संजय लीला भंसाली की बहुचर्चित फिल्म पद्मावती आगामी एक दिसम्बर को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली थी लेकिन देश भर में जबर्दस्त विरोध के चलते उसका प्रदर्शन टाल दिया गया है। कई लोग कहते हैं कि संजय लीला भंसाली ने खुद ही कन्ट्रोवर्सी पैदा की ताकि फिल्म का भरपूर प्रचार हो जाए। उनके तर्क को भी निराधार नहीं कहा जा सकता। राजस्थान में जब इस फिल्म की शूटिंग शुरू हुई थी, तभी राजपूतों की करणी सेना ने सेट को जला दिया था। उस समय तो इस फिल्म की कहानी पर चर्चा भी नहीं हुई थी। अब भंसाली ने चार पत्रकारों को फिल्म दिखा दी तो सेन्सर बोर्ड ने हाय तौबा मचा दिया। सेन्सर बोर्ड ने हालांकि फिल्म की रिलीज इस लिए रोकी थी क्योंकि जरूरी कागजात नहीं थे लेकिन बाद में उसका मुख्य आरोप यह हो गया कि बिना सेंसर बोर्ड का प्रमाण पत्र लिये पब्लिक में से किसी को भी यह फिल्म क्यों दिखाई गयी? इसी बीच प्रदर्शन विरोध काफी गहरा गया। सांसदों, विधायकों और मुख्यमंत्रियों ने भी अपना विरोध प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से दिखाया है। करणी सेना के कुछ अतिवादियों ने तो फिल्म की नायिका दीपिका पादुकोण की नाक काटने तक की धमकी दे डाली। इसलिए रानी पद्मावती को लेकर कुछ बातें जान लेना बहुत जरूरी है।
हम लोग बचपन से एक गाना सुनते आये हैं- ये है अपना राजपुताना नाज जिसे तलवारों पर, जिस ने अपना जीवन झेला बर्छी तीर कटारों पर कूद पड़ी थीं जहां हजारों पदमिनियां अंगारों पर, इस धरती को नमन करो यह धरती है बलिदान की। आओ बच्चो, तुम्हें दिखाये झांकी हिन्दुस्तान की। उस समय 15 अगस्त और 26 जनवरी को जब हम लोग स्कूल में झंडा फहराने जाते थे, तब स्कूल के दो बच्चे, जिन्हें पहले से खूब तैयारी करायी जाती थी, वे इस गीत को गाते थे और बाकी सब लोग उन लाइनों को दोहराते थे। उस समय आजकल की तरह रिकार्डिंग का प्रचलन ही नहीं था और हमारे गांव के प्राइमरी पाठशाला समरेहटा में तो इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। तब इस गीत का मतलब भी ठीक से नहीं मालूम था। हालांकि मलिक मोहम्मद जायसी की पुस्तक पद्मावत उस समय आ चुकी थी लेकिन बच्चे तो दूर शिक्षको को भी उसके बारे में नहीं मालूम था, वरना वे दुनिया भर की कहानियां सुनाते थे, तो पद्मावती के बारे में भी जरूर बताते। यह बात बहुत दिनो के बाद समझ मंे आयी कि राजस्थान चित्तौड़गढ़ का इतिहास क्या था। चित्तौड़गढ़ के किलों का इतिहास बड़ा गौरवशाली रहा है। 12वीं और 13वीं शताब्दी में चित्तौड़ में राजपूत राजा रावल रतन सिंह राज करते थे। बताते हैं उनका राज एक साल और कुछ महीने का ही रहा। सिसोदिया राजवंश के राजा रतन सिंह बहादुर और महान योद्धा थे। रानी पद्मिनी के बारे में कुछ इतिहास कारों का मानना है कि उनका कोई अस्तित्व ही नहीं था। मलिक मोहम्मद जायसी ने 15वीं शताब्दी में अपना काव्य पद्मावत के नाम से लिखा और उसमे राजा रावल रतन सिंह, उनकी रानी पद्मिनी और मुस्लिम आक्रमणकारी अलाउद्दीन खिलजी की त्रिकोणात्मक कहानी लिखी? ठीक उसी तरह जैसे मुगलेआजम में सलीम और अनार कली की कहानी है, जिसे इतिहासकार कपोल कल्पित मानते हैं। अलाउद्दीन के इतिहासकारों ने इसे रचा और अपने तरीके से इतिहास बनाया।
दूसरी तरफ कई लोगों ने शिला लेख, प्राचीन पुस्तकों और दंतकथाओं पर पद्मिनी को इतिहास की रानी बताया है। उनके अनुसार रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप, जिसे आज हम श्रीलंका के नाम से जानते हैं, के राजा गंधर्व सेन की पुत्री थीं। उनकी माता का नाम चम्पावती था। कुछ लोग रानी पद्मिनी का जन्म स्थान मध्यप्रदेश बताते हैं। रावल रतन सिंह ने पद्मिनी को स्वयंवर में जीतकर अपनी रानी बनाया था। रानी पद्मिनी बहुत खूबसूरत थी। रावल रतन सिंह की इससे पूर्व 13 रानिया हो चुकी थीं लेकिन पद्मिनी से शादी करने के बाद उन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया। राजा रतन सिंह को कला का शौक था और उनके दरबार के एक गायक राधव चेतक ने गद्दारी की। उसे