भौगोलिक दृष्टि से हमारी पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करके जब अपने उसी स्थान पर आ जाती है, तब एक वर्ष का समय पूरा होता है। इस परिक्रमा में लगभग 365 दिन लग जाते हैं। इसी परिक्रमा से हिन्दू धर्म में महीने बनाये गये जो आमतौर पर 30 दिन के होते हैं। पंचांग गणना के अनुसार एक सौर वर्ष में 365 दिन, 15 घटी, 31 पल व 30 विपल होते हैं जबकि चन्द्र वर्ष में 354 दिन, 22 घटी, 1 पल व 23 विपल होते हैं। सूर्य व चन्द्र दोनों वर्षों में 10 दिन, 53 घटी, 30 पल एवं 7 विपल का अंतर प्रत्येक वर्ष में रहता है। इसी अंतर को समायोजित करने हेतु अधिक मास की व्यवस्था होती है।
अधिक मास प्रत्येक तीसरे वर्ष होता है। अधिक मास फाल्गुन से कार्तिक मास के मध्य होता है। जिस वर्ष अधिक मास होता है उस वर्ष में 12 के स्थान पर 13 महीने होते हैं। अधिक मास के माह का निर्णय सूर्य संक्रान्ति के आधार पर किया जाता है। जिस माह सूर्य संक्रान्ति नहीं होती वह मास अधिक मास कहलाता है। इस बार ज्येष्ठ महीने में मलमास लगा है और इसकी बड़ी महिमा बतायी गयी है। विभिन्न प्रदेशों में इस महीने मेले लगते हैं। उत्तर प्रदेश के व्रज क्षेत्र में गोवर्द्धन की परिक्रमा की जाती है तो बिहार के नालंदा में एक महीने तक मलमास मेला होता है। नालंदा के राजगीर में लगने वाले मेले में नेपाल और श्रीलंका आदि से श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं जबकि मथुरा के गोवर्द्धन पर्वत की परिक्रमा में देश के हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। मथुरा भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है इसलिए वहां विदेशों से भी पर्यटक आते रहते हैं और मलमास में गोवर्द्धन परिक्रमा में भी प्रसन्नतापूर्वक शामिल होते हैं।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मलमास के महीने में मांगलिक कार्यों का आयोजन निषेध माना जाता है वहीं कान्हा की ब्रजभूमि में वास कर गोवर्धन की परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह महीना मनोरथ पूर्ति का कारक माना जाता है। मथुरा में 16 मई से शुरू हो हुए अधिक मास अर्थात मलमास के लिए तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। इस माह में ब्रजभूमि में लाखों तीर्थयात्रियों के आने की संभावना है। द्वारकाधीश मंदिर के ज्योतिषाचार्य अजय कुमार तैलंग के अनुसार बल्लभकुल सम्प्रदाय के मंदिरों में मलमास में वर्ष भर के त्योहार मनोरथ के रूप में मनाए जाते हैं, इस माह में मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं।
पुरूषोत्तम मास के बारे में ब्रज के मशहूर भागवताचार्य विभू महराज ने बताया कि जिस माह में सूर्य की संक्रांति नही होती उसे मलमास या अधिक मास अथवा पुरूषोत्तम मास कहते हैं। इसमास में शुभ कार्य करने पर निषेध है। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गिरिराज गोवर्धन की पूजा की थी और द्वापर में गोवर्धन पूजा के समय एक स्वरूप से गिरिराज गोवर्धन में प्रवेश कर गए थे इसके कारण गोवर्धन को साक्षात श्रीकृष्ण भी माना जाता है। इसकी परिक्रमा करने की होड़ लग जाती है। वैसे भी पुरूषोत्तम मास के स्वामी स्वयं पुरूषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण है।
अधिक मास के संबंध में शास्त्रों का जिक्र करते हुए विभू महराज ने बताया कि अपनी उपेक्षा से दुःखी मलमास जब भगवान विष्णु के पास पहुंचा तो वे उसे भगवान श्रीकृष्ण के पास ले गए और उनसे उसे स्वीकार करने का अनुरोध किया। भगवान श्रीकृष्ण ने उसे स्वीकार करते हुए कहा कि उनके सभी गुण, कीर्ति, अनुभव, छहों ऐश्वर्य, पराक्रम एवं भक्तेां को वरदान देने की शक्ति इस मास में भी आ जाएगी और यह पुरूषोत्तम मास के नाम से मशहूर होगा। ठाकुर ने कहा कि जो भी भक्तिपूर्वक इस मास में पूजन-अर्चन करेगा वह सम्पत्ति, पुत्र, पौत्र आदि का सुख भोगता हुआ गोलोक धाम को प्राप्त करेगा।
