केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जब से वित्त मंत्रालय संभाला है, तभी से उनकी निगाह टैक्स चोरी करने वालों पर है। सबसे पहले उन्होंने यह सवाल उठाया था कि देश में आयकर देने वालों की संख्या इतनी कम क्यों है। यह सच में सोचने की बात है क्योंकि नौकरीपेशा लोगों का हिसाब-किताब तो आसानी से मिल जाता है लेकिन व्यापार करने वाले लोग इससे बचने का रास्ता निकाल लेते थे। इसी क्रम में देश भर में विभिन्न करों को एक करके वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) बनाया गया। अब इसमें भी कुछ लोग हेर फेर करने लगे हैं। इसलिए केन्द्र सरकार ने डाटा एनालिटक्स का सहारा लिया है। इस पद्धति में रोबो आडिट के जरिए हर व्यक्ति पर नजर रखी जाएगी। व्यापारियों के साथ कृषि से होने वाली आय पर भी सरकार की नजर है क्योंकि कई लोग कृषि को आधार बनाकर कालाधन सफेद कर लेते हैं। कृषि पर टैक्स नहीं है इसलिए सरकार सुरक्षित तरीके से टैक्स चोरी करने वालों पर भी शिकंजा कसने जा रही है। वित्तमंत्री अरुण जेटली का मानना है कि टैक्स चोरी करने वाले चाहे जितने रास्ते निकालेें लेकिन इस वर्ष से जो व्यवस्था लागू होगी, उसमें टैक्स चोरों का बच निकलना मुश्किल हो जाएगा।
मोदी सरकार टैक्स चोरों के पीछे पड़ गई है। नए साल में टैक्स चोरों को सरकार का स्पष्ट संदेश है, ‘कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना दूर तक भागते हैं, हम आपको पकड़ ही लेंगे। इसके लिए सरकार बिग डाटा का सहारा ले रही लेकिन जब इससे भी पूरी संतुष्टि नहीं मिली तो उसने टैक्स चोरों का पता लगाने के नियम ही बदल दिए। एक्सपर्ट्स की मानें तो डाटा एनालिटिक्स किसी के भी इन्कम या इन्वैस्टमैंट्स का पता लगाकर सिस्टम पर सामने ला सकता है। नोटबंदी के बाद बैंकों को मिले विशाल मात्रा में आंकड़ों से सरकार को टैक्स चोरों को ढूंढने में डाटा एनालिटिक्स का सहारा लेने का मौका मिल गया। इससे किसी के ऑनलाइन बिहेवियर का भी पता लगाया जा सकता है। नए नियम से टैक्स अधिकारियों को बैंकिंग, इंश्योरैंस और स्थानीय निकायों में जमा किए गए डाटा का इस्तेमाल टैक्स चोरों का पता लगाने में करने का अधिकार मिल गया है। अब छिपे या लापता टैक्स चोरों को उनके पते पर इन्कम टैक्स नोटिस भेजकर उनसे टैक्स की डिमांड की जा सकेगी। अब तक टैक्स अथॉरिटीज को टैक्सपेयर की ओर से मुहैया करवाए गए परमानैंट अकाऊंट नंबर (पैन), इन्कम टैक्स रिटर्न (आई.टी.आर्) में दर्ज पते या अन्य टैक्स रिलेटिड कम्युनिकेशन पर ही नोटिस जारी कर सकते थे।
गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जी.एस.टी.) से जुटाए आंकड़ों को इन्कम टैक्स छिपाने वालों के खिलाफ इस्तेमाल करने की सरकार की योजना टैक्स चोरों के लिए एक और बड़ा सिरदर्द साबित होने वाली है। दरअसल सरकार एक डाटाबेस तैयार करना चाह रही है जिसमें कम्पनियों और उनके प्रोमोटरों की कमाई को उनकी ओर से फाइल जी.एस.टी. रिटर्न से मिलाया जा सके। पहले के टैक्स सिस्टम से इन्कम टैक्स के आंकड़ों का मिलान करने से कम्पनियों और उनके प्रोमोटरों के लिए अपनी आमदनी कम करके या खर्च बढ़ा-चढ़ाकर बताना नामुमकिन हो जाएगा। इस पद्धति में रोबो ऑडिट्स के जरिए हर व्यक्ति पर नजर रखी जाएगी। इसमें कम्प्यूटर्स थर्ड पार्टी डाटा के साथ आपके टैक्स इन्फॉर्मेशन से मिलान कर सकते हैं। यानी अगर आपने सोशल मीडिया पर अपनी चमचमाती कार का फोटो डाला तो टैक्स अधिकारी आपको पकड़ लेंगे। टैक्स डिपार्टमैंट अपने ‘प्रोजैक्ट इनसाइट के जरिए आपके उस खर्चे पर नजर रख सकते हैं जिसका आपको अंदाजा भी नहीं होगा। इनके अलावा सरकार सुरक्षित तरीकों से टैक्स चोरी पर भी नजर रखने जा रही है। मसलन भारत में कृषि से होने वाली आय पर टैक्स नहीं लगता है लेकिन कुछ लोग काले धन को सफेद करने के लिए इस छूट का फायदा उठाते हैं। कई बार खेती-किसानी की आड़ लेकर लोग वैंडरों से फर्जी स्लिप ले लेते हैं और सरकार के सामने दावा करते हैं कि उन्होंने जमीन बेचने से पहले इस पर खेती की थी लेकिन अब इन्कम टैक्स डिपार्टमैंट ने ऐसे टैक्स चोरों को दबोचने का प्रभावकारी रास्ता निकाल लिया है। टैक्स डिपार्टमैंट अब इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) से उस जमीन का उस वक्त का सैटेलाइट इमेज मंगवाएगा जिस पर जिस वक्त फसल उगाने का दावा किया गया है।
