जयंती पर विशेष-महेन्द्र कपूर ऐसे गायक, जिनके गाये हुए गीत आज भी लोगों की जुबान पर रहते हैं। अपने गीतों से कई पीढिय़ों को सम्मोहित करने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी महेन्द्र कपूर हिन्दी फि़ल्म संगीत के स्वर्णकाल की प्रमुख हस्तियों में थे और जब भी देशभक्ति के गीतों का जि़क्र होता है, लोगों के जेहन में सबसे पहला नाम उनका ही आता है।
उनके गाये हुए देशभक्ति गीत लोगों को देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना से भर देने की अपूर्व क्षमता रखते हैं। ‘मेरे देश की धरती सोना उगले…, ‘भारत का रहने वाला हूँ…, ‘अबके बरस तुझे धरती की… जैसे गीतों के साथ देशभक्ति गीतों का पर्याय बन गए । महेन्द्र कपूर ने अपने चार दशक के फि़ल्मी सफर में कऱीब 25 हज़ार गीत गाए। उनकी प्रतिभा हिन्दी तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने पंजाबी, मराठी, भोजपुरी आदि क्षेत्रीय भाषाओं के गीतों को भी स्वर दिया।
फियरलेस नाडिया
http://p2k.5a6.mywebsitetransfer.com/फियरलेस-नाडिया/
महेन्द्र कपूर का जन्म 9 जनवरी, 1934 को अमृतसर में हुआ था। गायकी के क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए उन्होंने जल्द ही अमृतसर से मुंबई का रूख कर लिया। बचपन से ही महेन्द्र कपूर महान गायक मोहम्मद रफ़ी से बहुत प्रभावित थे। वे एक तरह से मोहम्मद रफ़ी के शागिर्द थे और उनके प्रति उनके मन में अपार श्रद्धा थी। शायद यही वजह है कि कई बार उनके गानों में ख़ासकर शुरुआती दौर के उनके गानों में रफ़ी के प्रभाव की साफ़ झलक मिलती है। उनकी दिली इच्छा थी कि वह हिन्दी फि़ल्मों में गायें।
शुरुआत में महेन्द्र कपूर ने शास्त्रीय संगीत की तालीम प्राप्त की थी। उन्होंने शास्त्रीय गायन और संगीत की शिक्षा पंडित हुस्नलाल, पंडित जगन्नाथ बुआ, उस्ताद नियाज अहमद ख़ान, अब्दुल रहमान ख़ान और तुलसीदास शर्मा से ली थी। उनके जीवन में प्रमुख मोड़ उस समय आया, जब उन्होंने ‘मेट्रो मर्फी ऑल इंडिया गायन प्रतियोगिता जीत ली। 1957 में हुई इस प्रतियोगिता के जज संगीतकार नौशाद अली थे, जिन्होंने फि़ल्म ‘सोहनी महिवाल के गीत ‘चांद छुपा और तारे डूबे को महेन्द्र कपूर की आवाज़ में रिकॉर्ड किया। इसके बाद उनको वी. शांताराम की फि़ल्म ‘नवरंग में गाने को मौका मिला। इस फि़ल्म में उन्होंने “आधा है चंद्रमा रात आधी” गीत गाया था, जो कि कामयाब रहा। सी. रामचंद्र के संगीत से सजे इस गीत ने महेन्द्र कपूर के पाँव फि़ल्म जगत में मजबूती से जमा दिए। इसके बाद उन्होंने ‘भारत कुमार के नाम से मशहूर मनोज कुमार और बी. आर. चोपड़ा के बैनर तले बनी अधिकतर फि़ल्मों के गीतों के लिए भी आवाज़ दी।
एक समय महेन्द्र कपूर की आवाज़ ‘भारत की जीवंत आवाज कहलाती थी। देशभक्ति गीतों का ख्याल आते ही सबसे पहला नाम उनका ही आता था, लेकिन ‘चलो एक बार फिर से और ‘किसी पत्थर की मूरत से गाने से उनके गानों में विविधता प्रदर्शित होती है। इसके अलावा वह पहले भारतीय गायक थे, जिसने कोई अंग्रेज़ी गाना रिकॉर्ड किया था। यही नहीं महेन्द्र कपूर ने लगभग सभी भाषाओं में 25,000 से भी ज़्यादा गाने गाए। सदैव मस्त नगमे सुनाने का वादा करने वाले महेन्द्र कपूर अगले कई दशक तक संगीत प्रेमियों को अपनी आवाज से मोहित करते रहे। उन्होंने जब फि़ल्मी जगत में पदार्पण किया, वह हिन्दी फि़ल्म संगीत का स्वर्णकाल था और पाश्र्व गायकों में मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, मन्ना डे, हेमंत कुमार और तलत महमूद जैसे कई बड़े नाम पहले से ही स्थापित थे। ऐसे में नई प्रतिभा के लिए राह बनाना आसान नहीं था। यह एक कठिन चुनौती थी, लेकिन धुन के पक्के और ‘पुरुषार्थ से भरे कपूर ने न सिफऱ् अपनी अलग पहचान बनाई, बल्कि पाश्र्व गायन की विविधता को नये आयाम भी प्रदान किए। महेन्द्र कपूर के परिवार में पत्नी, तीन पुत्रियाँ और एक बेटा रोहन कपूर है। उनके पुत्र ने भी हिन्दी फि़ल्मों ‘फ़ासले और ‘लव 86 में काम किया, लेकिन वे सफल नहीं हो सके।
