नरेश दीक्षित संपादक समर विचार-
मोदी सरकार ने देश की सम्प्रुभता को अमेरिका के हाथों गिरवी रखने का पाप किया है । यह विशलेषण आपको किसी भी अखबार में पढने या टीवी चैनलों में सुनने को नहीं मिलेगा । पिछले माह 6 सितम्बर को दिल्ली में भारत और अमेरिका के बीच टू प्लस टू की बैठक हुई थी । बैठक में भारत की तरफ से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निम॔ला सीतारमण ने भाग लिया था । अमेरिका के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री भी इस बैठक में भाग लेने के लिए भारत आए थे। बैठक में भारत का जोर मुख्यतः दो बातों पर था । पहला यह कि अमेरिका की नाराजगी को देखते हुए भारत ईरान से तेल नहीं खरीदे तो कहा जाए? दूसरा यह कि अमेरिका की आपत्तियों के चलते रूस से मिसाइल क्यो न खरीदे?।
भारत अपनी जरूरत का एक चौथाई तेल ईरान से खरीदता है । लेकिन अमेरिका के दबाव में आकर भारत ईरान से तेल मंगाना लग भग बन्द कर चुका है । इसी तरह रूस से किया गया एस 400 मिसाइल प्रणाली का सौदा रद्द करने का दबाव डाल रहा था फिर भी भारत ने रूसी राष्ट्र पति के भारत आगमन पर एस 400 का सौदा कर लिया है । लेकिन इसका भविष्य अभी अंधेरे में है ।
बैठक में अमेरिका ने उक्त दोनों मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया । अमेरीकी प्रतिनिधि माइक पोमपिमो ने कहा कि भारत और अमेरिका की पहली टू प्लस टू व॔ता के दौरान बड़े और रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा होगी । उनहोंने कहा कि बैठक रूस से मिसाइल रक्षा प्रणाली और ईरान से पेट्रोलियम तेल खरीदने की भारत की योजना पर केंद्रित नहीं है । तो फिर चर्चा किस बात पर कि गईं? बैठक का नतीजा क्या निकला? यह भी समझ लीजिये ।
भारत अमेरीकी दबाव में आकर इस बैठक में ‘कम्युनिकेशन कपेटिबिलटी एण्ड सिक्योरिटी एग्रीमेंट’ (सुरक्षा सुसंगतता एवं रक्षा संधि) काॅमकासा पर हस्ताक्षर कर दिए हैं ।अब यह काॅमकासा समझोता क्या है यह भी जानना बेहद ज़रूरी है । किसी भी देश पर अपना समपूण॔ प्रभाव जमाने के लिए अमेरिका तीन रक्षा समझोते आवश्यक मानता है इसी में काॅमकासा ( COMCASA ) है जो इस बैठक में किया गया है । दो अन्य समझोते हैं लेमोआ यानी लाजिस्टिकस एक्सचेंज मेमोरंडम आफ एग्रीमेंट ( LEMOA ) और बेसिक एक्सचेंज एंड कोपरेशन एग्रीमेंट फार जिमोसपेटियल कोपरेशन ( BECA ) बेका । लेमोआ पर मोदी सरकार अमेरिका से अगस्त 2016 में समझोता कर चुके हैं । जिसके तहत दोनों देशों की सेनाएँ एक दुसरे के सैन्य अडडो का इस्तेमाल कर सकतीं हैं । तीसरा समझौता बेका पर व॔ता की सुरुवात हो चुकी है ।
लेमोआ समझोते के तहत अमेरिका जब चाहे तब भारत के अंदर अपनी फोजो को तैनात कर सकता है । भारत के परिप्रेक्ष्य में यह बहुत गलत समझोता हैं । अमेरीकी सशस्त्र बलों को भारतीय नौसैनिक बंदरगाहों तथा हवाई अड्डो का, आपने युद्ध पोतों, जंगी जहाजों की स॔विसिंग, तेल भराई तथा उनके रख रखाव के लिए इस्तेमाल की इजाजत देने का मतलब हमारे द्वारा अपनाए जा रहे स्वतंत्र रूख से किसी महाशक्ति से सैन्य गठजोड़ में शामिल न होने की भारत की नीति से पूरी तरह हट जाना है ।
लेकिन काॅमकासा समझोता तो और अधिक खतरनाक है । इसे पहले सिसमोआ के नाम से जाना जाता था । इस पर हस्ताक्षर करने के बाद अमेरिका अपनी कम्पनियों द्वारा सप्लाई किए गए हथियारों का समय-समय पर निरीक्षण करने का हक दार होगा । यानी जब वह चाहे मांग सकता है कि जिन हथियारों पर अमेरिकी संचार उपकरण लगें हैं वह उनकी जांच करेगा । यह समझोता दोनों देश के सैन्य बलों के संचार नेटवर्क को आपस में जोड़ देगा ।भारत की कोई भी तकनीक अब गुप्त नहीं रह पायेगी । मोदी इस देश को कहा ले जा रहे हैं यह विचारणीय प्रश्न है?
यूपीए सरकार जिसे मोदी गूँगी सरकार कह कर रात दिन कोसते हैं इन से लाख गुना बेहतर थी कयोंकि उक्त दोनों समझोतो को मानने का दबाव बनाया गया था । लेकिन मनमोहन सरकार ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए थे । तत्कालीन रक्षा मंत्री ने इस पर कड़ा रूख अपनाया था ।
इसे मोदी के अंधभक्त भारत की कूटनीति कहेंगे । लेकिन लेमोआ और काॅमकासा पर हस्ताक्षर भारत की कूटनीति विफलता है । कूटनीति का अथ॔ होता है सभी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाकर हर देश का अपने सामरिक हितों के पक्ष में इस्तेमाल करना । लेमोआ और काॅमकासा जैसे समझोते पर हस्ताक्षर करके अमेरिका जैसे किसी शक्तिशाली देश कि सेना को अपनी सरजमीं पर बुलाने को आत्म समर्पण करना बोलते हैं कूटनीति नहीं । अमेरिका ने जिन जिन देशों के साथ यह समझोते किए है यह तो वह व॔बाद हो गए हैं या सिफ॔ अमेरिका के गुलाम बन कर रह गए है अब क्या भारत भी उसी श्रेणी में शामिल होना चाहता है ?।