लोकसभा में उठी दादा साहब को भारत रत्न देने की माँग
भारतीय फिल्म जगत के भीष्म पितामह के. धुंडिराज गोविन्द फाल्के उर्फ दादासाहब फाल्के को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने की माँग बुधवार को लोकसभा में की गई। शिवसेना के विनायक राउत ने शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि दादासाहब फाल्के ने 105 साल पहले ‘राजा हरिश्चंद्र’ नामक फिल्म बनाकर भारत में फिल्म प्रोडक्शन की नींव रखी थी। आज फिल्म प्रोडक्शन के जरिये हर साल करोड़ों रुपये की कमाई हो रही है और हजारों-लाखों व्यक्तियों को रोजी-रोटी मिल रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय फिल्म जगत में दादासाहब के योगदान को नकारा नहीं जा सकता और सरकार को उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित करना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव का हुआ उद्घाटन
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के.एन त्रिपाठी ने 18 वें अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव का उद्घाटन किया। इस महोत्सव में 17 देशों की 36 फिल्में प्रर्दिशत की जाएंगी। राज्यपाल ने प्रदेश के प्रत्येक सिनेमाघर में हर महीने एक बाल फिल्म दिखाने को भी कहा। राज्यपाल ने सरकारी थियेटर नंदन के परिसर में कहा, मेरी इच्छा है कि राज्य के हर सिनेमाघर में हर महीने कम से कम एक बाल फिल्म दिखाई जाए। यह जरूरी है क्योंकि हमे बच्चों के मनोरंजन के बारे में भी सोचना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए पंचतंत्र, जातक कथाएं और पुराण से प्रेरित फिल्में भी बनाई जानी चाहिए। देश का सबसे पुराना सिनेमा क्लब सिने सेंट्रल, यूनिसेफ के साथ मिलकर इस महोत्सव का आयोजन कर रहा है। अमेरिकी फिल्म मोआना महोत्सव की उद्घाटन फिल्म है। सिने सेंट्रल के प्रवक्ता ने बताया कि नंदन में नौ अगस्त से 12 अगस्त तक फिल्में प्रर्दिशत होंगी। इसके बाद फिल्म महोत्सव को प्रदेश भर में ले जाया जाएगा और 30 सितंबर तक अलग-अलग जिला कस्बों में फिल्मों का प्रदर्शन होगा।
फिल्म प्यासा का सॉन्ग जाने वो कैसे लोग थे… राष्ट्रगान से प्रेरित
फिल्म निर्देशक गुरू दत्त की 1957 की उत्कृष्ट फिल्म ‘‘प्यासा’’ का गाना ‘ जाने वो कैसे लोग थे’, राष्ट्रगान की दूसरी पंक्ति से प्रेरित था। संगीतकार एस. डी. बर्मन पर लिखी एक किताब में यह बात कही गई है। फिल्म प्यासा को हिंदी सिनेमा का एक कीघ्तमान माना जाता है। फिर चाहे बात इसकी कहानी की हो जो खारिज किए गए लेकिन प्रतिभाशाली कवि की दास्तां कहती है या फिर इसके संगीत की हो जो गीतकार साहिर लुधियानवी और बर्मन दोनों के सर्वश्रेष्ठ काम को प्रस्तुत करती है। पुस्तक ‘एस. डी बर्मन द प्रिंस- म्यूजीशियन’ में लेखक अनिरुद्ध भट्टाचार्य और बालाजी विट्टल ने लिखा है, राग बिलावल में संगीतबद्ध जाने वो कैसे’’ किसी रुलाने वाले गाने से इतर एक त्रासद गीत के महाकाव्य जैसा है। हिंदी सिनेमा के संगीत जगत में इस गीत का प्रभाव न सिर्फ इसकी गहराई और मार्मिकता के कारण है बल्कि इसके सुरीलेपन की वजह से भी है।’’ बर्मन ने इस गाने के लिए पियानो की बेहद बारीक धुन दी थी जो बाद में गुरू दत्त की फिल्मों की पहचान बन गई थीं।
किताब में बताया गया, गीतकार पुलक बंदोपाध्याय के साथ बातचीत के दौरान बर्मन ने बताया था कि ‘हमने तो जब खुशिया मांगी’ पंक्ति राष्ट्रगान की दूसरी पंक्ति -पंजाब सिंधु गुजरात मराठा द्रविड़ उत्कल बंग’ से प्रेरित थी।’’ हालांकि यह समानता इतनी बारीक है कि बिना बताए इसका पता लगाना बेहद मुश्किल है। यह पुस्तक ट्रैंकबार प्रकाशक ने प्रकाशित की है। एजेंसी