अशांति की भंवर में फंसे जम्मू-कश्मीर के लिए एक बुरी खबर है। यहां पर अलगाववादियों के जब दो गुट हो गये थे और एक गुट नरमपंथियों का था, तब वहां समझाने-बुझाने की गुंजाइश ज्यादा थी। अलगाववादियों के नरम पंथी गुट के माध्यम से जनता तक यह संदेश आसानी से पहुंच जाता था कि भारत की सरकार अपने इस क्षेत्र की परेशानियों को अच्छी तरह से समझती है और उन्हें दूर करने का प्रयास भी किया जा रहा है। राज्य सरकार भी नरमपंथी गुट के नेताओं को हर प्रकार की सहायता देती थी लेकिन अब केन्द्र के विशेष प्रतिनिधि दिनेश्वर शर्मा वहां शांति के प्रयासों को बढ़ाने का जब काम कर रहे हैं, तब नरम पंथी गुट का बंटवारा हो गया और उससे जो लोग अलग हुए हैं, वे निश्चित तौर पर कट्टरपंथियों की जमात में बैठ जाएंगे। इस प्रकार जम्मू-कश्मीर के शांति प्रयासों को झटका लगना स्वाभाविक है। वहां के मुख्य विपक्षी दल नेशनल कांफ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री डा. उमर अब्दुल्ला ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों का मामला उठाकर जनता के लोकतंत्र पर विश्वास को कम करने का प्रयास किया है। इससे पूर्व इसी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला कई बार पाक अधिकृत कश्मीर को लेकर अक्षम्य बयान दे चुके हैं। इन सब बातों से कश्मीर की स्थिति सामान्य होने में बाधा ही पड़ेगी। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को इस बदलाव पर भी गौर करना पड़ेगा।
जम्मू – कश्मीर में हुर्रियत कांफ्रेंस अलगाववादियों की पार्टी है जो जम्मू कश्मीर को एक अलग राष्ट्र बनाना चाहती है। इस पार्टी में दो गुट हैं। सैय्यद शाह गिलानी जैसे नेता जहां कट्टरपंथ का सहारा लेते हैं, वहीं अब्दुल गनी भट्ट जैसे नेता नरम पंथी हैं और बातचीत से हर मामले को निपटाना चाहते हैं। केन्द्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में शांति बहाली के लिए पूर्व नौकरशाह दिनेश्वर शर्मा को सभी पक्षों से बातचीत करने के लिए भेजा है। इसी सिलसिले हुर्रियत कांफ्रेंस का उदारवादी खेमा दो टुकड़ों में बंट गया है। अलगाववादियों के उदार वादी गुट के नेता अब्दुलगनी भट्ट को निलंबित कर दिया गया है और मुहम्मद सुल्तान मगरे को उनकी जगह नया प्रमुख धोषित कर दिया। मुस्लिम कांफ्रेंस ने हुर्रियत कांफ्रेंस के उदार वादी खेमे के प्रमुख मीरवाइज उमर फारूखी को लिखे पत्र में कहा है कि उसने मुहम्मद सुल्तान मगरे को 6 महीने के लिए अपना नया प्रमुख नियुक्त किया है। दूसरी तरफ अब्दुल गनी भट्ट ने अपनी तरफ से संगठन की पाकिस्तान शाखा के प्रतिनिधि मंजूर अहमद भट्ट को निष्कासित कर दिया और आरोप लगाया कि उनके ही इशारे पर उन्हें हुर्रियत से निकाला गया है।
अलगाववादी नेताओं के बारे में इस बार चिंतनीय जानकारी मिली है। पहले तो एक समाचार चैनल ने यह खबर प्रसारित की थी कि अलगाव वादी पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम राष्ट्रों से फण्ड लेते हैं। उस फण्ड का उपयोग कश्मीर में अशांति फैलाने, पत्थर फिंकवाने के लिए किया जाता है। यह जानकारी हमारे देश के खुफिया महकमें के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने गहराई से जांच की तो कई अलगाववादी नेताओं के ठिकाने से इस प्रकार के दस्तावेज मिले जिनसे पाकिस्तान से हाथ मिलाने की पुष्टि हुई। इसके साथ ही यह भी पता चला कि भारत की सामरिक जानकारी भी वे लोग दुश्मन देश को उपलब्ध कराते रहें हैं। इस प्रकार आधा दर्जन से अधिक अलगाववादियों को राष्ट्रद्रोह के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया। कश्मीर के अलगाव वादियों की चेतावनी भी हल्के में नहीं ली जा सकती। वरिष्ठ कश्मीरी अलगाववादी नेता मीर वाइज उमर फारूखी ने 18 अगस्त को चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि दमन से कश्मीर की समस्या कभी नहीं हल हो सकती। एक आतंकवादी को मारने से दस आतंकवादी पैदा होंगे। नोहट्टा इलाके की जामिया मस्जिद में शुक्रवार की नमाज के दौरान उन्होंने इस प्रकार की तकरीर की थी। जुमे की नमाज में आम दिनों की अपेक्षा ज्यादा लोग एकत्रित होते हैं। मीरवाइज उमर फारूक ने यह कहकर कि आक्रामकता और दमन कभी मुद्दों को हल नहीं कर सकते। राज्य में जब तक दमन और सुरक्षा बल रहेंगे, तो उसकी गंभीर प्रतिक्रिया होगी। मीरवाइज फारूकी भी हुर्रियत कांफ्रेंस के उदारवादी धड़े के नेता हैं। वह कहते हैं कि जम्मू एवं कश्मीर के लोग अपनी राजनीतिक समस्या के लिए अंतिम समाधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मीरवाइज का यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि इससे तीन दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर भाषण दिया था। इस भाषण में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा था कि न गोली से न गाली से, कश्मीर की समस्या सुलझेगी। मीरवाइज इससे पूर्व लगभग छह सप्ताह से अपने ही घर में नजरबंद थे। नजरबंदी का प्रतिबंध हटाने के बाद मीरवाइज ने उकसाने वाली तकरीर की थी। अब उदारवादी अलगाववादियों का पक्ष और भी कमजोर हो गया है।
अलगाव वादियों को जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता भी खाद-पानी दे रहे हैं। इसी महीने अर्थात पहली दिसम्बर को डा. फारूक अब्दुल्ला ने कश्मीर पर विवादित बयान दिया था उन्होंने कहा था कि पड़ोसी देश (पाकिस्तान) से चार युद्ध हो चुके हैं लेकिन हम पीओ के वाला हिस्सा नहीं ले सके और न वह (पाकिस्तान) जम्मू के अखनूर इलाके तक पहुंच कर ही कुछ भी ले सके। उन्होंने कहा कि दोनों देशों में अगर किसी की हिम्मत हो तो वह दूसरे के हिस्से में स्थित कश्मीर को ले ले। डा. फारूक अब्दुल्ला ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार के समय का वाक्या भी बताया। उन्होंने कहा कि पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी मुझे पाकिस्तान नहीं ले गये थे क्योंकि मुझे वहां पसंद नहीं किया जाता। भले ही यहां के लोग मुझे समझते हों कि मैं पाकिस्तानी हूं लेकिन यह गलत है। मैं पाकिस्तान गया तो लोग वहां मेरी चमड़ी निकाल लेंगे। डा. फारूक अब्दुल्ला कहते हैं कि जब बाजपेयी जी ने मुझे मुशर्रफ से मिलवाया गया तो मुझे थर्ड पार्टी बताया था लेकिन मैंने कहा था कि मैं थर्ड पार्टी नहीं फर्स्ट पार्टी हूं।
अब उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री डा. उमर अब्दुल्ला इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का मुद्दा उठा रहे है। उन्होंने भारतीय चुनाव आयोग से कहा है कि ईवीएम की विश्वसनीयता से संबंधित मुद्दों का समाधान करे, ईवीएम हमारे लोकतंत्र की महत्वपूर्ण कड़ी बन गयी है। कश्मीर की जनता को भी लोकतंत्र पर भरोसा है और जनता ने इस बार नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस को दर किनार कर पीड़ीपी और भाजपा की मिली जुली सरकार बनवायी है। पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने अपने पिता की मौत के बाद गद्दी संभाली है तो कश्मीर के हालात सुधारने की जिम्मेदारी उनकी है। उन्होंने अलगाव वादियों को कई बार फटकार भी लगायी है लेकिन कभी-कभी उनके बयान भी विवादित हो जाते हैं। इन सबसे अलगाव वादियों को प्रोत्साहन मिलता है। अब अलगाव वादियों का नरमपंथी गुट कमजोर होने से कट्टरवादियों का ही बोल बाला हो जाएगा जो शांति वार्ता को सफल नहीं होने देना चाहते, श्री मोदी ने भी कश्मीरियों को गले लगाने की बात कही है तो गले मिलने वालों को एकजुट करना महबूबा मुफ्ती का दायित्व है। (हिफी)