भाजपा ने जहां त्रिपुरा में वाम मोर्चे के 25 साल पुराने मजबूत किले को ढहा दिया और मेघालय में दो विधायक होने के बावजूद साझे की सरकार बनाने में सफल रही। वहीं राजस्थान जैसे बड़े राज्य में उसे कांग्रेस के हाथों पराजय-दर-पराजय का सामना करना पड़ रहा है। वहां की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भाजपा के विजय अभियान पर एक ऐसा धब्बा बनती जा रही हैं जिस पर लोगों का ध्यान बरवस चला ही जाता है। मेघालय में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन भाजपा ने अपने तिकड़म से कांग्रेस की सरकार वहां नहीं बनने दी और राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया भाजपा की सरकार रहते हुए न सिर्फ दो लोकसभा और एक विधानसभा का चुनाव हार गयीं बल्कि पंचायती राज संस्थानों और स्थानीय निकाय चुनाव में भी फिसड्डी साबित हुई हैं। प्रदेश कांग्रेस के नेता अपने केन्द्रीय नेतृत्व के आंसू पोंछने में ही सफल नहीं रहे बल्कि पार्टी में लगातार उत्साह भी पैदा कर रहे हैं। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में भी दोनों विधानसभाओं के उप चुनाव जीते थे और उससे पूर्व चित्रकूट विधानसभा का उप चुनाव जीता। इन दोनों ही राज्यों में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं।
राजस्थान में दो लोकसभा चुनाव और एक विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस ने पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय निकाय उप चुनावों में भी भाजपा को पटकनी दे दी है। आमतौर पर होता यह रहा है कि प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार होती है उसी को उप चुनावों और स्थानीय निकाय चुनावों में सफलता मिलती है। इसके पीछे सरकारी मशीनरी का सत्तारूढ़ दल के पक्ष में अनुकूल व्यवहार माना जाता है। घोषित रूप में तो यही कहा जाता है कि चुनाव निष्पक्ष एवं बिना किसी दबाव के कराये जाते हैं।
लोकसभा और विधानसभा के उप चुनावों में तो केन्द्रीय चुनाव आयोग पूरी तरह से निगरानी रखता है लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों मेंं राज्य निर्वाचन आयोग ही सर्वेसर्वा है। इसलिए राजस्थान में 7 मार्च को जब पंचायती राज संस्थानों और स्थानीय निकाय उप चुनाव के नतीजे घोषित किये गये तो भाजपा के प्रदर्शन को देखकर हैरानी हुई। ये उप चुनाव थे लेकिन इसी साल होने वाले विधानसभा और हाल में हो चुके दो संसदीय और एक विधानसभा के उप चुनावों के मद्देनजर महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। लोगों को उम्मीद थी कि भाजपा अच्छा प्रदर्शन करेगी लेकिन स्थानीय निकाय उप चुनाव के नतीजों में कांग्रेस ने छह जिला परिषदों में से चार पर कब्जा कर लिया। इसी प्रकार 20 पंचायत समिति में से 12 पर और छह स्थानीय निकायों में से 4 पर कांग्रेस ने भाजपा को पटकनी दे दी। सत्ताधारी भाजपा ने जिला परिषद की केवल 1 सीट, पंचायत समिति की 8 सीटों पर स्थानीय निकाय की सिर्फ दो सीटों पर विजय पायी है। जिला परिषद और पंचायत समिति के एक-एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे हैंं। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट पहले से ही यह कह रहे थे कि अब राज्य से भाजपा की विदाई का समय आ गया है। अब नगर निकाय, जिला परिषद और पंचायत समिति के उप चुनावों मेें कांग्रेस को मिली सफलता पर खुशी जाहिर करते हुए प्रदेश की जनता और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बधाई दी है।
