नरेश दीक्षित संपादक समर विचार भारतीय संविधान में 1950 में कह दिया गया था कि इस देश का हर व्यक्ति कानून की नजर में समान है, लेकिन यह इबारत सिफ॔ संविधान की किताबों में ही सिमट कर रह गई है और देश को जब इसकी जरूरत होती है अपने हिसाब से व्याख्या कर लेता है । देश के संविधान निर्माताओं ने देश के आम नागरिको के मौलिक अधिकार बहुत से प्रदान किए है क्या सही मानो में उनका अनुपालन देश की सरकारें करती है और यदि नही करती है तो क्या देश की हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इनके उल्लंघनों पर संज्ञान लेती है?
भारतीय डंड संहिता की धारा 377 का वह हिस्सा समानता की भावना को समाप्त कर देता है जिसमें समलैंगिक यौन संबंध को दंडनीय अपराध घोषित किया गया था । इसकी वजह से समलैंगिक रूझान वाले पुरुष व महिलाएं एक एनजीओ के माध्यम से वष॔ 2001 में दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल याचिका से हुई जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने 2009 के फैसले में समलैंगिक वैधता पर मुहर लगा दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में फैसले को पलट दिया । क्या समाज में बदलाव समलैंगिकता से ही आयेगा ? सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर को चीफ जस्टिस श्री दीपक कुमार मिश्रा की अध्यक्षता गठित 5 न्याय धीशों की बेंच ने अपने ही फैसले को पलटते हुए ऐतिहासिक फैसला समलैंगिकता के पक्ष में सुना दिया । चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि ‘सामाजिक नैतिकता की वेदी पर नैतिकता की बलि नही चढ़ाई जा सकती है’ । लेकिन क्या भारतीय समाज इस फैसले को स्वीकार करेगा? इस फैसले का स्वागत ज्यादातर वही कर रहे है जहां समलैंगिकता प्रचलित थी । इस फैसले पर ग्रामीण एवं छोटे शहरो पर कोई खुशी जाहिर नही कर रहा है सिर्फ देश के कुछ कार्पोरेट शहरो में चन्द लोग खुशी मना रहे है ।
विश्व के 72 देशो में समलैगिकता को अपराध माना जाता है तथा कई देशो में इस आप्रकृतिक सम्बन्ध के दोषी को मौत के घाट उतार दिया जाता है । विश्व के तमाम देशों में प्रचलित ऐसे रिवाज को जरूरी नही कि देश भी स्वीकार कर लें । क्या समलैंगिकता से ही देश का उत्थान हो सकता है?
2017 में जारी आई एल जी ए ( इंटरनेशनल लेस्बियन टांस एंड इंटर सेक्स एसोसिएशन ) की रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया के 72 देशो में समलैंगिक संबध अभी भी अपराध की श्रेणी में है , इनमें 45 देशों में महिलाओं के बीच के यौन संबंधो को गैर कानूनी करार दिया गया है । समलैंगिकता को दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका, मध्य पूर्व व दक्षिणी एशिया के देशो में सबसे कठोर दृष्टि कोण रखता है । जबकि पश्चिमी यूरोप और पश्चिमी गोलार्ध के देश इन सम्बन्धो को सही मानता है । समान लिंग सम्बन्ध को अभी द॔जनो देशो में प्रकृति के खिलाफ माना जाता है । और वहाँ कानून के तहत सजा हो सकती है । सूडान, ईरान, सऊदी अरब, यमन , सोमालिया, नाइजीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कतर में भी मौत की सजा का प्राविधान है । दुनिया के लगभग 13 देशो में गे सेक्स को लेकर मौत की सजा होती है इंडोनेशियाई सहित कुछ देशों में ऐसे सेक्स के खिलाफ कोड़े मारने की सजा दी जाती है । वही कुछ देशों में भी इसे अपराध की श्रेणी में रखा जाता है और जेल की सजा दी जाती है ।
बेल्जियम, कनाडा, स्पेन, नार्वे, स्वीडन, पुर्तगाल, अर्जेंटीना, फ्रांस, ब्राजील, इंग्लैंड, जर्मनी इत्यादि देशो में समलैंगिक शादियों की मान्यता दी जा चुकी है । वष॔ 2015 में अमरीकी सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को वैध करार दिया था ।लेकिन 57 % अमेरीकी इसका विरोध करते थे और जब 2017 में रिसर्च हुआ तो 62%अमेरिकी इसका समर्थन करते है । क्या भारतीय समाज उपरोक्त देशों की सहमति के आधार पर समलैंगिकता स्वीकार करेगा? / नरेश दीक्षित संपादक समर विचार
