इसे संयोग नहीं बल्कि भारत के लिए गौरवशाली दिन कहा जाएगा जब 8 मार्च अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस से पहले ही हरियाणा की 16 वर्षीय मनु भाकर ने आईएसएसएफ विश्व कप में लगातार दूसरा स्वर्ण पदक जीता। निशानेबाजी की प्रतियोगिता में हरियाणा के झज्जर की मनु ने मैक्सिको में साल के पहले विश्वकप में अपने पार्टनर ओम प्रकाश मिथरवाल के साथ दस मीटर एयर पिस्टल की टीम प्रतिस्पद्र्धा में स्वर्ण पदक जीता है। इससे पूर्व महिलाओं की दस मीटर एयर पिस्टल प्रतिस्पद्र्धा में भी मनु ने पहली बार शिरकत करते हुए व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता था। हमारे देश की बालाओं ने अति सराहनीय कार्य किये हैं। आज ऐसा कोई कार्य क्षेत्र नहीं बचा जहां महिलाएं अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज न करा रही हों। वे फाइटर विमान उड़ाती हैं। देश की महिलाएं आत्मनिर्भर होकर स्वाभिमान से जी रही हैं। इसके बावजूद महिलाओं के प्रति अपने कर्तव्य में पुरुष कहीं-कहीं अपनी सोच नहीं बदल पाये हैं और भ्रूण हत्या जैसी शर्मनाक घटनाएं जब-तब सुनने को मिलती हैं। महिलाओं को सम्मान देकर ही कोई समाज आगे बढ़ सकता है और अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का यही उद्देश्य भी है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन करते हुए करीब सौ वर्षों से भी अधिक का वक्त गुजर चुका है। 8 मार्च को एक बार फिर पूरे विश्व में महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर तरह-तरह के सभा-सम्मेलन आयोजित किये जाएंगे। पर, क्या ऐसे दिवसों की वास्तव में कोई सार्थकता है? आज जिस तरह भारत सहित दुनिया के विभिन्न देशों में महिलाओं पर बढ़ती हिंसा की खबरें प्रकाश में आ रही हैं, उससे तो यही सवाल खड़ा होता है कि महिलाओं के सशक्तिकरण तथा सम्मान के नाम पर साल का मात्र एक दिन ही क्यों? तब, जबकि शेष 364 दिन महिलाओं के प्रति पुरुषों का व्यवहार पुरुषवादी व्यवस्था के इर्द-गिर्द ही घूमता दिखाई पड़ता हैं। ऐसे में केवल एक दिवस के तौर पर महिला दिवस का ढकोसला बंद होना चाहिए। गत कुछ वर्षों में महिलाओं के प्रति शारीरिक, मानसिक व घरेलू हिंसा की घटनाओं में तेजी से वृद्धि दर्ज की गई है। इस दौरान महिला अधिकारों की जमकर धज्जियां उड़ाई गईं, जबकि उनकी निजता का अपमान भी किया गया। न सिर्फ भारतीय घरों में, अपितु समाज के हरेक क्षेत्रों में उन्हें उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है। अपने देश के नक्सल प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की बात करें, तो वहां नागरिकों की सुरक्षा पर तैनात पुलिस व केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों पर आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार के आरोप लगते रहे हैं। ऐसा ही एक आरोप बीते दिनों लगा था, जिसके संबंध में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया कि नवंबर 2015 में छत्तीसगढ़ के बस्तर में पुलिसकर्मियों द्वारा 16 महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था। इसके साथ ही राष्ट्रीय मनावाधिकार आयोग ने महिलाओं पर हुए इस अत्याचार के लिए राज्य सरकार को भी जिम्मेदार माना है और उन्हें इससे संबंधित नोटिस भी भेजा है। आयोग ने कहा कि उसे 34 महिलाओं की तरफ से शारीरिक शोषण जैसे रेप, यौन उत्पीडऩ, शारीरिक उत्पीडऩ की शिकायतें मिलीं और हर मामले में आरोप सुरक्षाकर्मियों पर लगाए गए हैं। जांच में आयोग ने यह भी पाया कि पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करते समय एसटी-एससी एक्ट का पालन नहीं किया, जिसकी वजह से पीडि़त महिलाओं को आर्थिक राहत नहीं मिल सकी है। स्पष्ट है कि देश में महिलाओं के अधिकारों व सम्मान की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। अगर सुरक्षा में तैनात जवान ही इस तरह महिलाओं की अस्मत लूटने लगेंगे, तब महिलाओं का जीना और भी मुश्किल हो जाएगा।
देश की चंद महिलाओं की सफलता व उन्नति देखकर हम यह मान रहे हैं कि देश में महिलाओं की स्थिति बहुत बेहतर है, तब यह हमारी बड़ी भूल समझी जाएगी। शिक्षा, जागरूकता व अपने अधिकारों से वंचित महिलाओं की एक बड़ी आबादी आज भी शारीरिक व मानसिक रूप से शोषित हो रही है। हद तो यह है कि कभी बहलाकर, झांसा देकर, तो कभी जबरदस्ती उनका शारीरिक शोषण किया जाता रहा है। कभी बेटी होने के कारण उन्हें मां के उदर में ही मार दिया जाता है, तो कभी दहेज के नाम पर बहुएं जला दी जाती हैं और तो और परिवार न टूट जाए, इस वजह से ताउम्र अपमान व अन्याय का कड़वा घूंट पीकर महिलाएं चुप रह जाती हैं। अगर इन सबसे वे बच भी जाएं, तो कभी निर्भया के रूप में बलिदान देना पड़ता है, तो कभी दैहिक और प्राय: प्रतिदिन पुरुषों की भूखी नजरों से बलात्कार का शिकार होना पड़ता है। महिलाओं के साथ आए दिन छेड़छाड़, भद्दे कमेंट्स करना और अपहरण की घटनाएं आम हो चुकी हैं। अब नारी समाज में पूजनीय नहीं, अपितु भोग की वस्तु समझी जा रही है।
गांवों में आज भी जादू-टोना और डायन बिसाही के शक में महिलाओं की हत्या की जाती है अथवा उन्हें प्रताडि़त किया जाता है। राष्ट्रीय महिला आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार झारखण्ड, असम, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के ५० से अधिक जिलों में महिलाओं को डायन बता कर उन पर अत्याचार किए जाते हैं। आलम यह है कि प्यार की मूरत व सागर समझी जाने वाली महिलाओं पर काला जादू या टोना-टोटका के अंधविश्वास भरे आरोप लगा कर पहले उसे डायन घोषित किया जाता है, फिर प्रताडि़त और अंत में जान से मार दिया जाता है। झारखंड के गठन के मात्र डेढ़ दशक हुए हैं, लेकिन अब तक राज्य में इस तरह की १२०० घटनाएं सामने आ चुकी हैं। झारखंड सरकार तथा उच्च न्यायालय दोनों इन घटनाओं पर चिंता व्यक्त करती रहती हैं। हालाँकि, अब झारखंड सरकार इस सामाजिक कुप्रथा से लडऩे तथा सुदुरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से कक्षा 6,7 और 8 के बच्चों को डायन और जादू टोना जैसी सामाजिक कुरीतियों के विषय में जानकारी देने संबंधी बातें अध्ययन सामग्री के रूप में जोडऩे का र्पयास कर रही है, जो अच्छी बात है। अन्य राज्य सरकारों तथा केंद्र सरकार को इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है, ताकि निर्दोष महिलाओं की मौत को किसी भी हालत में रोका जा सके। हम जब तक ऐसे हालात नहीं बना पाते, तब तक अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। (हिफी)