जयंती पर विशेष-संजोग वॉल्टर। सायरा बानू । एजेंसी ।-जस्टिस गोकरननाथ मिश्र को भी लखनऊ शहर भूल चुका है । लखनऊ शहर की इस धरोहर को हमारा नमन। अफसोस है उनकी कोई फोटो मौजूद नहीं है ,कोठी बिक गई गोकरन नाथ रोड याद दिलाता बोर्ड़ पान की दुकान के बीच में आ गया है। लखनऊ से प्रकाशित होने किसी भी समाचार पत्र को जस्टिस गोकरननाथ मिश्र याद हैं ?
गोकरननाथ मिश्र प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, नेता और न्यायविद थे। 1898 की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया था। इसके बाद उन्होंने 1920 तक कांग्रेस के होने वाले हर एक अधिवेशन में भाग लिया। गोकरननाथ मिश्र नरम विचारों वाले व्यक्ति थे, यही कारण था कि वे ‘असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ होने पर गाँधीजी से अलग हो गये थे। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत योगदान दिया था।
गोकरननाथ मिश्र का जन्म 20 दिसम्बर, 1871 में संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के हरदोई जि़ले में हुआ था। गोकरननाथ जी प्रारम्भ से ही प्रखर बुद्धि के प्रतिभाशाली छात्र रहे थे। उन्होंने अपनी स्नातक की परीक्षा बहुत ही अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी, इसीलिए उन्हें इंग्लैंण्ड जाकर आगे का अध्ययन करने के लिये नियमित छात्रवृत्ति भी मिलनी थी। किंतु प्राचीन रूढ़ीवादी विचारों वाले उनके दादा-दादी ने गोकरननाथ के विदेश जाने का बहुत विरोध किया, जिसके फलस्वरूप गोकरननाथ मिश्र आगे की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंण्ड नहीं जा सके।
लखनऊ के डालीगंज में यह जस्टिस गोकरननाथ मिश्रा के नाम की याद दिलाता बोर्ड।
बाद में उन्होंने ‘लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया और यहाँ से एम.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर यहीं से ही क़ानून की डिग्री भी प्राप्त की। लखनऊ विश्वविद्यालय से क़ानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद गोकरननाथ मिश्र जी ने वकालत शुरू करने के साथ ही व्यावसायिक जीवन में कदम रखा। शीघ्र ही अपनी वकालत से उनकी प्रसिद्धि प्रदेश के प्रमुख वकीलों में होने लगी। इसके साथ ही अब वे कांग्रेस के कार्यों मे भी भाग लेने लगे। 1898 की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया। अब उनका सम्बन्ध गंगाप्रसाद वर्मा, मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू और विशन नारायण दर जैसे तत्कालीन महान नेताओं से हो गया। 1920 तक वे नियमित रूप से कांग्रेस के अधिवेशनों में जाते रहे और लोकहित के प्रश्न उठाते रहे। 1915 से 1913 तक वे उत्तर प्रदेश में कौंसिल के सदस्य भी रहे। गोकरननाथ मिश्र नरम राजनीतिक विचारों के नेता थे। इसलिये राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ‘असहयोग आन्दोलन आरंभ करने पर वे कांग्रेस से अलग हो गये।
लखनऊ के डालीगंज कभी यहाँ जस्टिस गोकरननाथ मिश्रा की कोठी हुआ करती थी जो बिक गयी अब यहां स्कूल है
1925 में उन्हें ‘अवध चीफ़ कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। गोकरननाथ मिश्र सदा किसानों और निर्बल वर्गों का पक्ष लेते थे। समस्त विरोधों के बाद भी अपनी विधवा पुत्री का विवाह करके उन्होंने तत्कालीन रूढि़वाद से जकड़े समाज के समक्ष एक उच्च उदाहरण प्रस्तुत किया था। शिक्षा के क्षेत्र में लखनऊ का महिला विद्यालय उनके योगदान का स्मारक है।
संयुक्त प्रांत सरकार ने आयुर्वेद तथा यूनानी तिब्बी चिकित्सा पद्धतियों के विकास की व्यवस्था करने तथा उनके व्यवसाय को विनियमित करने, सुव्यवस्थित करने तथा संगठित करने हेतु 1925 में जस्टिस गोकरननाथ मिश्र की अध्यक्षता मे एक समिति गठित की थी, जिसकी संस्तुति के आधार पर 1926 में ‘बोर्ड ऑफ़ इण्डिया मेडिसिन की स्थापना कर भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के विकास के लिए उपाय तथा साधन प्रस्तुत करने, वैद्यों तथा हकीमों का पंजीकरण करने, आयुर्वेद/यूनानी चिकित्सालयों तथा विद्यालयों को अनुदान देने, भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के अध्ययन व अभ्यास के सम्बंध में नियंत्रण करने का कार्यभार सौपा गया। इस बोर्ड के प्रथम अध्यक्ष पंडित गोकरननाथ मिश्र एवं 1929 में जस्टिस सर सैय्यद वजीर हसन हुए थे, जो 1946 तक इस पद पर कार्यरत रहे। गऱीबों और निर्बलों के मददगार तथा राजनीति में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके गोकरननाथ मिश्र का निधन जुलाई, 1929 में हुआ। फोटो स्वप्निल संसार भारत कोष