दक्षिण अफ्रीका के देश जिम्बाब्वे में सत्ता की उथल-पुथल ने दुनिया भर के राजनीतिकों को एक उपदेश भी दिया है। यह उपदेश है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के लिए उनकी जनता ही परिवार बन जाती है और वे उस परिवार के मुखिया होते हैं। मुखिया के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने जैसे लिखा है-मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान को एक, पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित विवेक अर्थात जिस तरह मुख खाने-पीने के लिए एक होता है लेकिन वह अपने लिए अथवा किसी विशेष अंग के लिए भेद नहीं करता बल्कि पूरे शरीर का पालन-पोषण करता है। जिम्बाब्वे के निवर्तमान राष्ट्रपति राबर्ट मुगावे ने जब तक इस प्रकार के मुखिया का दायित्व निभाया, तब तक वे वहां की जनता के सिरमौर बने रहे लेकिन जब वह अपने से लगभग 40 साल छोटी पत्नी ग्रेस के कहने पर चलने लगे तब से वहां की जनता उनके विरोध में खड़ी होने लगी। राबर्ट मुबावे ने ग्रेस के ही त्रियाहठ के चलते उपराष्ट्रपति मनंगाग्वा को बर्खास्त किया था और यही कदम उनके लिए वाटर लू साबित हो गया। सेना ने उनको सत्ता से बेदखल करते हुए नजरबंद कर लिया। अब देश के उपराष्ट्रपति रहे मनंगाग्वा ही जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं और उन्हें भी यह ध्यान में रखना पड़ेगा कि मुखिया के लिए परिवार के मायने क्या होते हैं।
जिम्बाव्वे की आजादी के बाद ही राबर्ट मुगावे ने सत्ता संभाल ली थी। ब्रिटिश साम्राज्य से आजाद होने में जिम्बाब्वे के लोगों ने बहुत संघर्ष किया था। कितने ही लोगों की जान चली गयी। उस समय राबर्ट मुगावे ने देश की जनता को अपना परिवार समझ रखा था। आजादी के बाद जब लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत देश में चुनाव हुए तो जिम्बाब्वे की जनता ने रावर्ट मुगावेे को भारी बहुमत से सत्ता सौंपी थी लेकिन अगले चुनाव आने तक मुगावे ने जब देश के संविधान को तैयार करवाया तो जनता की नाराजगी भी सामने आयी और चुनाव में जनता ने यह नाराजगी प्रकट भी कर दी। देश में राबर्ट मुगावे को सरकार बनाने का अवसर जरूर मिल गया लेकिन मामूली बहुमत से राबर्ट मुगावे की पार्टी ने सरकार बनायी थी। राबर्ट मुगावे के लिए यह पहला सबक था और उससे उन्होंने शिक्षा भी ग्रहण की थी। संविधान में उन प्रावधानों को खत्म किया गया जिनसे जनता नाराज थी। इस प्रकार जब अगला चुनाव हुआ तब राबर्ट मुगावे की पार्टी के अंदर तानाशाही प्रवृत्ति पनपने लगी थी। उन्होंने देश के संविधान में संशोधन करवाकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पदों को एक में मिला दिया। इस प्रकार राबर्ट मुगावे देश के सर्वेसर्वा बन गये। इसी दौरान उनके जीवन में ग्रेस का पदार्पण हुआ और वे राबर्ट मुगावे के राजकाज में भी हस्तक्षेप करने लगीं। ग्रेस का यह व्यवहार मनंगाग्वा को पसंद नहीं आया।
मनंगाग्वा कोई सामान्य नेता नहीं हैं। उन्होंने 1970 में ही जिम्बाव्वे की आजादी को राह दिखाई थी और उसी समय से जनता का एक बड़ा वर्ग उनके साथ था। इसके बाद 1980 में जब आजादी की फैसलाकुन लड़ाई हो रही थी तब मनंगाग्वा की भूमिका राबर्ट मुगावे से कम नहीं आंकी जा रही थी लेकिन उनकी छवि एक चालाक और क्रूर नेता के रूप में बनी थी। जिम्बाब्वे के लोग उन्हें क्रोकोडाइल (मगर मच्छ) कहते थे और यह नाम उनका अब भी प्रचलित है। जिम्बाब्वे की सरकार में वह न्याय व रक्षामंत्री रह चुके हैं इसलिए सेना पर उनका प्रभाव रहा है। मौजूदा संसद के चुनाव 2008 को