स्वप्निल संसार। लखनऊ। बीटिंग दा रिट्रीट का परम्परागत तरीके से हुआ समापन गोरखा रेजिमेंट को बेस्ट परेड का मिला पुरूस्कार तो वही एलडीए को मिला बेस्ट झांकी का पुरुस्कार। आर्मी और पीएसी के बैंड ने सुन्दर धुनें पेश की और कार्यक्रम के अंत में बैंड मास्टर ने राजयपाल राम नाईक से बैंड को वापस ले जाने की इजाजत ली जिसके बाद राष्ट्रीय ध्वज को सम्मानपूर्वक निचे उतार कर पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह द्वारा राजयपाल को दिया गया।
वीडियो में देखें बीटिंग दा रिट्रीट –
1. 1950 में शुरू हुई थी तैयारी
बीटिंग रिट्रीट ब्रिटेन की बहुत पुरानी परंपरा है। इसका असली नाम ‘वॉच सेटिंग’ है और यह सूर्य डूबने के समय मनाया जाता है। भारत में बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी की शुरुआत सन 1950 से हुई। 1950 से अब तक भारत के गणतंत्र बनने के बाद बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम को दो बार रद्द करना पड़ा है। पहला 26 जनवरी 2001 को गुजरात में आए भूकंप के कारण और दूसरी बार ऐसा 27 जनवरी 2009 को देश के आठवें राष्ट्रपति वेंकटरमन का लंबी बीमारी के बाद निधन हो जाने पर किया गया।
2. पुरानी परंपरा की दिलाती है याद
यह समारोह सैनिकों की उस पुरानी परंपरा की भी याद दिलाता है जिसमें सैनिक दिन भर के युद्ध के बाद शाम के समय आराम करते थे। दरअसल, यही वह समय होता था जब वे अपने कैंप में लौटते थे और ढलते सूरज के साथ शाम के समय जश्न मनाते थे। इसके बाद वे फिर से युद्ध की तैयारी में जुट जाते थे।
3. कैसे मनाई जाती है बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी?
सेनओं के बैंड एक साथ मिलकर धुन बजाते हैं और इसी के साथ बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी की शुरुआत हो जाती है। इस दौरान कई लोकप्रिय धुनें बजाई जाती हैं. ड्रमर्स महात्मा गांधी की पसंदीदा धुनों में से एक एबाइडिड विद मी बजाते हैं। इसके बाद बैंड मास्टर राजयपाल के पास जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। बैंड मार्च वापस जाते समय ‘सारे जहां से अच्छा…’ की धुन बजाई जाती है। ठीक शाम 6 बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन बजाते हैं और राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को उतार लिया जाता हैं और राष्ट्रगान गाया जाता है। इस तरह गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन हो जाता है।