मुबारक साल गिरह- कट्टासेरी जोसेफ़ येसुदास ‘कर्नाटक संगीत के प्रसिद्ध शास्त्रीय तथा फि़ल्मों के पाश्र्वगायक हैं। उनकी सुरीली आवाज़ सुनने वालों के ऊपर बहुत गहरा प्रभाव छोड़ती है। येसुदास ने हिन्दी के अतिरिक्त मलयालम, तमिल, कन्नड़, तेलुगू, बंगाली, गुजराती, उडिय़ा, मराठी, पंजाबी, संस्कृत, रूसी तथा अरबी भाषाओं में भी गीतों को अपनी सुरीली आवाज़ दी है। उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत 1961 में की थी। उनके गाए गीत ‘गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा, ‘सुरमई अखियों में, ‘दिल के टुकड़े-टुकड़े करके, ‘जानेमन-जानेमन तेरे दो नयन, ‘चाँद जैसे मुखड़े पे सबकी जुबां पर चढ़ गए। दक्षिण भारतीय भाषाओं में उन्होंने कई सफ़ल फिल्में भी बनाईं, जैसे- ‘वडाक्कुम नाथम, ‘मधुचंद्रलेखा और ‘पट्टनाथिल सुंदरन। सर्वश्रेष्ठ गायन के क्षेत्र में सात राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले वे देश के एकमात्र गायक हैं। 2002 में येसुदास को भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए ‘पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
येसुदास का जन्म 10 जनवरी, 1940 में कोचीन (केरल) में हुआ था। इनके पिता का नाम ऑगस्टाइन जोसेफ़ तथा माता एलिसकुट्टी थीं। पिता ऑगस्टाइन जोसेफ़ एक मंझे हुए मंचीय कलाकार एवं गायक थे, जो हर हाल में अपने बड़े बेटे येसुदास को पाश्र्वगायक बनाना चाहते थे। येसुदास के पिता, जब वे अपने रचनात्मक कैरियर के शीर्ष पर थे, तब कोच्चि स्थित उनके घर पर दिन रात दोस्तों और प्रशंसकों का जमावड़ा लगा रहता था; किंतु जब बुरे दिन आए, तब बहुत कम ही लोग ऐसे थे, जो मदद को आगे आए। येसुदास जी की पत्नी का नाम प्रभा है। इनके तीन पुत्र हैं- विनोद, विजय तथा विशाल। दूसरे पुत्र विजय येसुदास संगीतकार हैं, जिन्हें 2007 तथा 2013 में सर्वश्रेष्ठ पुरुष गायक के तौर पर ‘केरल राज्य फि़ल्म अवॉर्ड मिला था। येसुदास का बचपन गरीबी में बीता, पर उन्होंने उस छोटी-सी उम्र से अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए थे और ठान लिया था कि अपने पिता का सपना पूरा करना ही उनके जीवन का उद्देश्य है। उन्हें ताने सुनने पड़े, जब एक ईसाई होकर वे कर्नाटक संगीत की दीक्षा लेने लगे। एक समय ऐसा भी आया कि वे अपने ‘आर.एल.वी. संगीत अकादमी की फ़ीस भी बमुश्किल भर पाते थे। ऐसा भी दौर था, जब चेन्नई के संगीत निर्देशक उनकी आवाज़ में दम नहीं पाते थे और ए.आई.आर. त्रिवेन्द्रम ने उनकी आवाज़ को प्रसारण के लायक नही समझा। लेकिन जिद के पक्के उस कलाकार ने सब कुछ धैर्य के साथ सहा।
एक जात, एक धर्म, एक ईश्वर आदि नारायण गुरु के इस कथन को अपने जीवन का मन्त्र मानने वाले येसुदास को पहला मौका मिला 1961 में बनी फि़ल्म ‘कलापदुक्कल से। प्रारम्भ में उनकी शास्त्रीय अंदाज़ की सरल गायकी को बहुत सी नकारात्मक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा, लेकिन येसुदास ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। संगीत प्रेमियों ने उन्हें सर आँखों पे बिठाया। भाषा उनकी राह में कभी दीवार नहीं बन सकी। दक्षिण के सिनेमा में अपनी सुरीली आवाज़ का जादू बिखेरने के बाद येसुदास ने बॉलीवुड की ओर रूख किया। फि़ल्म ‘जय जवान जय किसान के लिए पहला हिन्दी गीत गया, लेकिन पहले रिलीज हुई फि़ल्म ‘छोटी सी बात। उन्होंने 70 के दशक के सबसे मशहूर अभिनेताओं के लिए अपनी आवाज़ दी। इनमें अमिताभ बच्चन, अमोल पालेकर और जितेन्द्र शामिल हैं। इस दौरान उन्होंने कई गाने गाए। मलयालम फि़ल्म संगीत तो येसुदास के जि़क्र के बिना अधूरा है ही, पर गौरतलब बात ये है कि उन्होंने हिन्दी में भी जितना काम किया, कमाल का किया। सलिल दा ने उन्हें सबसे पहले फि़ल्म ‘आनंद महल में काम दिया। ये फि़ल्म नहीं चली, पर गीत मशहूर हुए,जैसे- आ आ रे मितवा …।
फिर मशहूर संगीतकार तथा गीतकार रविन्द्र जैन के निर्देशन में उन्होंने 1976 में आई सुपरहिट ‘चितचोर के गीत गाये। इस फि़ल्म के संगीत ने लोगों के दिलों में येसुदास के लिए एक ख़ास जगह बना दी। ‘चितचोर का गीत गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा, मैं तो गया मारा जिसने भी सुना, वह येसुदास का दीवाना हो गया। इस गीत की रचना करने वाले रवीन्द्र जैन भी येसुदास की आवाज़ के मुरीद हो गए। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा कि अगर उन्हें आँखें मिलेंगी तो वे सबसे पहले येसुदास को देखना चाहेंगे। अपने 50 वर्षों के गायिकी कैरियर में येसुदास ने 14 भाषाओं में 35,000 से भी अधिक गीत गाए हैं।
येसुदास ने बेशक कम गीत गाये, पर जितने भी गाये, वे सदाबहार हो गए। मलयालम फि़ल्म इंडस्ट्री में दासेएटन के नाम से जाने जाने वाले येसुदास की कामना थी कि वे मशहूर ‘गुरुवायुर मन्दिर में बैठकर कृष्ण स्तुति गायें, लेकिन मन्दिर के नियमों के अनुसार उन्हें मन्दिर में प्रवेश नहीं मिल सका और जब उन्होंने अपने दिल बात को एक मलयालम गीत गुरुवायुर अम्बला नादयिल.. के माध्यम से श्रोताओं के सामने रखा तो उस सदा को सुनकर हर मलयाली हृदय रो पड़ा।एजेन्सी।
फाइल फोटो
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