वर्षगांठ और वार्षिकोत्सव मनाने के पीछे एक उल्लास छिपा होता है। व्यक्ति से लेकर संस्थाएं तक वर्षगांठ और वार्षिकोत्सव मनाती हैं। जन्मदिन समारोह में तो जमकर खुशी होती है, गुब्बारे फोड़े जाते हैं और केक काटकर एक दूसरे को खिलाई जाती है। इसी तरह संस्थाओं के जन्मदिन को स्थापना दिवस अथवा वार्षिक समारोह के नाम से आयोजित किया जाता है। जन्मदिन जहां पारिवारिक और ईष्ट-मित्रों तक ही सीमित रहता है, वहीं संस्थाओं के वार्षिक समारोह में लब्धप्रतिष्ठ लोगों के साथ आम जनता को भी आमंत्रित करते हैं। जन्मदिन की तरह ही शादी की वर्षगांठ भी मनाते हैं। इन समारोहों में सिर्फ और सिर्फ खुशी होती है लेकिन हमारे देश के कुछ कथित विद्वानों ने ऐसी वर्षगांठें मनानी शुरू कर दी हैं जिनमें कटुता और उग्रता के सिवाय और कुछ नहीं होता। उदाहरण के लिए कथित बाबरी मस्जिद के विध्वंस की बरसी और अब 8 नवम्बर को मनायी जाने वाली नोटबंदी की वर्षगांठ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2016 में 8 नवम्बर की रात देशवासियों के नाम संबोधन में एक हजार और पांच सौ के नोट तत्काल प्रभाव से बंद कर दिये थे। इस समाचार ने देश ही नहीं दुनिया भर में तहलका मचा दिया था। यह छप्पन इंच के सीने का फैसला था। श्री मोदी भी जानते थे कि नोटबंदी से आम जनता को भी परेशानी हो सकती है। इसलिए तत्काल रूप से ऐसी व्यवस्था की गयी थी, ताकि किसी को अचानक परेशानी का सामना न करना पड़े। पेट्रोल पंपों, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, अस्पतालों और हवाई अड्डों पर एक हजार और पांच सौ के नोटों का प्रचलन कई दिनों तक चलता रहा। लोगों को पुराने नोट बदलने और बैंक में पुराने नोट जमा करने को कहा गया। इस नोट बंदी का मकसद था कि जो लोग बड़ी संख्या में एक हजार और पांच सौ (यही दो नोट सबसे बड़े थे) के नोट घरों में दबाकर रखे हैं, वे बाहर आयें। जमाखोरों का खुलासा हो सके। काला धन सामने लाने का यह साहस भरा कदम था। नोटबंदी की घोषणा पहले से कर दी जाती, तब तो काला धन रखने वाले उसे सफेद कर ही लेते। हालांकि कई लोग इसमें सफल भी हो गये और कई अपनी चालाकी में फंस भी गये। पेट्रोल पंपों के मालिकों ने तो बिना किसी प्रयास के अपना कालाधन सफेद कर लिया। इसी तरह प्रभावशाली लोगों ने दूसरों पर दबाव डालकर अपने करोड़ों रुपये बदलवा लिये। रात में ही कई लोगों ने अकूत सोना खरीद लिया लेकिन बाद में वे तो फंस ही गये, दुकानदार को भी मुसीबत में डाल दिया। नोटबंदी की दिक्कत महीनों आम जनता ने झेली लेकिन उसकी पीड़ा इस उम्मीद में जाहिर नहीं हो सकी कि कालेधन वाले तो पकड़े जाएंगे। देश की आम जनता का राष्ट्र के प्रति दायित्व इससे भी समझा जा सकता है। जनता चाहती है कि जो लोग कालाधन रखते हैं, उनका पर्दाफाश होना चाहिए क्योंकि ऐसे लोग देश के विकास में बाधक हैं।
