सुरेंद्र साम्भाणी। स्वप्निल संसार। सर्च इंजन गूगल अक्सर महान शख्स के जन्मदिवस या पुण्यतिथि पर डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि देता है, लेकिन आज गूगल ने साहित्य जगत की आधुनिक ‘मीरा’ महादेवी वर्मा पर किसी और वजह से डूडल बनाया है.आज ही के दिन 1982 में महादेवी वर्मा को भारतीय साहित्य में योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
हिंदी साहित्य के छायावादी युग की कवयित्री महादेवी वर्मा (26 मार्च, 1907-11 सितम्बर, 1987) की गिनती हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ सुमित्रानन्दन पन्त, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के साथ की जाती है।कवि निराला ने उन्हें ‘हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती’ भी कहा है. हिंदी साहित्य को जिन रचनाकारों ने अपनी अलग पहचान के साथ समृद्ध किया है, उनमें महादेवी वर्मा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. इनकी कविताओं में करुणा, संवेदना और दुख के पुट की अधिकता है. उन्हें ‘आधुनिक मीराबाई’ भी कहा जाता है.महादेवी वर्मा अपने परिवार में कई पीढ़ियों के बाद उत्पन हुई। उनके परिवार में दो सौ सालों से कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी, यदि होती तो उसे मार दिया जाता था। दुर्गा पूजा के कारण आपका जन्म हुआ। आपके दादा फ़ारसी और उर्दू तथा पिताजी अंग्रेज़ी जानते थे। माताजी जबलपुर से हिन्दी सीख कर आई थी, महादेवी वर्मा ने पंचतंत्र और संस्कृत का अध्ययन किया। महादेवी वर्मा जी को काव्य प्रतियोगिता में ‘चांदी का कटोरा’ मिला था। जिसे इन्होंने गाँधीजी को दे दिया था। महादेवी वर्मा कवि सम्मेलन में भी जाने लगी थी, वो सत्याग्रह आंदोलन के दौरान कवि सम्मेलन में अपनी कवितायें सुनाती और उनको हमेशा प्रथम पुरस्कार मिला करता था। महादेवी वर्मा मराठी मिश्रित हिन्दी बोलती थी।उनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे. उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था.
उन्होंने खड़ी बोली हिंदी की कविता में कोमल शब्दावली का विकास किया. उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं. उनका बाल-विवाह हुआ था, परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया. महादेवी का निधन 11 सितंबर 1987 को हुआ था.महादेवी ने सफेद वस्त्र पहनकर संन्यासिन की तरह अपना जीवन गुजारा. इनके जीवन की छाप इनकी रचनाओं में भी देखी जा सकती है, जिसमें संवेदना की अधिकता है.
महादेवी जी ने हिंदी काव्य जगत को नीहार ,रशि्म,नीरजा , सांध्यगीत, दीपशिखा,सप्तपर्णा, हिमालय जैसे उत्कृष्ट काव्य ग्रंथ दिया है. अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, श्रृंखला की कड़ियां आदि महादेवी जी की प्रसिद्ध गद्य रचना है. श्रृंखला की कड़ियां (1942) में प्रकाशित हुआ. इसमें महादेवी वर्मा जी ने स्त्री की सामाजिक से लेकर आथिर्क परतंत्रता का विश्लेषण किया है. वे स्त्री की शिक्षा, स्वावलंबन के अतिरिक्त उन स्त्रीत्व के गुणों को भी श्रेयस्कर समझती थी जिन से इस दुनिया की कुरुपता को ढका जा सके उनका मानना था कि युगों से नारी का कार्य क्षेत्र घर की चारदीवारी तक सीमित रहा है परन्तु आधुनिक काल में उनके कर्त्तव्यो का विस्तार हुआ है.
पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार (यामा के लिए/1982) भारत-भारती (1943) पद्म विभूषण (1988) कृतियाँ काव्य नीहार (1930) रश्मि (1932) नीरजा (1934) सांध्यगीत (1936) दीपशिखा (1942) यामा सप्तपर्णा गद्य अतीत के चलचित्र स्मृति की रेखाएँ पथ के साथी मेरा परिवार विविध संकलन
स्मारिका स्मृति चित्र संभाषण संचयन दृष्टिबोध पुनर्मुद्रित संकलन यामा (1940) दीपगीत (1983) नीलाम्बरा (1983) आत्मिका (1983) निबंध
शृंखला की कड़ियाँ विवेचनात्मक गद्य साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध ललित निबंध क्षणदा