तमिलनाडु में राधाकृष्णन नगर (आर.के. नगर) विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ती थीं और उनके सामने कोई टिक नहीं पाया। अब उनके निधन के बाद वहां उपचुनाव हुआ है। मतदाताओं ने जिस उत्साह के साथ मतदान किया था, उससे पता चल गया था कि जनता का इस सीट के प्रति कितना लगाव है। तमिलनाडु के राजनीतिक हालात इस बीच काफी बदल गये और अम्मा की उत्तराधिकारी बनने के प्रयास में उनकी मित्र शशिकला जेल पहुंच गयीं लेकिन अपने भतीजे टीटीवी दिनाकरन को अन्नाद्रमुक का मुखिया बनाने का उन्होंने जो प्रयास किया था, उसे पूर्व मुख्यमंत्री पन्नीर सेल्वम और मौजूदा मुख्यमंत्री पलानी सामी ने निष्फल कर दिया। इसके बावजूद दिनाकरन ने अपने को अम्मा का वास्तविक राजनीतिक वारिस साबित करने के लिए ही आर के नगर से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। जनता ने पन्नीर सेल्वम और पलानीसामी को ठुकराकर दिनाकरन को ही अम्मा की इस सीट पर विजयी बनाया है। टीटीवी दिनाकरन ने अन्नाद्रमुक के प्रत्याशी ई. मधुसूदनन को करीब 40 हजार से अधिक मतों से पराजित करके यह साबित कर दिया कि अम्मा की विरासत पर शशिकला को ही जनता ने मंजूरी दी है।
तमिलनाडु में 2 मई 2016 को विधान सभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए थे। उस समय अम्मा जयललिता जीवित थीं। द्रमुक नेता एम करूणानिधि ने अन्ना द्रमुक को पराजित करने के लिए सशक्त मोर्चा बनाया था जिसने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा। इसके बावजूद तमिलनाडु विधानसभा की कुल 234 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 97 सीटों पर इस गठबंधन को सफलता मिल पायी। सुश्री जयललिता की अन्नाद्रमुक ने 134 सीटों पर विजयश्री हासिल करके सरकार बनायी और जयललिता मुख्यमंत्री बनीं। दुर्भाग्य से उन्हें बीमारी ने घेर लिया और लगभग ढाई महीने तक वे चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती रहीं। इस बीच पर्दे के पीछे शशिकला ही राजकाज चला रही थीं जबकि दिखावे के लिए पन्नीर सेल्वम पार्टी के नेता बनाये गये। मंत्रिमंडल की बैठक भी सुश्री जयललिता की फोटो रखकर की जाती थी। इस प्रकार तमिलनाडु की सरकार चल रही थी और पांच दिसम्बर 2016 को सुश्री जयललिता की मृत्यु होने की चिकित्सकों ने घोषणा कर दी। इसके बाद आनन-फानन में पन्नीर सेल्वम को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गयी और राज्य में शोक मनाने के साथ ही राजकाज भी चलता रहा। शोक का माहौल कम हुआ तो शशिकला ने अपना खेल शुरू किया। पहले वह कार्यकारी महासचिव बनी, बाद में विधिवत पार्टी की महासचिव अर्थात सर्वेसर्वा बन गयीं। अब उनकी नजर राज्य की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थी, इसलिए उन्होंने पन्नीर सेल्वम से इस्तीफा देने के लिए कह दिया। पन्नीर सेल्वम तत्काल तो यह बात मान गये लेकिन उनके दिल को आघात पहुंचा था। सुश्री जयललिता ने भी अपने जीवनकाल में दो बार जेल जाने पर पन्नीर सेल्वम को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था, इसलिए पन्नीर सेल्वम समझ रहे थे कि अम्मा की इच्छा का आदर करते हुए उन्हें ही मुख्यमंत्री रहना चाहिए। जयललिता की समाधि पर जाकर उनकी अन्तरात्मा ने जोर मारा और पन्नीर सेल्वम ने पत्रकारों को बुलाकर कहा कि उनसे मुख्यमंत्री पद से जबर्दस्ती इस्तीफा दिलवाया गया है अन्नाद्रमुक के कई विधायक और सांसद भी उनके साथ थे। इस प्रकार अन्नाद्रमुक दो धड़ों में बाॅट गयी और शशिकला ने भी खुलकर खेल शुरू कर दिया। शशिकला मुख्यमंत्री बनने ही जा रही थीं कि सुप्रीम कोर्ट ने जमीन घोटाले के एक मामले में उन्हें जेल की सजा सुनादी और शशिकला को कर्नाटक की एक जेल भेज दिया गया।
