प्राचीनकाल में शुम्भ और निशुम्भ नाम के असुर अपनी शक्ति के गर्व में चूर होकर इन्द्र के पास गए उन्होंने अपनी शक्ति से इन्द्र से तीनों लोकों का राज्य छीन लिया। बस फिर क्या था वे तो सारे देवताओं के अधिकार प्राप्त करके अपने आपको महाशक्तिशाली असुर राजा समझ बैठे, देवताओं की मान्यता समाप्त करके अपने आपको भगवान की पदवी पर विराजमान यह दोनों असुर प्रभु भक्तों पर अत्याचार करने लगे। वे सबसे यही कहते थे कि हमारे राज्य में केवल हमारी पूजा होगी।देवगण बहुत चिन्तित हुए और सारे मिलकर ईश्वर की उपासना करते हुए कहने लगे कि हमें इन पापियों से मुक्त करवाओ। सारे देवता असुरों के भय से हिमालय पहाड़ पर जाकर प्रभु की उपासना कर रहे थे। वहीं पर उन्होंने मां शक्ति दुर्गा को याद करके उनकी उपासना आरंभ की। देवों ने कहा अपने भक्तों की आप ही रक्षा करो मां। यदि अब भी आप न प्रकट हुईं तो वे दिन दूर नहीं जब इस पृथ्वी पर पाताल लोक और आकाश लो से धर्म ही समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार जब देवता मां की उपासना कर रहे थे उस समय पार्वती देवी, गंगा जी केे पानी में स्नान करने के लिए वहां आईं तब मां पार्वती ने उन देवताओं से पूछा-आप लोग यहां किसकी उपासना कर रहे हैं?उसी समय शिवा देवी प्रकट होकर बोलीं-हे पार्वती! यह सारे देवगण शुम्भ और निशुम्भ जैसे खूनी असुरों के हाथों मार खाकर यहां आए हैं और उस पापी का सर्वनाश करने के लिए मेरी उपासना कर रहे हैं। उसी समय पार्वती जी के शरीर से अम्बिका देवी का प्रादुर्भाव हुआ। इसलिए वे सारे संसार में कौशिकी देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। थोड़े समय पश्चात ही शुम्भ निशुम्भ के भाई चंड मुण्ड दोनों वहां पर आए। उन्होंने महासुन्दरी अम्बिका को देखा तो उनके दिलों मेंं पाप जागा और वे भागे-भागे अपने राजा शुम्भ के पास जाकर बोले-महाराज! हिमालय पर हमने एक ऐसी सुंदरी को देखा है जिसकी सुंदरता का प्रकाश चांद की भांति चारों ओर फैला हुआ है। वास्तव में ऐसी सुंदरी आपके ही योग्य है क्योंकि आप महाशक्तिमान हैं व आपसे बड़ा राजा तीनों लोकों में कोई नहीं। चंड मुण्ड से यह बात सुनकर शुम्भ ने अपने महादैत्य सुग्रीव को अपना दूत बनाकर देवी के पास भेजा और उसे कहा कि उसे जाकर कहा कि वह हमसे विवाह करके हमारे महलों की शोभा बढ़ाए और तीन लोकों की महारानी बनकर जीवन का आनन्द ले। उसी समय शुम्भ का दूत देवी के पास गया और उसे जाकर बोला-हे महान सुंदरी मुझे तीनों लोकों के महाराजा शुम्भ ने आपके पास इसलिए भेजा है कि आप उनसे विवाह करके तीनों लोकों की महारानी बन जाएं। आप तो जानती ही होंगी कि वे सब देवताओं को हराकर इस समय महाशक्तिमान हैं। उस असुर की बात सुनकर देवी ने क्रोध से कहा-हे दूत! इसमें कोई संदेह नहीं कि तुम्हारे राजा तीनों लोकों के स्वामी हैं। वे महावीर और महाशक्तिमान हैंं। किन्तु मैंने जो प्रतिज्ञा कर रखी है उसका क्या होगा?