उन्होंने बताया कि मलमास में गोवर्धन की परिक्रमा करने में सबसे अधिक संख्या ठढ़ेसुरी परिक्रमा करने वालों यानी पैदल परिक्रमा करने वालों की होती है जो पतित पावनी मानसी गंगा के पावन जल से स्नान कर गिरि गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं अथवा परिक्रमा पूरी करने के बाद मानसी गंगा में स्नान करते हैं। इसके अलावा इस मास में दण्डौती, लोटन, दूध की धार, पारिवारिक एवं सामूहिक दण्डौती परिक्रमा भी की जाती है।
यह मेला एक महीने तक चलता है इसलिए इतने लम्बे समय तक मेले की व्यवस्था बनाए रखना प्रशासन के लिए भी चुनौती होता है। कुल मिलाकर एक माह तक गिरिराज तलहटी में परिक्रमार्थियों की अनवरत ऐसी माला बन जाती है जो भावात्मक एकता का नमूना बन जाती है। जिलाधिकारी सर्वज्ञराम मिश्र के अनुसार मेले की व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है। अतिक्रमण हटाकर जहां गोवर्धन, मथुरा एवं वृन्दावन के परिक्रमा मार्ग को चैड़ा किया गया है। इस माह में सबसे अधिक तीर्थयात्रियों के गोवर्धन की परिक्रमा करने की संभावना है इसलिए गोवर्धन में विशेष व्यवस्थाएं की जा रही हैं। गर्मी में रात में अधिक तीर्थयात्री परिक्रमा करते है। इसके लिए 23 किलोमीटर लम्बे परिक्रमा मार्ग पर अनवरत दिन जैसा प्रकाश करने की व्यवस्था की गई है।
प्रतिकूल मौसम की संभावना को ध्यान में रखकर विकल्प के रूप में पूरे परिक्रमा मार्ग पर दूधिया प्रकाश बनाए रखने के लिए सोलर लाइट जलने की व्यवस्था की गई हैं। पूरे परिक्रमा मार्ग पर पेयजल की समुचित व्यवस्था की गई है। परिक्रमा मार्ग पर जगह-जगह चिकित्सा शिविर भी लगाए जा रहे हैं। उन्होने बताया कि परिक्रमार्थी गिरिराज जी का अभिषेक शुद्ध दूध से कर सकें इसके लिए गोवर्धन के दानघाटी मंदिर, मुकुट मुखारबिन्द मंदिर मानसी गंगा, मुखारबिन्द मंदिर जतीपुरा पर शुद्ध दूध की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है। शुद्ध खाद्य पदार्थ की बिक्री को सुनिश्चित करने के लिए खाद्य विभाग से सक्रिय रहने को कहा गया है। परिक्रमा मार्ग पर तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिस बल लगाया जा रहा है।धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से परिक्रमा मार्ग पर शीतल पेयजल की व्यवस्था की गई है। प्रारंभ में विभिन्न मार्गों से गोवर्धन पहुंचने के लिए 50 बसें चलाई जाएंगी । बाद में तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए इन्हे बढ़ाया जाएगा। उन्होंने बताया कि वृन्दावन और मथुरा की परिक्रमा के मार्ग को भी ठीक कराया जा रहा है क्योंकि बहुत से लोग इसमें भी परिक्रमा करते हैं।इसी प्रकार राजगीर में एक महीने तक चलने वाले मलमास मेले का हिन्दुओं में बहुत महत्व माना जाता है। यहां पर देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं और भागवद् भक्ति में समय व्यतीत करते हैं। रात्रि में जागरण होता है और भजन कीर्तन से श्रद्धालु भक्ति भावना व्यक्त करते हैं। हालांकि राजगीर मेले में भक्ति भावना के नाम पर अश्लीलता बढ़ने लगी थी, इस पर प्रशासन ने सख्ती से रोक लगा दी है। यहां पर श्रद्धालु 22 कुण्डों के 52 धाराओं में शामिल शीतल तथा ऊष्ण जलधाराओं मंे स्नान करते हैं। यहां की गर्म जल धाराओं मंे ब्रह्म कुंड, सप्तधारा मुख्य हैं। इसी प्रकार शीतल जल धाराओं में सरस्वती व वैतरणी नदी के अलावा दुखहरणी घाट, शालिग्राम व भरत कूप आदि भी मौजूद हैं जिनके रखरखाव की जरूरत महसूस की जाती है। पौराणिक शीतल जल कुंडों का इतिहास ही ज्यादा रह गया है। एक समय ऐसा था जब मलमास मेले में तीर्थ यात्रियों का यहां जमघट लग जाता था। पिछले कुछ वर्षों में मलमास मेले को मनोरंजक बनाने का प्रयास ज्यादा किया गया है।इन सबके बावजूद मलमास अर्थात् पुरुषोत्तम मास को हिन्दू धर्म के अनुयायी श्रद्धापूर्वक मनाते हैं और घर पर रामायण पाठ, सत्यनारायण कथा और हवन-पूजन करते हैं। सामाजिक शुभ कार्य इस महीने नहीं किये जाते। (हिफी)