उस समय लग रहा था कि अन्नाद्रमुक पर पन्नीर सेल्वम गुट का कब्जा हो जाएगा लेकिन शशिकला ने तब तक अपना जाल मजबूत कर लिया था और के. पलानी सामी को अपनी तरफ से नेता घोषित कर दिया और अपने प्रतिनिधि के रूप में भतीजे टीटीवी दिनाकरन को उपमहासचिव बनाया। अन्नाद्रमुक के 134 विधायकों में से 128 ने पलानी सामी अर्थात शशिकला का ही समर्थन किया। इस प्रकार पन्नीर सेल्वम गुट कमजोर पड़ गया लेकिन पार्टी के चुनाव चिह्न को लेकर दोनों गुटों का झगड़ा निर्वाचन आयोग तक पहुंच गया। आर के नगर विधानसभा का उपचुनाव उसी समय होना था लेकिन आंर्थिक अनियमितता के चलते टाला गया। इस अवसर का फायदा उठाने के लिए पन्नीर सेल्वम और पलानी सामी के गुट ने दोस्ती कर ली ताकि पार्टी का चुनाव चिन्ह जब्त न किया जा सके। इतना ही नहीं इन दोनों नेताओं ने शशिकला की सत्ता को किनारे करने के लिए टीटीवी दिनाकरन को संगठन के उपमहासचिव पद से हटा दिया। पार्टी के अध्यक्ष पन्नीर सेल्वम बने और मुख्यमंत्री पद पर के. पलानी सामी को ही बरकरार रखा गया। शशिकला इन हालात से परेशान जरूर हुई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और दिनाकरन को अलग मोर्चा बनाने को कहा। इसके साथ ही दिनाकरन ने अपने गुट को असली अन्नाद्रमुक बताते हुए दो पत्ती के चुनाव चिन्ह की मांग भी की। चुनाव आयोग ने पन्नीर सेल्वम और पलानी सामी के मिल जाने पर दो पत्ती का चुनाव चिन्ह पलानी सामी की पार्टी को दे दिया। इसीलिए टीटीवी दिनाकरन ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर आरके नगर विधानसभा उपचुनाव लड़ा और भारी बहुमत से जीत भी दर्ज कर ली।
आल इण्डिया अन्नाद्रविड़ मन्नेत्र कड़गम के नेता टीटीवी दिनाकर का जन्म 13 दिसम्बर 1963 को धिरूठुरेंपूदी में हुआ था। शशिकला नटराजन के वे भतीजे है। हालांकि उन्होंने अपना संगठन भी बना रखा है लेकिन उनका समर्थन शशिकला नटराजन का प्रभाव ही कहा जाता है। इस उपचुनाव में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक प्रत्याशी मधुसूदनन को 40 हजार मत मिले जबकि दिनाकरन को 89013 मत। इस प्रकार 40 हजार से अधिक मतों से दिनाकरन ने अपने प्रतिद्वन्दी को पराजित कर दिया। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी द्रमुक ने एन मरूथ गणेश को यहां से उम्मीदवार बनाया था और उन्हें 24651 मत ही मिल पाये। दिनाकरन निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे और उनका चुनाव चिन्ह प्रेशर कुकर था। चुनाव चिन्ह का उल्लेख इसलिए महत्व रखता है क्योंकि दो पत्ती चुनाव चिन्ह को अम्मा के साथ जोड़कर देखा जा रहा था और इसके साथ एमजी रामचन्द्रन की लोकप्रियता भी जुड़ी थी। पन्नीर सेल्वम और पलानी सामी भी इसी डर से एक हुए थे कि कहीं यह चुनाव चिन्ह जब्त हो गया तो जनता उन्हे ठुकरा न दे। अब आरके नगर विधानसभा उपचुनाव में प्रेशर कुकर के चुनाव चिन्ह पर दिनाकरन ने दो पत्ती के चुनाव चिन्ह वाले अन्नाद्रमुक प्रत्याशी को भारी अंतर से हराया हैं तो यही कहा जा रहा कि अम्मा की विरासत का हकदार जनता ने दिनाकरन को समझा है और दिनाकरन का मतलब अभी शशिकला ही लगाया जाता है।
चुनाव के दौरान दिनाकरन कहते थे कि मैं निर्दलीय हूं पर अन्नाद्रमुक के कार्यकर्ता भी मेरे साथ है। यही कारण रहा कि दिनाकरन को मतगणना के सभी दौर में बढ़त हासिल हुई हैं। दिनाकरन कहते है कि अम्मा की दुआएं मेरे साथ है। मतदाताओं का रुझान भी देखने को मिला था। यहां पर 77.68 फीसद मतदान हुआ जब कि 2016 में विधानसभा चुनाव में 68 फीसद मतदान ही हो सका था। दिनाकरन की भारी मतों से जीत तमिलनाडु की राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन भी साबित हो सकती है। अब तक वहां द्रमुक और अन्ना द्रमुक का ही वर्चस्व चला आ रहा था। जनता बारी-बारी से दोनों दलों को सरकार बनाने का हक देती थी लेकिन 2016 के चुनाव में यह परम्परा टूटी और सुश्री जयललिता ने लगातार दूसरी बार सरकार बनायी। द्रमुक के साथ कांग्रेस का गठबंधन हो गया तो लग रहर था कि अन्ना द्रमुक भाजपा के साथ चली जाएगी। के पलानी सामी ने प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के अन्य नेताओं से कई बार मुलाकात की तो यह संभावना और बढ़ गयी थी। अब दिनाकरन के गुटवाले अन्नाद्रमुक ने पलानी सामी के अन्ना द्रमुक को पराजित कर दिया तो सत्ता का नया समीकरण बन गया है। इसके साथ ही यह भी साफ हो गया कि अम्मा का जादू अभी तमिलनाडु में चल रहा है। (हिफी)
