भारत सरकार ने अपनी विमान सेवा एयर इंडिया को भी निजी हाथों में सौंपने का इरादा और पक्का कर दिया है। इस कंपनी में अब सरकार का हिस्सा सिर्फ 24 फीसद रहेगा। इसके शेयर बेचने की प्रक्रिया तेज कर दी गयी है। सरकार ने एक प्रारूप तैयार कर लिया है यह सरकारी विमान सेवा कर्ज में बुरी तरह डूबी हुई है। एयर इंडिया पर 70 हजार करोड़ का कर्ज अब भी बकाया है और सरकार के सामने कोई अन्य विकल्प नहीं दिखाई पड़ रहा है। इसको बचाने के लिए सरकार के पास दो ही रास्ते हैं। पहला यह कि एयर इंडिया के कर्ज की भरपाई सरकार करे, अथवा उसके ज्यादा से ज्यादा शेयर बेच दे। किसी भी कंपनी में 50 फीसद से ज्यादा हिस्सेदारी होने पर ही मालिकाना हक मिल जाता है। हवाई यात्रा में अग्रणी मानी जा रही इंडिगो ने एयर इंडिया की हिस्सेदारी लेने में दिलचस्पी दिखाई है।
भारत सरकार इस मामले में काफी हिचकती रही है। सबसे ज्यादा विरोध एयर इंडिया के कर्मचारियों की तरफ से हो रहा है। इसलिए सरकार ने कई विकल्पों पर विचार भी किया था। सरकार चाहती थी कि 49 फीसद शेयर सरकार अपने पास रखे और बाकी बेच दे। इसके बाद भी सरकार का मालिकाना हक खत्म हो सकता था। इसी प्रकार सरकार ने अपने पास 26 फीसद, 24 फीसद और शून्य फीसद शेयर रखने का भी विकल्प बनाया लेकिन अंत में सरकार ने यह तय किया है कि वह अपने पास सिर्फ 24 फीसद शेयर रखेगी। इसके बाद की जिम्मेदारी दूसरी कम्पनी उठाएगी। इंडिगो पहले से ही इस मामले में दिलचस्पी दिखा रही है और संभवत: अब वही एयर इंडिया को भी अपने पास रखेगी। टीडीपी सांसद अशोक गजपति राजू अब तक नागरिक उड्यन मंत्रालय को संभाल रहे थे। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने के मामले पर भाजपा और टीडीपी के बीच तनाव के चलते अशोक गजपति राजू ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। राज्यमंत्री जयंत सिन्हा हैं और सुरेश प्रभु को इस मंत्रालय का कार्यभार भी देखने को कहा गया है। हालांकि जो भी फैसला लेना होगा वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वित्तमंत्री अरूण जेटली की सहमति से ही होगा लेकिन इससे एयर इंडिया के कर्मचारियों में चिंता है। सरकार ने आश्वासन दिया है कि एयर इंडिया के किसी भी कर्मचारी की नौकरी समाप्त नहीं की जाएगी। एयर इंडिया को खरीदने में कतर एयरवेज जैसी कंपनियां भी जोर लगा रही हैं लेकिन सरकार को सौदेबाजी में इसका भी ध्यान रखना पड़ेगा। (हिफी)