भाजपा की केरल-राह भी हो रही आसान
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले दिनों मुंबई में पार्टी के स्थापना दिवस के अवसर पर हुई रैली में विपक्षी दलों के लिए कुछ प्रतीकों का सहारा लिया था। इस बात पर कई विपक्षी नेता नाराज भी हुए। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा नेता सुश्री मायावती ने कहा कि श्री अमित शाह ने असभ्य भाषा का प्रयोग किया है। विपक्षी दलों को इस प्रकार से आलोचना के अवसर मिल जाते हैं लेकिन बाढ़ में पेड़ पर एक साथ सांप-नेवला आदि का उदाहरण विपक्षी दलों की विचारधारा को लेकर दिया गया है। विपक्षी दल एकजुट होकर 2019 में भाजपा का मुकाबला करने की बात कर रहे हैं लेकिन उनके स्वार्थ आपस में टकरा जाएंगे। इस तरह का संकेत वामपंथी शासन के आखिरी गढ़ केरल से मिल रहा है। भाजपा ने वामपंथियों के सबसे मजबूत गढ़ त्रिपुरा को ढहाकर जिस तरह बहुमत की सरकार बनायी है, उसके क्रम में अब केरल भी भाजपा के निशाने पर है। केरल में माकपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे ही अब तक सत्ता संभालते रहे हैं। इस बार वहां माकपा के नेतृत्व वाली एलडीएफ सरकार है और भाजपा ने केरल पर कब्जा करने के लिए अर्से से तैयारी शुरू कर दी है। केरल में कांग्रेस और वामपंथी अगर अलग-थलग रहे तो भाजपा को अपना लक्ष्य प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होगी। त्रिपुरा में माणिक सरकार की सत्ता को जब भाजपा पलट सकती है तो केरल में पी. विजयन की सरकार तो उसकी अपेक्षा काफी कमजोर है।
देश में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ही है और उसने वामपंथियों के साथ 2004 की तरह मोर्चा बनाना शुरू कर दिया है। हालांकि अभी विपक्ष काफी बिखरा है लेकिन वामपंथी और कांग्रेस अगर एक साथ आ जाएंगे तो धर्मनिरपेक्ष दलों को एकजुट करने में आसानी होगी। इस प्रकार 2019 के लोकसभा चुनावों को लेकर भाजपा विरोधी कई मोर्चे बन रहे हैं। उत्तर प्रदेश में प्रबल प्रतिद्वन्द्वी रहे सपा और बसपा ने गोरखपुर और फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव में गठबंधन करके भाजपा को जिस तरह से करारी शिकस्त दी थी, उससे इन दोनों दलों को लगता है कि वे ऐसा मोर्चा राष्ट्रीय स्तर पर खड़ा कर सकते हैं। श्री अमित शाह के बयान पर सुश्री मायावती ने इसीलिए तीव्र विरोध भी जताया है क्योंकि उन्हंे लगा कि भाजपा अध्यक्ष की टिप्पणी सपा-बसपा के साथ को लेकर ही हुई है। हालांकि विपक्षी एकता के समीकरण अभी बिखरे हुए हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी कभी कहती हैं कि हमें गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी मोर्चा बनाना चाहिए लेकिन बाद में वे श्रीमती सोनिया गांधी से भी मिलती हैं और कहती हैं कि भाजपा के खिलाफ बनने वाले मोर्चे में कांग्रेस भी शामिल हो। उधर, राजग का साथ छोड़कर बाहर आये आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू भी अलग मोर्चा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। सुश्री ममता बनर्जी शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे को भी जोड़ना चाहती हैं। वरिष्ठ नेता शरद पवार की भूमिका क्या रहेगी, इसका खुलासा वे नहीं कर रहे हैं। तमिलनाडु के एम. करुणानिधि भी अपने पत्ते पूरी तरह नहीं खोल रहे जबकि वहां दिनाकरन ने अलग पार्टी बना ली है और अन्नाद्रमुक के टुकड़े हो गये।
