हमारे पर्यावरण को प्लास्टिक ने नुकसान पहुंचाया है अथवा हमारी लापरवाही ने इस पर भी गंभीरता से विचार करनाहोगा। प्लास्टिक बैग में कोई सामान हम लाते हैं और फिर उसे सड़क पर फेंक देते हैं। उस प्लास्टिक को जानवर खाकर बीमार पड़ जाते हैं। भारत में हर दिन लगभग 15,000 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। दुर्भाग्य की बात यह है कि इसमें से ज्यादातर कचरा गड्ढों और नालियों में डाल दिया जाता है जिससे उचित रीसाइक्लिंग सुविधा के अभाव में नहर और नदियों का बहाव अवरुद्ध होता है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए कई राज्यों ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया है। महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली के बाद तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश भी कुछ प्रकार के प्लास्टिक को प्रतिबंधित कर इस सूची में शामिल हो गए हैं।
जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, हरियाणा और राजस्थान समेत कई राज्य विभिन्न तरह के प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध की घोषणा कर चुके हैं। तमिलनाडु में सभी तरह के नॉन-डिग्रेडेबल प्लास्टिक, मुख्य रूप से प्लास्टिक प्लेट, शीट, चाय के कप, पानी की बोतलों, शैसे, तरल पदार्थ पीने के प्लास्टिक पाइप, बैग जैसे उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया गया है। सवाल उठता है कि इसका असर प्लास्टिक निर्माताओं, इस्तेमाल करने वालों, और पर्यावरण पर किस हद तक दिखेगा।
प्लास्टिक से पर्यावरण को नुकसान हैं लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि अभी भी प्लास्टिक का बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं हो रहा है क्योंकि इसके पुनर्चक्रण और पुनः इस्तेमाल के प्रयासों का अभाव है। भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक खपत 11 किलो पर है जो 28 किलो के वैश्विक औसत से काफी कम है, लेकिन इसका सिर्फ 60 प्रतिशत ही रीसाइकल किया जाता है। दिल्ली के अनुसंधान संगठन द एनर्जी ऐंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट का कहना है कि चिंता प्लास्टिक की मात्रा को लेकर नहीं है क्योंकि यह अभी भी कुल ठोस प्लास्टिक का महज 8 प्रतिशत है, पर हर दिन पैदा होने वाले लगभग 15,342 टन प्लास्टिक से निपटने के लिए संगठित तंत्र का अभाव है। प्रतिबंध को पूरी तरह लागू करना मुश्किल भी है। केरल सरकार ने हाल में उच्च न्यायालय को बताया कि प्लास्टिक बैग के विकल्प मुहैया कराए बगैर इन्हें प्रतिबंधित करना व्यावहारिक नहीं हो सकता। महाराष्ट्र में जुलाई के पहले सप्ताह में यह प्रतिबंध लागू हुआ है और वहां इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बाद रिटेलरों और थोक विक्रेताओं को इस प्रतिबंध से अलग कर दिया गया। हालांकि इसके विकल्प प्लास्टिक की तुलना में कम पर्यावरण अनुकूल हैं। उदाहरण के लिए, कांच के इस्तेमाल में तेज वृद्घि से नदियों से रेत खनन के लिए बढ़ती जरूरत में कमी आएगी। दूसरी तरफ, ज्यादा तादाद में कागज के बैग इस्तेमाल होने से पहले से ही घटते जा रहे वनों पर दबाव बढ़ेगा। वित्तीय लागत भी बढ़ जाएगी।
