पुण्य तिथि पर विशेष-देश का नाम रोशन करने वाली बेटी कल्पना चावला की पुण्यतिथि पर परमार्थ में दी गई श्रद्धाजंलि-दिवंगत कल्पना चावला की स्मृति में किया पौधा रोपण
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने बेटियों के सर्वांगीण विकास पर दिया जोर और हर बेटी को शौचालय सुविधा हो मुहैया इस हेतु कार्य करने का किया आह्वान
भारत की हर नारी में बसती है एक कल्पना, जरूरत है तो उसे उड़ान देने की-स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में देश का नाम रोशन करने वाली बेटी कल्पना चावला की पुण्यतिथि पर उन्हे श्रद्धाजंलि दी तथा परमार्थ प्रांगण में कल्पना चावला की स्मृति में शिवत्व का प्रतीक रूद्राक्ष का पौधा रोपित किया गया। परमार्थ परिवार के साथ लद्दाख से आयी युवा बौद्ध भिक्षुणियांे एवं विदेशी सैलानियों ने कुछ क्षण मौन रहकर उनके आत्मा की शान्ति हेतु प्रार्थना की।
आज की परमार्थ गंगा आरती 1 फरवरी 2003 को दुर्धटनाग्रस्त हुये कोलंबिया अंतरिक्ष यान में मारे गये सातों अंतरिक्ष यात्रियों को समर्पित की गयी।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने ’भारत की बेटियांे से आह्वान किया कि बेटियाँ केवल सपने देखे ही नहीं बल्कि उसे पूरा भी करे कल्पना चावला की तरह। भारत की हर नारी में एक कल्पना बसी है अतः उन्हे सम्मान दे; अवसर दे और संसाधन प्रदान करें ताकि देश की ये कल्पनायें ऊँची उड़ान भर सकें। बेटियों की कल्पना, कल्पना न रह जायें, उनका सपना, सपना न रह जायें बल्कि जीवन की हर ऊँचाई को वह छू सके। उन्होनेे कहा कि आज के युग में बेटियों को ’’संरक्षण नहीं, संसाधन चाहियें’’, वे प्रतिभाशाली और अद्म्य साहसी हैं। परन्तु एक कटु सत्य यह भी है कि आज भी हम बेटियों पर बेटों जैसा विश्वास नहीं कर पाते, इसका प्रमाण हमारे देश के लिंगानुपात से लगाया जा सकता है। स्वामी जी ने कहा कि सरकार ’बेटी बचाओे, बेटी पढ़ाओ’ और अनेक ऐसे अभियान चला रही है परन्तु बेटियों को सुरक्षित रखना समाज की सोच पर निर्भर करता है। सोच बदलेगी तो ही बेटियों का संघर्ष, प्रतिभा और चुनौतियाँ दिखाई दंेगी। भारतीय महिलाओं की उपलब्धियों की सूची बहुत बड़ी है बस उस पर गौर करने की जरूरत है, वे किसी से कमतर नहीं है बस उन पर विश्वास करने की आवश्यकता है।’
लद्दाख से आयी बौद्ध भिक्षुणियों के विषय मेें जानकारी देते हुये स्वामी जी ने कहा कि हम लद्दाख में इन बौद्ध भिक्षुणियों के स्कूल के लिये एक प्लान कर रहे है जिसके अन्तर्गत वहाँ पर इन कन्याओं के स्कूल में अलग शौचालय की सुविधायें उपलब्ध करायी जायेंगी। साथ ही अप्रैल केेे अंत में वहां की स्थानीय जनता और बौद्ध भिक्षुओं को साथ लेकर वहां पर हजारों की संख्या में फलदार पौधों का रोपण किया जायेगा ताकि स्थानीय लोगों को पोषण के साथ आजीविका के साधन भी प्राप्त हो सके।
लद्दाख से आयी बौद्ध भिक्षुणियों का दल तीन माह के लिये परमार्थ निकेतन आया हुआ है। उन्हे परमार्थ निकेतन में संस्कृत का प्रशिक्षण दिया जा रहा है साथ ही उन्हे योग, आसन, प्राणायाम, ध्यान, अध्यात्म एवं विश्व शौचालय काॅलेज में स्वच्छता के विभिन्न आयामों का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है जिससे वे सभी भविष्य में सशक्त नारी के स्वरूप में अपने को स्थापित कर सके तथा लद्दाख जाकर अन्य बौद्ध भिक्षुणियों एवं लामा को भी स्वच्छता एवं जल संरक्षण के लिये शिक्षित कर सके।