इस तरह भाजपा विरोधी मोर्चे को लेकर बातचीत के दौर में केरल के मुख्यमंत्री पिन्नराई विजयन का यह बयान चैंकाने वाला है कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। केरल में अभी कांग्रेस ही मुख्य विपक्षी पार्टी है जिसने स्थानीय दलों को मिलाकर यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) बना रखा है। श्री पी. बिजयन विपक्ष का गठबंधन बनाने के लिए कांग्रेस के साथ जाने के इच्छुक नहीं हैं। वह कहते हैं कि इसके बजाय राज्य की जनता को असली राजनीतिक विकल्प देने का उद्देश्य होना चाहिए। श्री पी. बिजयन का मानना है कि इन दिनों ़क्षेत्रीय दल सभी राज्यों में मजबूत हैं और अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला करने के लिए बेहतर तालमेल का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। श्री बिजयन को त्रिपुरा में वामपंथ की पराजय का अफसोस है और भय भी, क्योंकि उन्हंे लगता है कि एक जब माणिक सरकार का मजबूत किला टूट गया तो केरल को बचाना भी असान नहीं होगा। इसलिए वे कहते हैं कि भाजपा ने लोकतांत्रिक मान्यताओं को ध्वस्त किया है और ऐसी ताकतों को पराजित करना अत्यावश्यक है। इसके लिए क्षेत्रीय दलों के बीच सहयोग होना चाहिए। श्री बिजयन का इशारा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव के फार्मूले की तरफ है जो कांग्रेस या कांग्रेस के बगैर ऐसा मोर्चा बनाने की बात कहते हैं।
इस प्रकार केरल के मुख्यमंत्री पी. बिजयन नहीं चाहते कि बड़े राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय दलों की अगुवाई करें। वे कहते हैं कि क्षेत्रीय दल मजबूत हैं और आपस में मिलकर ही भाजपा का मुकाबला कर सकते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर किसी एक खास पार्टी से हाथ मिलाने का कोई औचित्य नहीं है। यह भी ध्यान रखने की बात है कि इसी साल जनवरी में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के केन्द्रीय समिति की बैठक में यह राजनीतिक प्रस्ताव मंजूर किया गया था कि कांग्रेस के साथ किसी प्रकार का चुनावी गठजोड़ या समझौता नहीं होगा। केरल के मुख्यमंत्री पी. बिजयन सिर्फ केरल में ही क्षेत्रीय दल को कांग्रेस से दूर नहीं रखना चाहते बल्कि तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति और ओडिशा में बीजू जनता दल को भी इस प्रकार की रणनीति अपनाने की सलाह दे रहे हैं। हालांकि वह कहते हैं कि पार्टी का मुख्य उद्देश्य भाजपा को पराजित करना है। यह बात माकपा पोलित ब्यूरो में भी कही गयी थी। इस मकसद के लिए सभी लोकतांत्रिक ताकतों को एक करने की बात भी हुई थी। माकपा ने अभी 30 मार्च को घोषणा भी की थी कि कर्नाटक में भाजपा को हराने के लिए सबसे मजबूत उम्मीदवार का समर्थन किया जाएगा। कांग्रेस का नाम तब भी खुलकर नहीं लिया गया था।
इस प्रकार केरल में एलडीएफ को अकेले रखकर पी. विजयन भाजपा का मुकाबला कतई नहीं कर पाएंगे। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह कहते भी हैं कि भाजपा के निशाने पर अब पश्चिम बंगाल केरल और ओडिशा हैं। पी. बिजयन जैसे नेता भाजपा की राह को आसान बना रहे हैं क्योंकि क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्य में ही मजबूत हैं, केरल में उनसे कोई मदद नहीं मिल सकती। केरल में माकपा को मदद कांग्रेस से ही मिल सकती है, जिसका बिजयन साथ नहीं लेना चाहते। (हिफी)