जयंती पर विशेष-एजेन्सी। घनश्याम दास बिड़ला का जन्म 10 अप्रैल 1894 पिलानी में हुआ था। 11 जून 1983 को बम्बई अब मुंबई में उनका निधन हो गया। इनका खानदानी पेशा रुपया ब्याज पर देना था. शेखावाटी के मारवाड़ी जयपुर रियासत बड़ी और कई छोटी-मोटी रियासतों के राजाओं को ब्याज़ पर रुपया देते थे. कई राजा जब बम्बई ,कलकत्ता आते थे तब मारवाड़ी उन्हें नज़राना पेश किया करते थे. घनश्याम दास बिड़ला के दादा ने इसी नज़राने के तहत पिलानी गांव झुंझुनू के ठाकुर से खरीद लिया था. बड़े शहर जाकर व्यापर सीखने की रवायत को घनश्याम दास ने भी निभाया और कलकत्ता चले आये. यहां वे नाथूराम सराफ के बनाये हुए हॉस्टल में रहने लगे.16 साल की उम्र तक आते-आते उन्होंने अपनी ट्रेडिंग फॉर्म खोल ली और पटसन (जूट) की दलाली में लग गए. पहले विश्व युद्ध में पटसन और कपास की भारी मांग के चलते घनश्याम दास बिड़ला ने खूब मुनाफा कमाया. घनश्याम दास बिड़ला ने तब मैन्युफैक्चरिंग में कदम रखा और 1917 में कोलकाता में ‘बिड़ला ब्रॉदर्स’ के नाम से पहली पटसन मिल की स्थापना की. 1939 के आते आते ये फैक्ट्री देश की तेहरवीं सबसे बड़ी निजी फैक्ट्री बन चुकी थी. इसी समय जेआरडी टाटा भी हिंदुस्तान के नक़्शे पर उभर रहे थे. एक अनुमान के हिसाब से 1939 से 1969 तक टाटा की संपत्ति 62.42 करोड़ से बढ़कर 505.56 करोड़ (करीब आठ गुना) हो गई थी. उधर घनश्याम दास बिड़ला की संपत्ति 4.85 करोड़ से बढ़कर 456.40 करोड़ यानी करीब 94 गुना हो गयी थी.वे भारत के अग्रणी औद्योगिक बिड़ला समूह के संस्थापक थे। श्री बिड़ला ने देश के स्वाधीनता आंदोलन में भी भाग लिया था। बिड़ला ग्रुप का मुख्य व्यवसाय कपड़ा, फ्लामेंट यार्न, सीमेंट, केमिकल, बिजली, दूरसंचार, वित्तीय सेवा और एल्युमिनियम क्षेत्र में है, जबकि अग्रणी कंपनियां ग्रासिम इंडस्ट्रीज और सेंचुरी टेक्सटाइल हैं। श्री बिड़ला गांधीजी के मित्र, सलाहकार, प्रशंसक एवं सहयोगी थे। श्री बिड़ला देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल के अभिन्न मित्र थे।आज़ादी के आंदोलन में घनश्याम दास बिड़ला की तीनतरफ़ा भूमिका थी. पहला, उन्होंने पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास के साथ मिलकर ‘फ़िक्की’ की स्थापना की. दूसरा, आज़ादी की जंग में उनसे ज़्यादा धन किसी ने नहीं लगाया और तीसरा, 1926 में मदन मोहन मालवीय और लाला लाजपत राय की पार्टी की तरफ से सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में गोरखपुर की सीट से चुने गए थे. उन्होंने 30 साल की आयु में ही अपने औद्योगिक साम्राज्य को स्थापित कर दिया था। वे सच्चरित्रता तथा ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। घनश्यामदास बिड़ला का अपने बेटे के नाम लिखा हुआ पत्र इतिहास के सर्वश्रेष्ठ पत्रों में से एक माना जाता है। 1957 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। फोटो सोशल मिडिया से