अभी आपकी बीमारी का पुख्ता डायग्नोसिस हो भी नहीं पाया था, हम तैयारी कर रहे थे आपको दिल्ली लाने की व्यवस्था के संदर्भ में-सिर्फ एक दिन के लिए छोड़ा था कि सोमवार को वहां लखनऊ के डॉक्टर स्पष्ट कर दें तो आपके परिवार से दिल्ली लाने की व्यवस्था पर बात हो कि आप हमें छोड़कर चले गये. थोड़ी देर पहले ही डॉक्टर अनुपमा ने लिखा व्हाट्स ऐप पर आपकी जांच-रिपोर्ट देखकर कि आपको ब्लड कैंसर है, सेकंड ओपिनियन लेना चाहिए. राजेश भाई और हम अभी तो यही बात कर रहे थे कि आपके परिवार के लोगों से सम्पर्क कर दिल्ली लाने की व्यवस्था की जाए और आप चले गये. इस मकसद से राजेश जी ने फोन किया था लखनऊ और उन्हें सूचना मिली न होने की.
हिन्दी के कुछ कम चर्चित किन्तु वरिष्ठ कवि, पत्रकार, शब्दशिल्पी, अद्भुत क़िस्सागो और असंख्य यारों के यार मजीद अहमद साहब पिछले एक महीने से काफ़ी बीमार हैं। पिछले बीस-पच्चीस दिनों के भीतर वे दूसरी बार लखनऊ के केजीएमयू में भर्ती किये गये हैं। दशकों से दिल्ली में रहते आ रहे मजीद साहब का समूचा जीवन साहित्य और साहित्यिक मित्रों के ही काम आता रहा है। रात हो या दिन, धूप हो या बरसात, मजीद साहब को बस याद करने की देर है। ख़बर मिलते ही मजीद साहब हाज़िर। मित्रों के काम आकर निहाल रहने वाले। दूसरों की ख़ुशी में ख़ुश रहने वाले और दुख में दुखी।
जनचेतना और महीप सिंह के साथ साहित्यिक पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले मजीद साहब ने दिनमान सहित हिन्दी की तमाम शीर्ष पत्रिकाओं और प्रकाशनों के साथ काम किया। हिन्दी साहित्य के अन्त:पुर की जितनी कहानियां उनके पास हैं, शायद ही किसी अन्य के पास हों। वे एन्साइक्लोपीडिया हैं चलते-फिरते। एक बार शुरु हो गये तो हिन्दी के वरिष्ठ-युवा, पुरुष-स्त्री, स्थापित-नवोदित किसी भी साहित्यकार की पूरी कुंडली खोल कर सामने रख देने वाले। दिल्ली और मंडी हाउस से अत्यंत लगाव रखने वाले मजीद साहब दो-तीन दिनों के लिये भी उससे दूर नहीं रह पाते। पर वे इस बार एक महीने से दिल्ली लौट नहीं पा रहे।
आज भी उनसे बात हुई। वे बेहद कमज़ोर हैं और दिल्ली में किराये के कमरे में पड़ी अपनी रचनाओं और क़िताबों की सुरक्षा को लेकर चिन्ता जता रहे थे। मैंने कहा कि वे सिर्फ़ सेहत पर ध्यान दें। डॉक्टर ने पहले उन्हें टायफाइड बताया था, पर वे ठीक नहीं हो पाये। लखनऊ के मित्र यदि उनकी ख़ैरियत पता कर सकें, एक बार मिल कर वास्तविक स्थिति और इलाज़ के बारे में जानकारी दे सकें तो ज़रूर प्रयास करें। आपके जाने से शायद वे कुछ अच्छा महसूस करेंगे। उम्मीद करता हूं वे जल्दी स्वस्थ होकर दिल्ली लौट आयें। उनके बिना दिल्ली उदास लगती है और मंडी हाउस बेजान।
यह ठीक नहीं है मजीद साहब-यह तो आपके स्वभाव के अनुरूप हमारे साथ आपका व्यवहार है- कई बार हम आपको भला-बुरा कहते थे, तो कई बार आपका मजाक उड़ाते थे कि दुनिया के बारे में चिंता करने से ज्यादा जरूरी है खुद के बारे में सोचना भी. आप सबके लिए सहज उपलब्ध थे-रचनाएं सुनने, ठीक करने, प्रकाशन का सुझाव देने के लिए और खुद के लिए एकदम निर्मम! दिल्ली में अकेले रहते हुए न खाने की सुध, न पीने की- न जीने की-सिर्फ दूसरों की रचनात्मकता की फ़िक्र करना. यह सब हम कहते और आप मंद-मंद मुसकुराते-आत्मस्थ हो जाते. और आज भी हम आपकी चिंता करते रहे, आप आत्मस्थ हो गये. मौका ही नहीं दिया कि कुछ किया जाये आपके लिए. आप तो बस दूसरों के लिए बने थे-अपने से इतर की रचनात्मकता की फ़िक्र करने के लिए!
कई बार आपकी छोटी-छोटी पर्दादारियां, कहीं होने पर पर्देदारी, किसी मसरूफियत की पर्देदारी एक हास्य पैदा करती थीं, क्योंकि हम जानते थे आपकी मसरूफियत का मकसद. लेकिन इस बार अपनी बीमारी को खुद जीना, बीमारी पर पर्देदारी, जाने की तैयारी पर पर्देदारी हमपर भारी पड़ गयी है. यह ठीक नहीं है, यह छल है. आप तो साहित्य के अन्तःपुर की कथायें लिखने वाले थे और खुद ही रुख्सत हो लिए दीवान-ए-आम और ख़ास से!
अलविदा मजीद साहब! आपकी उपस्थिति बनी रहेगी हमारे बीच
Sanjeev Chandan जी और Rajesh Chandra जी फेस बुक वॉल से वाया नाइश हसन जी