सजा मिली तो वह बदले की आग में जलकर अलाउद्दीन खिलजी के पास जाकर पद्मिनी की सुन्दरता का बखान करने लगा। खिलजी ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की लेकिन उसकी लड़ने की हिम्मत नहीं हुई, तब उसने संदेश भेजा कि वह रानी पद्मिनी से बहन की हैसियत से मिलना चाहता है। हालांकि यह बात भी राजपूती शान के खिलाफ थी लेकिन सुल्तान के रोष से बचने के लिए रतन सिंह यह बात मान लेते है। रानी पद्मिनी शर्त रखती हैं कि सुल्तान उनका आइने में प्रतिबिम्ब देख सकते है। इसके लिए विशेष तैयारी की गयी। बताते हैं चित्तौड़ में वह स्थल आज भी मौजूद है। चर्चित इतिहास के अनुसार जब रतन सिंह अलाउ्दीन को पहुंचाने जा रहे थे, तभी खिलजी ने उन्हें बंदी बना लिया और उनको छोड़ने के लिए पद्मिनी की मांग की। इधर, चितौड़ में रतन सिंह के दो बहादुर सेनापति गोरा और बादल पालकियों में राजपूत सैनिकों को लेकर चलते हैं। खिलजी के सैनिक समझते है कि रानी पद्मिनी आ रही हैं। गोरा-बादल बहादुरी से युद्ध करके रतन सिंह को छुड़ाकर किले तक ले आते हैं। खिलजी बौखला जाता है और पूरी ताकत से फिर हमला करता है। खिलजी की सेना के सामने राजपूत टिक नहीं पाते और रानी पद्मिनी 16 हजार महिलाओं के साथ जौहर कर लेती हैं। इसी कहानी को जायसी ने लिखा।
अब सवाल कई उठते हैं। इतिहास में राजा रतन सिंह को बहुत बहादुर बताया गया है। राजा गंधर्व सेन ने जब अपनी बेटी के स्वयंवर का आयोजन किया तब महाराजा मलखान सिंह पद्मिनी से विवाह करने को बहुत इच्छुक थे। रावल रतन सिंह ने राज मलखान सिंह को पराजित करके पद्मिनी को रानी बनाया था। इस तरह के वीर राजा का अलाउद्दीन खिलजी का प्रस्ताव मान लेना गले के नीचे नहीं उतरता। हाँ रानी पद्मिनी का अस्तित्व कई प्रमाणों से सिद्ध होता है। दिल्ली के बिड़ला मंदिर में रानी पद्मिनी का शैल (पत्थर) चित्र मौजूद है। चित्तौड़ में रानी पद्मिनी का महल है। डा. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव तथा डा. गोपीनाथ शर्मा जैसे कई इतिहासकारों ने रानी पद्मिनी के अस्तित्व को स्वीकार किया है। डा. गोपी नाथ शर्मा लिखते हैं कि हमारे विचार से यह मानना कि पद्मिनी की कथा जायसी के पद्मावत से प्रारंभ होती है, यह सर्वथा भ्रम है। छिताई चरित, जो जायसी से कई वर्षों पूर्व लिखा गया था, उसमें भी पद्मिनी तथा अलाउद्दीन के चित्तौड़ पर आक्रमण का वर्णन है। हेमरतन के गोरा-बादल चैपाई में तथा लब्धोदय के पद्मिनी चरित्र में इस कथा को स्वतंत्र रूप से लिखा गया है। चित्तौड़ में पद्मिनी ताल और पद्मिनी महल है। इन सभी से यह निश्चित होता है कि पद्मिनी रानी थीं, अलाउद्दीन ने आक्रमण किया था लेकिन अलाउद्दीन ने पद्मिनी को शीशे में देखा था, उनसे मिला, इस पर मतभेद हैं। पद्मिनी ने जौहर किया था, यह भी प्रमाणित है क्योंकि जौहर की प्रथा राजस्थान में कई वर्षा तक चलती रही। इसने ही सती प्रथा का रूप लिया।
अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ईसवी में चित्तौड़ पर आक्रमण किया था और मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 ई. में पद्मावत लिखा। इस प्रकार लगभग ढाई सौ वर्षो के अंतराल में कहानियां विकृत हो जाती हैं। संजय लीला भंसाली ने यदि अपनी फिल्म का नाम जायसी की पद्मावत रखा होता तो शायद इतना बवाल न होता लेकिन फिल्म को चटपटा बनाने के लिए उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी को त्रिकोणात्मक प्रेमी बना दिया। राजस्थान में अगले साल विधान सभा के चुनाव होने हैं तो विवाद का एक अच्छा बहाना मिल गया है। सबसे आश्चर्य की बात यह कि अभी फिल्म उन लोगों ने देखी भी नहीं जो सिनेमा हाल में आग लगाने और दीपिका पादुकोण की नाक काटने की धमकी दे रहे हैं। फिल्म को इससे ज्यादा प्रचार और क्या मिल सकेगा। लेकिन माहौल अराजक करने के लिए संजय लीला भंसाली भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। उन्होंने यह खुलकर कभी नहीं बताया कि फिल्म में राजपूतों की शान के बारे में उन्होंने क्या दिखाया है? (हिफी)