उस समय नोटबंदी को लेकर विपक्षी दलों के कुछ नेता आंदोलन भी करना चाहते थे। इनमें सबसे आगे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी थीं। कांग्रेस जानबूझकर इस मामले में आगे नहीं आयी थी क्योंकि उसके नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर ही भाजपा ने श्री मोदी के नेतृत्व में सत्ता हथियाई। इसलिए कालेधन की लड़ाई की अगुवाई कांग्रेस करती तो दूसरे राजनीतिक दल पीछे हट जाते। सुश्री ममता बनर्जी पर भी शारदा चिटफंड घोटाले की छीेंटें पड़ी थीं लेकिन व्यक्तिगत रूप से उनकी सादगी और ईमानदारी पर कोई उंगली नहीं उठाता है। ममता बनर्जी ने पूरे देश में भ्रमण किया लेकिन कुछ राजनीतिक दलों के अलावा उनका साथ किसी ने नहीं दिया। जनता तो कतई नहीं खड़ी हुई। निराश होकर सुश्री ममता बनर्जी ने भी खामोशी अख्तियार कर ली लेकिन विपक्षी दलों को अब भी लगता है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान इस मुद्दे को भुनाया जा सकता है। इसलिए कुछ राजनीतिक दलों ने 8 नवम्बर को काला दिवस मनाने की घोषणा कर रखी है। वे नोटबंदी की वर्षगांठ पर आंसू गिराएंगे, ठीक उसी तरह जैसे कथित बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर कुछ लोग विलाप करते हैं।
केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली के अनुसार नोटबंदी एक सही कदम था, भले ही उसमें भरपूर जोखिम था और देश की अर्थव्यवस्था के लिए ऐसे जोखिम भरे कदम उठाना सभी के साहस की बात नहीं होती, ऐसा साहस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही उठा सकते हैं। श्री जेटली ने आंकड़े देकर यह भी बताया कि नोटबंदी के बाद आर्थिक विकास की दर बढ़ी है, रोजगार के अवसर बढ़े हैं और कालेधन का लगभग 99 फीसद हिस्सा बैंकों में आ गया है। श्री जेटली के अलावा कांग्रेस शासन के दौरान आधार कार्ड योजना के प्रमुख रहे नंदन नीलेकणि ने भी कहा था कि नोटबंदी से डिजिटल लेन देन बढ़ेगा और लम्बी अवधि में फायदे भी होंगे। उन्होंने कहा कि 1000 और 500 के नोट अचानक बंद होने से दिक्कत तो होनी ही थी लेकिन यह वित्तीय समावेशन की दृष्टि से बड़ा कदम हैं। इससे अर्थव्यवस्था में लोगों की भागीदारी बढ़ेगी लेन-देन के डिजिटल होने से अल्पकालिक मंदी के लिए फायदेमंद होगा और तकनीक को अपनाने से लम्बी अवधि के फायदे मिलेंगे। भुगतान का एक तरीका होने से देश को बड़े पैमाने पर फायदा होगा।
जाने-माने अर्थशास्त्री और नीति आयोग के अध्यक्ष रहे अरविंद पनगडिय़ा ने भी कहा था कि केन्द्र सरकार ने नोटबंदी के फैसले से देश के भीतर आर्थिक गतिविधियंा और आर्थिक विकास दर प्रभावित होंगी लेकिन यह सिस्टम नकदी की कमी के कारण हो रहा है, यह कमी तीन महीने तक बनी रह सकती है। पूर्व प्रधानमंत्री और देश-विदेश में प्रख्यात अर्थशास्त्री डा. मनमोहन सिंह ने कूटनीतिक शब्दों का सहारा लिया था और कहा कि मैं बड़े नोटों को रद्द किये जाने के उद्देश्यों से असहमत नहीं हूं लेकिन इसे ठीक तरीके से लागू नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दलील दे रहे हैं कि काले धन पर लगाम कसने, जाली नोटों के प्रसार को रोकने और चरमपंथी गतिविधियों को मिलने वाले पैसों को नियंत्रित करने का यह तरीका है। मैं इन उद्देश्यों से असहमत हूं लेकिन मैं इतना जरूर कहंूगा कि नोटबंदी की प्रक्रिया में कुप्रबंधन किया गया। नोबल पुरस्कार विजेता अमत्र्यसेन ने भी नोटबंदी के इरादे और उसे लागू करने के तरीके पर सवाल उठाया था उन्होंने यहां तक कहा था कि सत्तावादी मानसिकता की सरकार ही लोगों को इस तरह की तकलीफ दे सकती है।
अर्थशास्त्रियों के मिले जुले विचारों पर मंथन का यह समय जरूर होगा जब हम नोटबंदी की वर्षगांठ मना रहे होंगें इसे राजनीतिक चश्मे से देखने की बजाय देश की अर्थव्यवस्था के चश्मे से देखना पड़ेगा। (हिफी)