सांयकालीन परमार्थ गंगा आरती कल्पना चावला को समर्पित करते हुये सभी श्रद्धालुओं ने उन्हे श्रद्धाजंलि अर्पित की।
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कौन थी कल्पना चावला
कल्पना चावला भारतीय अमरीकी अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष शटल मिशन विशेषज्ञ थी और अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला थी। वे कोलंबिया अन्तरिक्ष यान आपदा में मारे गए सात यात्री दल सदस्यों में से एक थीं।
कल्पना चावला करनाल, हरियाणा, में जन्म लिया था। उनका जन्म 17 मार्च् 1962 में हुआ था। उसके पिता का नाम बनारसी लाल चावला और माता का नाम संजयोती था। वह अपने परिवार के चार भाई बहनो में सबसे छोटी थी। घर में सब उसे प्यार से मोंटू कहते थे। कल्पना की प्रारंभिक पढाई “टैगोर बाल निकेतन” में हुई। कल्पना जब आठवी कक्षा में पहुची तो उसने इंजिनयर बनने की इच्छा प्रकट की। उसकी माँ ने अपनी बेटी की भावनाओ को समझा और आगे बढने में मदद की। पिता उसे चिकित्सक या शिक्षिका बनाना चाहते थे। किंतु कल्पना बचपन सेही अंतरिक्ष में घूमने की कल्पना करती थी। कल्पना का सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण था – उसकी लगन और जुझार प्रवृति। कलपना न तो काम करने में आलसी थी और न असफलता में घबराने वाली थी। उनकी उड़ान में दिलचस्पी जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटासे प्रेरित थी जो एक अग्रणी भारतीय विमान चालक और उद्योगपति थे।
कल्पना चावला ने प्रारंभिक शिक्षा टैगोर पब्लिक स्कूल करनाल से प्राप्त की। आगे की शिक्षा वैमानिक अभियान्त्रिकी में पंजाब इंजिनियरिंग कॉलेज, चंडीगढ़, भारत से करते हुए 1982 में अभियांत्रिकी स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वे संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए 1982 में चली गईं और 1984 वैमानिक अभियान्त्रिकी में विज्ञान निष्णात की उपाधि टेक्सास विश्वविद्यालय आर्लिंगटन से प्राप्त की। कल्पना जी ने 1986 में दूसरी विज्ञान निष्णात की उपाधि पाई और 1988 में कोलोराडो विश्वविद्यालय बोल्डर से वैमानिक अभियंत्रिकी में विद्या वाचस्पति की उपाधि पाई। कल्पना जी को हवाईजहाज़ों, ग्लाइडरों व व्यावसायिक विमानचालन के लाइसेंसों के लिए प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का दर्ज़ा हासिल था। उन्हें एकल व बहु इंजन वायुयानों के लिए व्यावसायिक विमानचालक के लाइसेंस भी प्राप्त थे। अन्तरिक्ष यात्री बनने से पहले वो एक सुप्रसिद्ध नासा कि वैज्ञानिक थी।
1988 के अंत में उन्होंने नासा के एम्स अनुसंधान केंद्र के लिए ओवेर्सेट मेथड्स इंक के उपाध्यक्ष के रूप में काम करना शुरू किया, उन्होंने वहाँ वी/एसटीओएल में सीएफ़डी पर अनुसंधान किया।
