गुजरात विधानसभा चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण समीकरण बना हुआ पटेल समुदाय ही इस बार भी सरकार तय करेगा। भाजपा का यह प्रमुख वोट बैंक रहा है लेकिन जब श्री नरेन्द्र मोदी 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने तब आनंदी बेन पटेल के मुख्यमंत्री बनते ही पाटीदार समुदाय को आरक्षण की मांग करते हुए युवा नेता हार्दिक पटेल ने आंदोलन शुरू कर दिया। यह आंदोलन लगातार तीव्र हुआ और भाजपा ने सुनियोजित रणनीति के तहत विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बनाकर और पटेल समुदाय के नेता नितिन पटेल को उप मुख्यमंत्री बनाया ताकि पाटीदार समुदाय को समझाया जा सके लेकिन हार्दिक पटेल ने जो आग लगायी थी उसे नियंत्रित करना उनके वश में भी नहीं रह गया था। आंदोलन हिंसक भी हुआ तो कई लोगों के खिलाफ कार्रवाई हुई। हार्दिक पटेल को भी जेल जाना पड़ा। इसके बाद विधानसभा चुनाव में हार्दिक पटेल और उनके साथियों ने जब भाजपा की सरकार फिर से न बनने देने की आवाज उठाई तो हार्दिक पटेल के सामने कांग्रेस का साथ देने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं बचा था। इस बीच सीटों को लेकर वे सौदेबाजी कर सकते थे यही किया और आरक्षण को लेकर वादा करा लिया।
लगभग दो दशक से गुजरात की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा चुनाव में हमेशा कांग्रेस से ही मुख्य रूप से मुकाबला करना पड़ा है लेकिन इस बार जैसी कड़ी चुनौती उसे कभी नहीं मिली है। इसका कारण पटेल समुदाय के वोटों की बगावत है। हालांकि भाजपा ने पटेल समुदाय को तोड़ने की भरपूर कोशिश की है। दो दर्जन से ऊपर पटेल समुदाय के प्रत्याशी पहली सूची में ही घोषित कर दिये। हार्दिक के तीन निकटवर्ती साथियों को भाजपा ने तोड़ लिया लेकिन उनके बयान पर भी गौर करें तो नाराजगी साफ तौर पर देखी जा सकती है। उन्होंने कहा था कि हमने कांग्रेस को जिताने के लिए आंदोलन नहीं किया था। इस प्रकार वे अपनी पहले की गयी घोषणा का खंडन भी नहीं कर रहे हैं। पाटीदार आंदोलन के नेता यही कहते थे कि इस बार भाजपा को हराना है। हार्दिक पटेल इस स्थिति को अच्छी तरह समझते हैं। उन्होंने इसीलिए कांग्रेस पर दबाव बनाया और कांग्रेस ने भी पाटीदार आरक्षण पर सहमति जता दी। पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पास) और कांग्रेस के बीच 19 नवम्बर को आरक्षण मुद्दे पर सहमति बनी है। कांग्रेस के साथ बैठक के बाद पाटीदार आंदोलन के नेता और संयोजक दिनेश बम्भानिया ने बताया था कि आरक्षण के मामले में कांग्रेस से सहमति बन चुकी है। उस बैठक में हार्दिक पटेल मौजूद नहीं थे। हार्दिक पटेल के बेहद करीबी नेता माने जाने वाले दिनेश बम्भानिया ने बताया था कि हमने पहले भी कांग्रेस से इस मुद्दे पर अपना नजरिया स्पष्ट करने को कहा था। उस समय कांग्रेस ने संविधान के अनुसार काम करने की बात कही थी। श्री बम्भानिया के अनुसार पाटीदार आंदोलन समिति ने भी आरक्षण देने को लेकर कई विकल्प प्रस्तुत किये। इससे कांग्रेस को रास्ता मिला। इस प्रकार दोनों में सहमति बन गयी।
इस बैठक में हार्दिक पटेल का शामिल न होना कुछ सवाल तो उठाता ही है क्योंकि आंदोलन का नेतृत्व करने के साथ ही कांग्रेस से समझौता करने तक में वही आगे-आगे चल रहे थे। दिनेश वम्भानिया भी यही कहते हैं कि मैं यह कह सकता हूं कि कांग्रेस के साथ करार हुआ है। पास नेताओं के साथ बैठक में गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी, सिद्धार्थ पटेल और बाबू भाई मंगोकिया शामिल हुए थे। इसलिए यह कहा जा सकता है कि नेतृत्व के स्टैण्डर्ड को कायम रखते हुए हार्दिक पटेल बैठक में शामिल नहीं हुए क्योंकि कांग्रेस के मुख्य नेता राहुल गांधी