छोटे और मझोले व्यापारियों की सुविधा के लिए शुरू की गयी जीएसटी की कंपोजीशन स्कीम टैक्स चोरी का जरिया बनती जा रही है। जीएसटी लागू होने के बाद पहली तिमाही में ही इस योजना का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। माना जा रहा है कि सरकार इस योजना की समीक्षा कर नियमों में बदलाव कर सकती है। दरअसल एक करोड़ रुपये तक के सालाना टर्नओवर वाले कारोबारी जीएसटी की कंपोजीशन स्कीम का चुनाव कर सकते हैं। कंपोजीशन स्कीम के तहत आने वाले व्यापारियों को मासिक रिटर्न भरने की जरूरत भी नहीं पड़ती है। साथ ही उन्हें टैक्स भी कम दर से देना पड़ता है। हालांकि इसका शुरुआती अनुभव सरकार के लिए चौंकाने वाला रहा है। चालू वित्त वर्ष की जुलाई से सितंबर की तिमाही में करीब 10 लाख कारोबारियों ने इस स्कीम का चुनाव किया जिसमें से मात्र छह लाख ने ही 25 दिसंबर2017 तक अपना रिटर्न भरा है। इस तरह चार लाख कारोबारी अब भी ऐसे हैं जिन्हें कंपोजीशन स्कीम का रिटर्न दाखिल करना है। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला तथ्य यह है कि जुलाई से सितंबर के दौरान इस स्कीम से सरकारी खजाने में मात्र 251 करोड़ रुपये ही जीएसटी राजस्व जमा हुआ। इस तरह अगर भुगतान किए गए जीएसटी में कंपोजीशन स्कीम अपनाने वाले कारोबारियों के इस तिमाही में औसत टर्नओवर को देखा जाए तो यह बमुश्किल दो लाख रुपये बैठता है। इसी तथ्य की वजह से टैक्स चोरी की आशंका पनपती है। असल में जीएसटी के तहत पंजीकरण की अनिवार्यता सालाना २० लाख रुपये से अधिक कारोबार करने वाले व्यापारियों के लिए है।
ऐसे में सवाल उठता है कि जिन व्यापारियों ने जुलाई-सितंबर तिमाही में अपना कारोबार दो लाख के आसपास बताया है तो वार्षिक कारोबार करीब आठ लाख रुपये बैठता है। जब कंपोजीशन स्कीम का चुनाव करने वाले कारोबारियों का सालाना कारोबारमात्र आठ लाख रुपये है तो फिर उन्होंने कंपोजीशन स्कीम को क्यों अपनाया। २० लाख रुपये से कम कारोबार होने पर तो पंजीकरण करवाने की भी जरूरत नहीं है। १सूत्रों ने कहा कि कंपोजीशन स्कीम के अब तक के अनुभव से स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि इसके जरिये टैक्स की चोरी की जा रही है। ऐसे में इस योजना पर नए सिरे से विचार किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि कंपोजीशन स्कीम के तहत पंजीकृत व्यापारियों को उनके टर्नओवर का मात्र एक प्रतिशत, मैन्यूफैक्चरिंग यूनिटों को दो प्रतिशत और रेस्तरां को पांच प्रतिशत की दर से भुगतान करना है। हालांकि इसके तहत पंजीकृत व्यापारियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा और अंतरराज्यीय बिक्री की अनुमति नहीं होती। वित्त मंत्रालय ने जीएसटी में दाखिल होने वाले मासिक रिटर्न जीएसटीआर-३बी में गलतियां सुधारने और कर देनदारी समायोजित करने की अनुमति दे ती है। इससे पेनाल्टी के डर के बिना कारोबारियों को सही रिटर्न भरने में मदद मिलेगी। सरकार के इस कदम से व्यापारियों को जीएसटी की गणना में हुई गलतियों को सुधारने और सही टैक्स क्रेडिट क्लेम करने का मौका मिलेगा। उन्हें कर देनदारी का सही आंकलन करने में दिक्कतें आ रही हैं। उद्योग संगठनों ने नियमों और अनुपालन को आसान बनाने की मांग की थी ताकि नया टैक्स अपनाने में दिक्कतें कम हो सकें। (हिफी)