कल्पना जी मार्च 1995 में नासा के अंतरिक्ष यात्री कोर में शामिल हुईं और उन्हें 1998 में अपनी पहली उड़ान के लिए चुनी गयीं थी। उनका पहला अंतरिक्ष मिशन 19 नवम्बर 1997 को छह अंतरिक्ष यात्री दल के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष शटल कोलंबिया की उड़ान एसटीएस-87 से शुरू हुआ। कल्पना जी अंतरिक्ष में उड़ने वाली प्रथम भारत में जन्मी महिला थीं और अंतरिक्ष में उड़ाने वाली भारतीय मूल की दूसरी व्यक्ति थीं। राकेश शर्मा ने1984 में सोवियत अंतरिक्ष यान में एक उड़ान भरी थी। कल्पना जी अपने पहले मिशन में 1-84 करोड़ मील का सफ़र तय कर के पृथ्वी की 252 परिक्रमाएँ कीं और अंतरिक्ष में 360 से अधिक घंटे बिताए। एसटीएस-87 के दौरान स्पार्टन उपग्रह को तैनात करने के लिए भी ज़िम्मेदार थीं, इस खराब हुए उपग्रह को पकड़ने के लिए विंस्टन स्कॉट और तकाओ दोई को अंतरिक्ष में चलना पड़ा था। पाँच महीने की तफ़्तीश के बाद नासा ने कल्पना चावला को इस मामले में पूर्णतया दोषमुक्त पाया, त्रुटियाँ तंत्रांश अंतरापृष्ठों व यान कर्मचारियों तथा ज़मीनी नियंत्रकों के लिए परिभाषित विधियों में मिलीं।
एसटीएस-87 की उड़ानोपरांत गतिविधियों के पूरा होने पर कल्पना जी ने अंतरिक्ष यात्री कार्यालय में, तकनीकी पदों पर काम किया, उनके यहाँ के कार्यकलाप को उनके साथियों ने विशेष पुरस्कार दे के सम्मानित किया।
1983 में वे उड़ान प्रशिक्षक और विमानन लेखक, जीन पियरे हैरीसन से मिलीं और शादी की और 1990 में संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिक बनीं।
भारत के लिए चावला की आखिरी यात्रा1991-92 के नए साल की छुट्टी के दौरान थी जब वे और उनके पति, परिवार के साथ समय बिताने गए थे। 2000 में उन्हें एसटीएस-107 में अपनी दूसरी उड़ान के कर्मचारी के तौर पर चुना गया। यह अभियान लगातार पीछे सरकता रहा, क्योंकि विभिन्न कार्यों के नियोजित समय में टकराव होता रहा और कुछ तकनीकी समस्याएँ भी आईं, जैसे कि शटल इंजन बहाव अस्तरों में दरारें। 16 जनवरी 2003 को कल्पना जी ने अंततः कोलंबिया पर चढ़ के विनाशरत एसटीएस-107 मिशन का आरंभ किया। उनकी ज़िम्मेदारियों में शामिल थे स्पेसहैब/बल्ले-बल्ले/फ़्रीस्टार लघुगुरुत्व प्रयोग जिसके लिए कर्मचारी दल ने 80 प्रयोग किए, जिनके जरिए पृथ्वी व अंतरिक्ष विज्ञान, उन्नत तकनीक विकास व अंतरिक्ष यात्री स्वास्थ्य व सुरक्षा का अध्ययन हुआ। कोलंबिया अन्तरिक्ष यान में उनके साथ अन्य यात्री थे-कमांडर रिक डी . हुसबंद पायलट विलियम स. मैकूल कमांडर माइकल प . एंडरसन इलान रामों डेविड म . ब्राउन लौरेल बी . क्लार्क.
अंतरिक्ष पर पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला कल्पना चावला की दूसरी अंतरिक्ष यात्रा ही उनकी अंतिम यात्रा साबित हुई। सभी तरह के अनुसंधान तथा विचार – विमर्श के उपरांत वापसी के समय पृथ्वी के वायुमंडल में अंतरिक्ष यान के प्रवेश के समय जिस तरह की भयंकर घटना घटी वह अब इतिहास की बात हो गई। नासा तथा विश्व के लिये यह एक दर्दनाक घटना थी। 1 फ़रवरी 2003 को कोलंबिया अंतरिक्षयान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया। देखते ही देखते अंतरिक्ष यान और उसमें सवार सातों यात्रियों के अवशेष टेक्सास नामक शहर पर बरसने लगे और सफ़ल कहलया जाने वाला अभियान भीषण सत्य बन गया।
ये अंतरिक्ष यात्री तो सितारों की दुनिया में विलीन हो गए लेकिन इनके अनुसंधानों का लाभ पूरे विश्व को अवश्य मिलेगा। इस तरह कल्पना चावला के यह शब्द सत्य हो गए,” मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूँ। प्रत्येक पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए ही मरूँगी।“