भी बैठक में शामिल नहीं थे। गुजरात प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी को लेकर भी यह चर्चा हुई थी कि वे कांग्रेस आला कमान से नाराज चल रहे हैं। हालांकि श्री सोलंकी ने इस मामले पर अपना बयान जारी किया और कहा कि अगले महीने होने जा रहे विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन पार्टी आला कमान से मेरी कोई नाराजगी नहीं है। श्री सोलंकी को लेकर यह कहा जा रहा था कि उम्मीदवारों के चयन को लेकर वह नाखुश हैं। अब श्री सोलंकी के नेतृत्व में ही पाटीदार नेताओं के साथ बैठक में आरक्षण पर सहमति होना यही दर्शाता है कि कांग्रेस श्री सोलंकी को कितना महत्व देती है।
इस बीच कांग्रेस ने 77 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। कांग्रेस ने इस बार पार्टी के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदारों में शामिल शक्ति सिंह गोहिल को मांडवी सीट से अपना उम्मीदवार घोषित किया है। मौजूदा समय में वह अन्दासा से विधायक हैं। इस प्रकार श्री गोहिल का चुनाव क्षेत्र बदल गया है। पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल तो उम्र कम होने से चुनाव नहीं लड़ सकते फिर भी 8 नेताओं को टिकट देने की बात तय हुई है। कांग्रेस ने पाटीदार अनामत आंदोलन के नेता ललित बसोया को वोरा जी से प्रत्याशी बनाया है। मुख्यमंत्री विजय रूपानी के विरोध में कांग्रेस ने इन्द्रानील राजगुरु को खड़ा किया है। श्री विजय रूपानी ने भी पटेलों का समीकरण सुलझाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल की शरण लेना जरूरी समझा है। इसीलिए श्री रूपानी नामांकन दाखिल करने से पहले केशूभाई पटेल से मुलाकात करने पहुंचे थे। विजय रूपानी राजकोट (पश्चिम) से चुनाव लड़ रहे हैं जहां पटेलों का दबदबा है। हार्दिक पटेल पाटीदार आरक्षण आंदोलन के सबसे बड़े नेता हैं। वह पाटीदारों को ओबीसी श्रेणी के तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग कर रहे हैं। हार्दिक पटेल करीब 6 साल पहले सरदार पटेल समूह से जुड़े थे और 2015 में पाटीदार अनामत आंदोलन समिति का निर्माण किया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पाटीदार आरक्षण मुद्दे पर सहमति बन जाने से गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फायदा हो सकता है क्योंकि समझौते की खबर से ही आंदोलन समिति का समर्थन कांग्रेस को मिलेगा। इससे भी महत्वपूर्ण यह होगा कि हार्दिक पटेल अगर सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस को समर्थन का ऐलान करते हैं तो इससे कांग्रेस को सीधा समर्थन मिल जाएगा। गुजरात मंे पाटीदारों के करीब 16 फीसद वोट माने जाते हैं। भाजपा ने 15 प्रत्याशी पाटीदारों को उतारकर कुछ वोट काट ही लिये हैं लेकिन पाटीदारों का ज्यादा हिस्सा कांग्रेस को मिल गया तो चुनाव का पलड़ा कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है।
यही कारण माना जा रहा है कि भाजपा ने आदिवासी वोटों पर पकड़ मजबूत करने का प्रयास किया है। राज्य के दाहोम, नर्मदा, डांग, तापी और बलसाड जैसे जिलों में आदिवासियों की आबादी 50 फीसद से ऊपर हैं डांग मंे तो 94 फीसद आदिवासी रहते हैं। भाजपा ने पटेल जैसे समुदाय के छिटकने वाले वोटों की भरपाई के लिए आदिवासी वोटों को एकजुट करने का फार्मूला बनाया है। भाजपा को भरोसा है कि आरएसएस के वनवासी कल्याण कार्यक्रम और राज्य सरकार की आदिवासी कल्याण योजनाओं का असर पड़ेगा। हालांकि कांग्रेस ने भी आदिवासी वोटरों को लुभाने का भरपूर प्रयास किया है। इस प्रकार कांग्रेस की सफलता मुख्य रूप से हार्दिक पटेल पर टिकी है और हार्दिक पटेल की भी मजबूरी अब कांग्रेस है क्योंकि भाजपा के पास वे जा नहीं सकते। (हिफी)
