में शामिल कर लिया गया है। इसलिए अधिकारियों में भी हम उसे ईमानदार मान लेते हैं जो गलत काम करने से इनकार कर देता है। अशोक खेमका हरियाणा में उस समय चर्चा में आये थे जब वहां सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा की जमीन सौदे को उन्होंने अनियमित बताते हुए उसकी जांच करायी। हरियाणा में उस समय कांग्रेस की सरकार थी और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री हुआ करते थे। श्री हुड्डा ने अशोक खेमका का उस विभाग से ट्रांसफर कर दिया। प्रशासनिक अधिकारी के साथ इतना ही किया जा सकता है। अशोक खेमका का उस समय जब ट्रांसफर किया गया, तब इसके पीछे के कारण पर जोरदार चर्चा हुई। विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था। अब इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि जब हरियाणा में भाजपा की सरकार है, तब भी अशोक खेमका का ऐसे समय तबादला किया गया जब पेेंशन के मामले में पारदर्शिता सामने आने वाली थी।
इसीलिए अशोक खेमका का कहना है कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग से उनका तबादला होना क्रैश लैंडिंग है। विमानों से जुड़ा उन्होंने उदाहरण दिया तो उसे और स्पष्ट करते हुए वह कहते हैं कि अगर जनहित में तबादला हो तो यह सरकार का क्षेत्र अधिकार है। नौकरशाही को उचित जगह तैनात करना सरकार का काम है ताकि सरकार अपनी योजनाओं को जिस तरह से चलाना चाहती है, उनका बेहतर कार्यान्वयन हो सके। इसीलिए श्री खेमका ने जनहित को तबादले के साथ जोड़ा लेकिन उन्होंने इसके साथ ही एक अप्रत्यक्ष प्रश्न भी उठाया कि अगर आप किसी के निजी स्वार्थ के लिए अधिकारी का तबादला करते हैं तो यह अत्यंत दुखदायी है। इसका मतलब कि निजी स्वार्थ से भी तबादला किये जाते हैं और जनता यह बात अच्छी तरह से जानती भी है। श्री खेमका ने अपने तबादले का उल्लेख नहीं किया लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से बात उसी संदर्भ में कह दी। वे कहते हैं कि किसी राकेट ने मंगल ग्रह के लिए उड़ान भरी मगर जब आपने वायुमंडल क्रास कर लिया, तभी मैसेज आ जाए कि आप स्टेशन पर वापस आ जाओ तो इसे क्या कहा जाए?
श्री अशोक खेमका के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है। श्री खेमका ने इसका उल्लेख भी कर दिया कि राज्य में फर्जी पेंशन पाने वालों की पहचान के लिए आधार कार्ड से लिंक करवाने के प्रयास अब सिरे चढऩे की कगार पर है। यह लम्बी उड़ान भरी गयी। श्री खेमका प्रश्न उठाते हैं कि क्या आज जो पेंशन प्राप्त कर रहे हैं, वे सही हैं? यह सवाल जनता से पूछा जाए तो स्पष्ट जवाब आएगा कि कतई सही नहीं है। अभी कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से एक खबर अखबारों में छपी थी कि ३० ऐसे लोगों का पता चला जो अब इस दुनिया में नहीं हैं अर्थात् उनकी मृत्यु हो चुकी है लेकिन उनके नाम पर पेंशन जारी हो रही थी। यह पेेंशन कौन ले रहा था और कैसे जारी की जा रही थी, इसके पीछे की कहानी भ्रष्टाचार से भरी है। ऐसे लोगों को सजा मिलनी चाहिए क्योंकि वे सरकारी योजना के साथ धोखा कर रहे हैं और दूसरे गरीबों अथवा अन्य प्रकार के पात्रों का हक मार रहे हैं। हरियाणा में श्री खेमका पेेंशन के सच को उजागर करने वाले थे लेकिन बीच राह में ही उनका तबादला कर दिया गया। वह कहते हैें कि हम यह मानने को तैयार नहीं