फिक्की की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग 1,000 अरब रुपये का है और अगले 10 वर्षों में इसके 10 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढने का अनुमान है। लेकिन प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध इस वृद्धि को प्रभावित कर सकता है और इससे लगभग 20 लाख रोजगार परोक्ष रूप से प्रभावित होंगे। स्ट्रेटेजी (पीडब्ल्यूसी नेटवर्क की सदस्य) और फिक्की की रिपोर्ट में कहा गया है कि समस्या सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। इस प्रतिबंध का छोटे रिटेलरों और किराना दुकान मालिकों (जो कम कीमत के एफएमसीजी उत्पाद शैसे और प्लास्टिक पैकेजिंग के साथ बेचते हैं), कचरा बीनने वालों (लगभग 30 प्रतिशत लोग प्लास्टिक बोतलों की बिक्री पर निर्भर) और कृषि क्षेत्र (चूंकि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में तेजी की वजह से कृषि उपज के लिए मांग में कमी आई है) पर भी नकारात्मक असर देखा जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है, कम कीमत वाले उत्पाद बाजार से गायब हो सकते हैं, श्रेणियों और विकल्पों के आधार पर उपभोक्ता पर खर्च तीन गुना तक बढ़ जाएगा और गैर-पैक्ड भोजन की वजह से स्वच्छता तथा खाद्य सुरक्षा को लेकर समस्या पैदा होगी। अमेरिका में नेशनल सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस द्वारा कराए गए अध्ययन से पता चलता है कि प्लास्टिक पर प्रतिबंध वाले इलाकों में खुदरा बिक्री पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है क्योंकि इससे दुकानदारों को उन इलाकों में अपना व्यवसाय ले जाने की प्रेरणा मिली है जहां प्रतिबंध नहीं है।
रिपोर्ट में सिएटल के प्लास्टिक बैग प्रतिबंध का अध्ययन किया गया और कहा गया कि इससे स्टोर मालिकों को वैकल्पिक बैगों पर 40-200 प्रतिशत ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है जिससे उनका मुनाफा प्रभावित हो रहा है। ऐसे में इसका समाधान प्लास्टिक का पुनः इस्तेमाल करना है। प्लास्टिक को जिन क्षेत्रों पर फेंक दिया जाता है उनमें भवनों के पास से गुजरने वाली सड़कें मुख्य रूप से शामिल हैं। मदुरै के त्यागराजा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के 73 वर्षीय प्रोफेसर राजागोपालन वासुदेवन ने प्लास्टिक कचरे से सड़कें बनाने का देसी तरीका ढूंढ़ निकाला है। उन्हें 2018 में पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका है। अब तक 20,000 किलोमीटर की सड़क बनाने के लिए उनकी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। कुछ प्लास्टिक का
ईंधन में बदला जा रहा है। आईआईटी-मद्रास के शोधकर्ताओं की एक टीम ने नॉन-रीसाइकलेबल प्लास्टिक को ईंधन में तब्दील करने के लिए सोलर-संचालित सिस्टम विकसित किया है। कई बड़ी एफएमसीजी कंपनियों ने भी सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है। उन्होंने अपने उत्पादों के लिए रीसाइकिल किए जाने योग्य प्लास्टिक बैगों पर निर्भरता घटाने के प्रयास शुरू किए हैं। उदाहरण के लिए, पेप्सिको पहली बार अपने स्नैक्स, लेज और कुरकुरे जैसे लोकप्रिय ब्रांडों के लिए इस साल प्रायोगिक तौर पर 100 प्रतिशत कम्पोस्टेबल, प्लांट-आधारित पैकेजिंग की योजना बना रही है। भारत इस समाधान का प्रयोग करने वाले पहले देशों में शुमार होगा। यह समाधान जैव-आधारित और 100 प्रतिशत कम्पोस्टेबल है। आईटीसी में 99 प्रतिशत से अधिक ठोस कचरा पुनर्चक्रण योग्य होता है।आईटीसी अगले एक दशक के दौरान अपने 100 प्रतिशत उत्पाद पैकेजिंग को पुनः इस्तेमाल योग्य, रीसाइकल योग्य या कम्पोस्टेबल बनाने की योजना तैयार कर रही है। उसके सामने यही बेहतर विकल्प है। (हिफी)
