प्रथम भारतीय महिला कुलपति (Vice Chancellor) हंसा मेहता ( 3 जुलाई, 1897-4 अप्रॅल, 1995) शिक्षा-प्रशासन के क्षेत्र में अपनी अमूल्य सेवाएँ देनेवाली हंसा मेहता ने छात्रावस्था में ही अपनी प्रतिभा का परिचय देना प्रारंभ कर दिया था। मैट्रिक परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर उन्होंने ‘घाट फील्ड प्राइज’ जीता। हंसा की शिक्षा आरम्भ में बड़ौदा में हुई। 1919 में वे पत्रकारिता और समाजशास्त्र की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड चले गईं। वहाँ उनका परिचय सरोजनी नायडू और राजकुमारी अमृत कौर से हुआ। इसी परिचय का प्रभाव था कि आगे चलकर हंसा मेहता ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया।हंसा मेहता ने जेनेवा के ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन’ में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1931 में वे ‘मुम्बई लेजिस्लेटिव कौंसिल’ की सदस्य चुनी गईं। वे देश की संविधान परिषद की भी सदस्य थीं। 1941 से 1958 तक ‘बड़ौदा विश्वविद्यालय’ की वाइस चांसलर के रूप में उन्होंने शिक्षा जगत में भी अपनी छाप छोड़ी.हंसा मेहता बड़ोदा के दीवान मनुभाई मेहता की बेटी थीं। हंसा मेहता का विवाह गांधी जी के निकट सहयोगी जीवराज मेहता से हुआ था।जीवराज के बड़ोदा रहने के दौरान दोनों में इश्क हुआ। उस दौर में घर वालों की मर्जी के खिलाफ इंटर कास्ट मैरिज की। हंसा अपने सफल पति से अलग पहचान रखती थीं। वो संविधान सभा में शामिल 15 महिलाओं में से एक थीं। जीवराज मेहता नए राज्य गुजरात के पहले मुख्यमंत्री बने .लेकिन डॉ. जीवराज मेहता के लिए यह कांटो का ताज था। क्योंकि उन्हें मोरारजी की इच्छा के विपरीत जा कर मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई थी, इसलिए अड़ियल रवैय्ये वाले मोरारजी ही उनके सबसे बड़े सियासी प्रतिद्वंदी बन कर उभरे। हंसा ने गांधी जी के साथ आंदोलन में भाग लिया वहीं साइमन कमीशन का जमकर बहिष्कार भी किया। हंसा मेहता ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में वस्त्रों और शराब की दुकानों की बन्द करने हेतु धरना देने में महिलाओं का नेतृत्व किया। देश की आजादी के लिए हंसा न दो जेल की भी यात्रा की। हंसा मेहता ने हैदराबाद में आयोजित ऑल इंडिया वुमेन कांफ्रेस के अपने प्रेसिडेंशियल एड्रेस में महिला के अधिकारों की बात की।उन्होंने देश के संविधान के निर्माण में अहम योगदान दिया है। महिला अधिकारों की बात उन्होंने संविधान के निर्माण में कही जिसे प्रमुखता से सुना गया और संविधान में फेरबदल भी किया गया। उन्होंने बच्चों के लिए गुजराती में कई किताबें लिखीं वहीं इंगलिश में गुलिवर ट्रैवल्स भी लिखी है। 1959 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।एजेन्सी।