कि कोई उनका उत्पीडऩ कर सकता है। यह एक ईमानदार आदमी का साहस है जो जानता है कि ईमानदारी को सजा की भी एक सीमा है, उससे आगे कोई नहीं बढ़ सकता। इसलिए खेमका कहते हैं कि मैं अपना हौंसला नहीं खोता हूं, मैं अन्यायियों को मुंहतोड़ जवाब देने में विश्वास करता हूं। शासन की योजनाएं लागू नहीं होने का दुख है। अपने नये विभाग के बारे में वह कहते हैं कि वैसे तो मुझे अच्छा महकमा मिला है लेकिन मुझे दुख इस बात का है कि समाज कल्याण विभाग में सुधार की कुछ प्रक्रियाएं चल रही थीं, वे अधूरी रह जाएंगी।
योजनाएं ही क्यों, ये प्रश्न भी अधूरा रह जाएगा कि कोई राकेट जब मंगल ग्रह के लिए रवाना होने पर वायुमंडल के दबाव को पारकर जाता है, तब उसे स्टेशन पर लौटने का निर्देश क्यों दिया जाता है। असली समस्या तो वायुमंडल के दबाव को पार करने की ही है? यही वायुुमंडल का दबाव हमारी सभी व्यवस्थाओं को घुन लगा रहा, उन्हें जर्जर बना रहा है। नौकरशाही में तो कई मिसालें दी जा सकती हैं। मुंबई में जीके खैरनार को इसी वायुमंडल के दबाव ने आगे बढऩे नहीं दिया था। उत्तर प्रदेश की एक प्रशिक्षु आईएएस महिला अधिकारी ने खनन माफिया पर शिकंजा कसा तो उसे राष्ट्र विरोधी बयान देने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था। बाद में आईएएस लॉबी ने दबाव बनाया तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को उस महिला अधिकारी को बहाल करना पड़ा था। सरकार सार्वजनिक रूप से बयान देती है कि अधिकारी अपना कार्य ईमानदारी से करें, उन पर कोई दबाव नहीं डाला जाएगा लेकिन उन पर वायमुंडल वाला दबाव ही भारी पड़ता है। पंजाब में प्रवर्तन निदेशालय के सहायक निदेशक को इसीलिए पश्चिम बंगाल भेज दिया गया था क्योंकि उनके हाथ एक ऐसे ड्रग माफिया की गर्दन तक पहुंच गये थे जो तत्कालीन सरकार का बेहद नजदीकी रितेदार था।
एक गंभीर प्रश्न यह है कि इसका न्याय कौन करेगा क्योंकि न्याय व्यवस्था स्वयं इस प्रकार के वायुमंडलीय दबाव में फंसी है। सुप्रीम कोर्ट ने जजों के नाम पर रिश्वत मांगने के मामले में एसआईटी जांच वाली याचिका गत १४ नवम्बर २०१७ को खारिज कर दी है। कोर्ट ने याचिका को अपमानजनक बताते हुए याचिकाकर्ता वकीलों की निंदा भी की है। कामिनी जायसवाल नामक एक महिला ने याचिका में एक न्यायाधीश जस्टिस खान विलकर को हटाने की मांग की थी। जस्टिस खान विलकर ने खुद को हटने से इनकार कर दिया था। पीठ ने कहा कि ऐसी याचिका से संस्थान को नुकसान पहुंचाया गया है। न्याय व्यवस्था का हम भी सम्मान करते हैं, उसका आदेश और निर्देश शिरोधार्य है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस संतोष हेगड़े ने यह टिप्पणी क्यों की है कि अगर न्यायपालिका ने खुद को नहीं संभाला तो भगवान ही भारत को बचा सकता है। दरअसल एक महत्वपूर्ण सवाल उठ रहा है कि क्या देश के मुख्य न्यायाधीश को भ्रष्टाचार के उस मामले की सुनवाई करनी चाहिए जिसमें वे खुद एक पक्ष हो सकते हैं,? सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके केजी बालाकृष्णन पर उनके एक साथी जज ने ही कई गंभीर आरोप लगाये थे। उनके परिवार के सदस्यों की आय से अधिक सम्पत्ति की जांच भी हुई थी। इसी प्रकार जस्टिस कर्णन का मामला भी न्यायपालिका पर सवाल जैसा ही था। ऐसे हालात में प्रशासनिक अधिकारी अशोक खेमका का सवाल कहां टिकेगा? (हिफी)