कहते हैं कि आदमी बड़ा कौर भले ही खा ले लेकिन बड़े बोल न बोले। राजस्थान में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के साथ अब यही हो रहा है। अभी चार दिन पहले (तीन मार्च) को ही उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश भरा था। दरअसल राज्य में दो लोकसभा सीटों और एक विधानसभा की सीट पर हुए उप चुनाव में भाजपा की पराजय सेे कार्यकर्ता भी हताश हो रहे थे। इसीलिए प्रदेश भाजपाध्यक्ष ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ता इस साल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में 180 के मिशन को पूरा करेंगे। विधायक परनामी ने प्रदेश भाजपा मुख्यालय में पूर्वोत्तर राज्यों (त्रिपुरा, मेघालय और नागालैण्ड) में मिली सफलता का जश्न मनाते हुए यह बात कही थी। उन्होंने पत्रकारों से भी इस विजय अभियान के संदर्भ में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विकास यात्रा और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के मजबूत संगठन के बूते देश के 20 राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं तथा आने वाले समय में यह संख्या और बढ़ेगी। उनका इशारा राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ कर्नाटक और मिजोरम के चुनावों की तरफ था। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने राजस्थान का विशेष रूप से उल्लेख भी किया। उन्होंने कहा था कि इस साल के अंत में राजस्थान की 200 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव होने हैं। इनमें से भाजपा 180 सीटें जीतने का मिशन बनाकर चल रही है। उन्होंने यह भी कहा कि अगले साल अर्थात 2019 में भाजपा राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटें जीतेगी।
श्री अशोक परनामी ने कांग्रेस की उपचुनावों में जीत को नजरंदाज करते हुए कहा कि कांग्रेस ने गरीबी मिटाने का नारा दिया लेकिन गरीबों के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने पत्रकारों से यह भी कहा कि कांग्रेस ने राज्य में जातियों को आपस में बांटने का काम किया जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबी मिटाने और सभी जातियों को जोडऩे का काम किया है इसलिए कांग्रेस को यहां की जनता नकार देगी। अशोक परनामी के इन दावोंं पर राजनीतिक विश्लेषक उंगली उठा रहे हैं। दो लोकसभा सीटों और एक विधानसभा उप चुनाव में भाजपा की हार के बाद ही यह कहा जाने लगा था कि वसुंधरा राजे की सरकार की पकड़ ढीली पड़ गयी है। अब स्थानीय निकाय और जिला परिषद के उप चुनावों ने भी यही साबित कर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जहां तक सवाल है तो उनकी लोकप्रियता अन्य नेताओं से ज्यादा है लेकिन राज्य की जनता सुशासन और विकास भी देखना चाहती है। लोकप्रियता के मामले में त्रिपुरा के माणिक सरकार भी कम नहीं थे और वहां की जनता उनकी सादगी पर फिदा रहती थी। उनकी ईमानदारी पर कोई उंगली नहीं उठा पाया लेकिन राज्य में विकास नहीं हुआ गरीबी मिटाने का प्रयास नहीं किया गया। पूरे देश में जब राज्य कर्मचारियों को सातवां वेतनमान मिल रहा था तब त्रिपुरा में चौथा वेतनमान दिया जा रहा था। इसीलिए वहां की जनता ने लोकप्रिय मुख्यमंत्री को भी सत्ता से बाहर कर दिया। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर जनता कब तक भाजपा को सत्ता सौंपती रहेगी? हालांकि कांग्रेस के लिए वहां अच्छी संभावनाएं दिख रही हैं लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच बेहतर तालमेल होना जरूरी है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जो उत्साह और जोश है उसे बनाये रखना होगा। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अशोक परनामी का यह कहना तो बिल्कुल दुरुस्त है कि भाजपा ने मजबूत संगठन के बल पर देश के 20 राज्यों में भगवा फहरा दिया है लेकिन राजस्थान में भाजपा का संगठन मजबूत नहीं है यह बात उन्हें स्वीकार कर लेनी चाहिए। उप चुनावों में लगातार मिल रही पराजय भी इसी बात की पुष्टि कर रही है। (हिफी)