मुबारक साल गिरह
स्वप्निल संसार। सुप्रिया पाठक का जन्म 7 जनवरी 1961 को मुंबई में हुआ था। इनके पिता का नाम बलदेव पाठक है। माँ का नाम दीना पाठक हैं, जोकि बीते दौर की मशहूर चरित्र अभिनेत्री रही हैं,सुप्रिया पाठक की मौसी तरला फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरा में धर्मेन्द्र के अभिनेत्री थी । सुप्रिया पाठक की बहन रतना पाठक जो अभिनेता नसीरद्दीन शाह की पत्नी हैं ।
सुप्रिया पाठक की शादी फिल्म अभिनेता पंकज कपूर से हुईं है। सुप्रिया उनकी दूसरी पत्नी हैं। इनके एक बेटा और बेटी हैं। सना कपूर, रुहान कपूर। अभिनेता शाहिद कपूर इनके सौतले बेटे हैं।
सुप्रिया पाठक किसी परिचय की मोहताज को बिलकुल नहीं हैं। एक ही परिवार में जहां तीन रत्न (मां दीना पाठक, बड़ी बहन रत्ना पाठक और खुद सुप्रिया पाठक) हों तो सहज रूप से अंदाज लगाया जा सकता है कि यह परिवार कितना दिलचस्प होगा। असल में सुप्रिया को कभी अदाकारी का शौक नहीं रहा। वह तो नालंदा विश्वविद्यालय से डांस विषय में स्नातक डिग्री लेने के बाद डांस में ही पीएचडी करने वाली थी। चूंकि परिवार में दीना पाठक फिल्मों के साथ ही साथ स्टेज आर्टिस्ट थी, लिहाजा एक दिन उन्होंने एक नाटक में हिस्सा लेने का आग्रह किया, जिसे सुप्रिया टाल नहीं सकी। इस नाटक में उनकी अभिनय क्षमता के चर्चे होने लगे। फिर धीरे-धीरे खुद सुप्रिया को भी अदाकारी में आनंद आने लगा। इस तरह डांस में करियर बनाने का सपना पीछे छूटता चला गया।
सागर सरहदी उन दिनों बहुचर्चित फिल्म ‘बाजार की तैयारी में लगे थे सागर जी ने फोन किया तब सुप्रिया बहुत छोटी थी। जब उनसे मिलने पहुंची तो वे बोले मैं एक फिल्म बना रहा हूं बाजार। मैंने कई लड़कियों के टेस्ट लिए हैं लेकिन कोई जम नहीं रही है। मुझे लगता है कि तुम मेरी फिल्म में फिट रहोगी। सुप्रिया संक्षेप में फिल्म की कहानी सुनी और फिर काम करने के लिए हां कह दी। सागर जी ने बताया कि शूटिंग के लिए सब ट्रेन से हैदराबाद जा रहे हैं। सुप्रिया ने कहा कि मैं तो अभी नहीं जा सकती क्योंकि मेरी परीक्षाएं हैं। तब सागर जी ने सुप्रिया प्लेन का फेयर दिया और कहा कि परीक्षा के बाद ं हैदराबाद पहुंच जायेंं। सुप्रिया की परीक्षाएं खत्म हुई और हैदराबाद पहुंचकर शूटिंग में हिस्सा लिया। जब फिल्म ‘बाजार की शूटिंग हो रही थी, तब खुद सागर सरहदी साहब ही नहीं, स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह और फारुख शेख को भी उम्मीद नहीं थी कि यह फिल्म इतनी कामयाब होगी। सबने बहुत मेहनत की थी और सुप्रिया तब नई नई थी, लेकिन सभी सीनियर कलाकारों ने कभी यह अहसास नहीं होने दिया कि वो उनसे कहीं ज्यादा कामयाब हैं। उसका यह संवाद ‘सज्जो हम गरीब न होते तो हमें कोई अलग नहीं कर सकता था, यह आज भी याद है। वाकई एक बेहतरीन फिल्म थी ‘बाजार।
पंकज कपूर से मुलाकात कश्मीर में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई। पहली ही नजर में कुछ इस तरह का अट्रेक्शन हो गया। यह बात भी दिलचस्प है कि जिस फिल्म में हम पहली बार काम कर रहे थे, वो कभी परदे पर आई ही नहीं। फिल्म की शूटिंग के जरिये सुप्रिया पंकज को अच्छी तरह से जाना समझा। फिर दो साल साथ रहे और शादी कर ली।
सुप्रिया भाग्यशाली थी कि बॉलीवुड में कई अच्छी फिल्में मिली लेकिन इसमें कभी मां ने कोई सिफारिश नहीं की। जो भी किरदार निभाए, वह उस फिल्म की के हिसाब से निभाए। मसलन फिल्म ‘बाजार में एक गरीब लड़की जो बहुत सहमी-सहमी रहती है, कंधे नीचे झुकाकर चलती है, वहीं दूसरी तरफ फिल्म ‘विजेता में दबंग लड़की की भूमिका निभाई जबकि फिल्म मिर्च मसाला में एक गुजराती लड़की कैसी होती है, उसके रंग में सुप्रिया ढल गई। बॉलीवुड में कई सफल फिल्मों के बाद आतिश कपाडिय़ा ने छोटे परदे पर ‘खिचड़ी में एक बेवकूफ महिला हंसा का किरदार निभाने का प्रस्ताव दिया। पहले तो लगा कि क्या वाकई कोई महिला इतनी बेवकूफ हो सकती है। सुप्रिया ने किरदार को भरपूर जिया। हंसा जिसे तीन चीजों से प्यार है…गहने, गजरा और प्रफुल्ल। यह बताने की कोशिश की कि आजकल जहां पति-पत्नी में प्यार नाम की चीज छूटती जा रही है, वह किस तरह वापस लौटाई जा सकती है। भले ही बेवकूफी भरे अंदाज के साथ ही क्यों न सही ।
2005 सरकार बेवफा 1990 षडयंत्र 1989 राख कमला की मौत 1989 दाता 1988 न्वित बंगाली ला शहँशाह फ़लक 1986 दिलवाला 1985 झूठी अर्जुन मिर्च मसाला 1984 आवाज धर्म और कानून 1983 मासूम बेकरार 1982 विजेता बाज़ार शबनम 1981 कलयुग । फि़ल्मफ़ेयर पुरस्कार 1983 फि़ल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार बाज़ार 1982 फि़ल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार कलयुग। इसके बाद उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर से एक लंबा ब्रेक ले लिया। कई साल के बाद उन्होंने फिल्म सरकार से अपना कमबैक किया था ।
सुप्रिया पाठक बेहद मंझी हुआ अदाकारा है यह उन्होंने संजय लीला भंसाली निर्देशित फिल्म रामलीला- गोलियोँ की रास लीला में साबित कर दिया। सुप्रिया पाठक को उनके इस फिल्म के किरदार के हर जगह प्रशंसा मिली। इसके अलावा उन्हें इस फिल्म के लिए फिल्म फेयर के बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के अवार्ड से भी नवाज़ा गया।
जब सुप्रिया पाठक का फ़िल्मी करियर खत्म होने की कगार पर था, तब उन्होंने छोटे पर्दे की और रुख किया। उन्होंने कई टेलीविजन शोज़ किये। सुप्रिया पाठक का अब तक सबसे प्रसिद्ध किरदार खिचड़ी की हंसा पारेख हैं। आज भी लोग सुप्रिया पाठक को हंसा के नाम से ही बुलाते हैं।