निर्माता-निर्देशक बी. आर. चोपड़ा की फि़ल्मों ‘धूल का फूल, ‘गुमराह, ‘वक्त, ‘हमराज और ‘धुंध आदि में गाये हुए महेन्द्र कपूर के गीत बेहद लोकप्रिय हुए। देशभक्ति फि़ल्मों से अपनी अलग पहचान बनाने वाले मनोज कुमार के साथ उनकी वैसी ही जोड़ी बनी, जैसी राजकपूर के लिए मुकेश की थी। मनोज कुमार के लिए उन्होंने कई फि़ल्मों में पाश्र्व गायन किया, जिनमें ‘उपकारÓ, ‘पूरब और पश्चिमÓ, ‘क्रांति, ‘रोटी कपड़ा और मकान आदि शामिल हैं। उन्होंने ‘भारत कुमार उर्फ ‘मनोज कुमार के अलावा दिलीप कुमार, राजकुमार, राजेंद्र कुमार, सुनील दत्त, धर्मेंद्र, विश्वजीत और राज बब्बर आदि अभिनेताओं के लिए भी पाश्र्व गायन किया। बी. आर. चोपड़ा से उनका साथ टीवी धारावाहिक ‘महाभारत में भी रहा। धारावाहिक महाभारत के शीर्षक गीत को महेन्द्र कपूर ने ही स्वर दिया था। धारावाहिक के प्रारम्भ से ही महेन्द्र कपूर की आवाज़ से सजे श्लोक आदि दर्शकों को टी.वी. के सामने बाँधे रखने में बेहद सफल हुए।
महेन्द्र कपूर ने दादा कोंडके के लिए उनकी अधिकतर मराठी फि़ल्मों में भी गीत गाए। उन्होंने सी. रामचंद्र, ओ.पी. नैय्यर, कल्याणजी-आनंदजी और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे विभिन्न संगीतकारों के साथ काम किया। लेकिन उनकी जोड़ी रवि के साथ बनी। उन्होंने रवि के साथ मिलकर कई हिट गीत दिए। इन गीतों में ‘चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ…, ‘नीले गगन के तले.., ‘तुम अगर साथ देने का वादा करो…और ‘किसी पत्थर की मूरत से आदि गीत शामिल हैं।
वैसे तो महेन्द्र कपूर ने अपने कैरियर में हज़ारों गीत गाये, लेकिन निम्नलिखित कुछ गीत ऐसे हैं, जिन्होंने उन्हें अमर बना दिया-तुम अगर साथ देने का वादा करो – हमराज लाखों हैं यहाँ दिल वाले पर प्यार नहीं मिलता – किस्मत चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ – गुमराह तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ – धूल का फूल मेरे देश की धरती सोना उगले – उपकार मेरा रंग दे बसंती चोला – शहीद (1965) है प्रीत जहाँ की रीत सदा – पूरब और पश्चिम अब के बरस तुझे – क्रांति नीले गगन के तले – हमराज किसी पत्थर की मूरत से – हमराज फकीरा चल चला – फ़कीरा अपने लम्बे कैरियर में महेन्द्र कपूर ने कई पुरस्कार प्राप्त किये।
1968 में ‘उपकार के गीत मेरे देश की धरती सोना उगले के लिए महेन्द्र कपूर को ‘राष्ट्रीय फि़ल्म पुरस्कार मिला था। इसके अतिरिक्त 1964, 1968 और 1975 में उनको ‘फि़ल्म फ़ेयर अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें ‘लता मंगेशकर पुरस्कार से भी सम्मानित किया। देश-विदेश में उन्होंने अनेक चेरिटी शो किए। सुनील दत्त और नर्गिस के साथ सीमा पर तैनात फौजी जवानों के लिए उन्होंने कार्यक्रम दिए। भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मश्रीÓ प्रदान करके इस गायक का मान बढ़ाया।
27 सितंबर, 2008 को 74 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पडऩे से महेन्द्र कपूर का निधन हो गया, लेकिन आज भी उनके सदाबहार नगमें कानों में मिश्री घोलते हैं। आज भले ही महेन्द्र कपूर हमारे बीच नहीं है, लेकिन वे एक ऐसी विरासत छोड़कर गए हैं, जहाँ उनकी आवाज़ का जादू हमेशा बना रहेगा।एजेन्सी।