कौन सी प्रतिज्ञा सुंदरी?
यही कि जो भी मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी, जाओ जाकर अपने राजा से बोल दो। देवी की बात सुनकर दूत बोला हे देवी, तुम में बहुत अधिक गर्व आ चुका है और मुझे यह भी लगता है कि शायद तुम्हारी बुद्धि भी काम नहीं करती, क्योंकि यह बात तो तुम अच्छी तरह जानती हो कि हमारे राजा शुम्भ और निशुम्भ के मुकाबले में कोई वीर नहीं ठहर सका। सबने उनके सामने अपनी हार मान ली है।अब भला तुम्हारे जैसी कन्या उनके साथ क्या युद्ध करेगी? यह सोचकर तो मुझे दु:ख हो हा है। मैं तो तुम्हारी सुन्दरता को देखकर सोच रहा हूं कि आखिर तुम्हारा क्या होगा? देखो तुम मेरी बातों पर ध्यान करो। मैं अपना भला, बुरा स्वयं सोच सकती हूं। मैं इन तीनों लोको में किसी से नहीं डरती और न ही भविष्य में डरूंगी। तुम जाकर अपने राजा से बोल दो कि मैंने जो प्रतिज्ञा की है उसे तुम पूरी करके ही मुझसे विवाह कर सकते हो। देवी की यह बात सुनकर दूत को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने अपने राजा के पास जाकर उस लड़की की सारी कहानी सुनाई। जैसे ही असुर राजा ने अपने दूत के मुंह से यह बात सुनी तो उसे लड़की के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर बहुत क्रोध आया, उसने अपने एक सेनापति धूम्र लोचन को बुलाकर उससे कहा- तुम इस समय अपनी सेना को लेकर उस लड़की का दिमाग ठीक कर दो लगता है उसे अभी तक हमारी ताकत का पता नहीं चला। यदि वह प्यार से हमारी रानी बनने के लिए तैयार हो जाए तो ठीक है अन्यथा उसे बंदी बनाकर हमारे पास बालों से घसीटते हुए ले जाओ। धूम्रलोचन अपनी सेना लेकर चल दिया। देवी के पास आकर उसने कहा-देखो, यदि तुम प्यार से मेरे साथ मेरे राजा के पास चलोगी, तो बहुत अच्छा है नहीं तो तुम्हें केशों से पकड़कर घसीटता हुआ ले जाऊंगा। अरे ओ मूर्ख- मैंने जो प्रतिज्ञा की है उसे मैं स्वयं कैसे तोड़ सकती हूं? यदि तुम और तुम्हारे स्वामी को मेरी आवश्यकता है तो केवल इस शर्त पर आ सकती हूं कि तुम मेरे साथ युद्ध करो यदि तुम उसमें विजय प्राप्त करते हो तो मैं स्वयं ही तुम्हारे साथ चल दूंगी। तुम एक नारी होकर मुझसे युद्ध करोगी धूम्र लोचन! मां दुर्गे को खिलौना समझ कर खेलना चाहता था किन्तु उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे यह तो कोई लोहे की देवी हो जिसके शरीर पर किसी भी शस्त्र का कोई प्रभाव नहीं हो रहा था। देखते ही देखते उस चंडी रूप धारण किए महाशक्ति ने सारी असुर सेना का वध करके उनके शवों के ढेर लगा दिए। धूम्रलोचन ने जब अपनी सेना का इस तरह वध होते देखा तो उसे भी क्रोध आ गया वह अकेला ही दुर्गा की ओर तलवार लेकर दौड़ा।किन्तु मां शक्ति की तलवार के सामने उसकी तलवार टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ी धूूम्रलोचन जैसे दुर्गा की ओर देखने लगा। मां शक्ति के मुंह से भयंकर आग निकली जिससे धूम्रलोचन जलकर राख हो गया। (हिफी)