हुए थे तब विपक्षी दलों को प्रताड़ित करने और विरोधियों पर हमले कराने जैसे आरोप उन पर लगे थे। देश का उन्हें उपराष्ट्रपति बनाया गया लेकिन मुगावे की पत्नी ग्रेस उनका विरोध कर रही थीं। ग्रेस अपने समर्थक को उपराष्ट्रपति बनाना चाहती थी। उन्होंने मुगावे को लगभग तैयार कर लिया था कि 94 वर्ष की उम्र होने के कारण मुगावे अब अपनी पत्नी ग्रेस को उत्तराधिकारी घोषित कर दें। राबर्ट मुगावे ने मनंगाग्वा को उपराष्ट्रपति के पद से बर्खास्त कर दिया। इसी बात पर मनंगाग्वा ने देश छोड़ दिया लेकिन सेना से उनके सम्पर्क बने रहे। सेना ने राष्ट्रपति भवन को घेरकर राबर्ट मुगावे और उनकी पत्नी को नजरबंद कर दिया। सरकारी मीडिया पर कब्जा कर लिया गया लेकिन सेना प्रमुख ने देश में तख्ता पलट की खबरों का स्वयं खंडन किया। राबर्ट मुगावे ने अपने अधिकारों का प्रयोग करना चाहा लेकिन देश भर में सड़कों पर जनता उनके खिलाफ प्रदर्शन कर रही थी। इसलिए मजबूर होकर राबर्ट मुगावे को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। सेना पर मनंगाग्वा की पकड़ कितनी मजबूत है, यह इसी से समझा जा सकता है कि सेना ने सत्ता अपने हाथ में नहीं ली और मनंगाग्वा को राष्ट्रपति बनाने की भूमिका निभाई। बताया जा रहा है कि 24 नवम्बर को मनंगाग्वा राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे।
श्री मनंगाग्वा जिम्बाब्वे के बड़े समुदाय शोना के कारंगा समूह के नेता है। सत्तारूढ़ पार्टी जेडए एनयू-पीएफ की सभी व्यापारिक गतिविधियां मनंगाग्वा ही संभालते हैं। देश की जनता उन्हें क्रोकोडाइल नेता कहती है और पूर्व सैनिकों का भी यही अनुभव रहा है कि मनंगाग्वा बेहद क्रूर शासक हैं लेकिन सेना पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत है। उन्हें जब उपराष्ट्रपति पद से बर्खास्त किया गया था तब उन्हें आशंका थी कि राबर्ट मुगावे की पत्नी ग्रेस कहीं उनकी हत्या न करवा दें, इसलिए मनंगाग्वा देश छोड़कर चले गये थे। उनकी अनुपस्थिति में ही सेना ने राबर्ट मुगावे और ग्रेस को नजरबंद किया था। देश की जनता का रुख देखकर मनंगाग्वा गत 22 नवम्बर को अपने वतन वापस आ गये और सीधे सेना के एयरबेस पर पहुंचे थे। राबर्ट मुगावे के इस्तीफा देने के बाद जनता के विरोध को देखते हुए उन पर महाभियोग का मुकदमा चलाने की बात भी कही गयी थी लेकिन अब पूर्व उपराष्ट्रपति मनंगाग्वा को राष्ट्रपति बनाने की तैयारी हो चुकी है तो राबर्ट मुगावे पर महाभियोग की कार्यवाही भी स्थगित कर दी गयी है।
राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने जा रहे मनंगाग्वा को बहुत थोड़े समय में जनता के बीच अपनी अच्छी छवि बनानी होगी। देश में अगले चुनाव 2018 में ही होने वाले हैं। मनंगाग्वे अगर तानाशाह बनकर काम करते हैं और चुनाव को टालने का प्रयास करेंगे तो मुगावे की पत्नी ग्रेस को उनके खिलाफ जनमत तैयार करने का अवसर मिल जाएगा क्योंकि अर्से से वे भी वहां की राजनीति में सक्रिय हैं और अच्छे खासे उनके समर्थक भी हो गये हैं। मनंगाग्वा बदले की कार्रवाई करेंगे, तब भी उनको विपरीत स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए मनंगाग्वा के लिए यह कठिन परीक्षा का समय होगा। उन्हें अपने स्वभाव में बदलाव लाना पड़ेगा तथा जनता को विश्वास दिलाना होगा कि वे जनता के हित में और देश के विकास के लिए कार्य कर रहे हैं। मुगावे के इस्तीफा देने के बाद ही देश की जनता ने जिस तरह की खुशी जतायी थी उसे बरकरार रखना अब मनंगाग्वा का कर्तव्य बन गया है। यही जनता उनका परिवार है। (हिफी)