लखनऊ: हजरत अली के बेटे व इमाम हुसैन के भाई हजरत अब्बास की यौमे विलादत पर रूस्तम नगर स्थित दरगाह हजरत अब्बास में ‘जश्ने हजरत अबुल फजलिल अब्बास का आयोजन किया गया। इस मौके पर अजादारों को हजरत अब्बास के अलम की जियारत भी कराई गई।
जश्न का आगाज नासिर हुसैन ने तिलावत ए कुरान पाक से किया। इसके बाद 72 बच्चों ने हजरत अब्बास की शान में मनकबत पढ़ी।
वहीं, हजरत अब्बास की विलादत पर पुराने लखनऊ में लोगों ने घरों में नज्र व महफिलों का आयोजन किया। कार्यक्रम के आयोजक मीसम रिजवी ने बताया कि जश्ने अब्बास के मौके पर दरगाह हजरत अब्बास को खूबसूरत रोशनी में सजाया गया था। साथ ही अजादारों के स्वागत के लिए बीस गेट लगवाए गए थे।
महफिल से पहले जब 5 फिट लम्बे अलम के फरेरे को खोला गया तो वहां मौजूद हजारों अजादारों ने हाथ उठाकर नारे हैदरी या अली की सदांए बुलन्द की। साथ ही देश की तरक्की के लिए दुआ की। मौला अब्बास की विलादत पर दरगाह में खूबसूरत आतिशबाजी का आयोजन भी किया गया। इससे पहले हुई महफिल को खिताब करते हुए इमाम ए जुमा मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा कि हजरत अब्बास की बहादुरी, जंबाजी, वफादारी, शराफत और सब्र व कुर्बानी की ऐसी मिसाल है,
जिसका कोई उदाहरण इतिहास में नहीं मिलता है। इस मौके पर मौलाना हबीब हैदर ने कहा कि हजरत अब्बास सिर्फ वफादारी और बहादुरी के मिसाल नहीं थे बल्कि वह अपने जमाने के बड़े आलिमों में गिने जाते थे। हजरत अब्बास को अरब के सबसे बड़े कबीले बनी हाशिम का चांद कहा जाता था।