मोदी सरकार की नीतियों से आर्थिक संकट की ओर बढ़ता भारत!————-
नरेश दीक्षित संपादक समर। विचार मोदी सरकार भले ही बड़े बड़े दावे करती रहे,मगर सरकारी स्रोतों से छनकर आ रहे आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं ।
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन जारी आंकड़े भारत में उत्पादन और रोजगार देने वाली आर्थिक गतिविधियों की भयावह तस्वीर पेश कर रही है । भारत से होने वाले निर्यात में भारी कमी आई है जो वित्तीय वर्ष 2016 की अंतिम चौथाई में 10,2 प्रतिशत थी वह 2017-18 में घट कर 2,2 प्रतिशत रह गई है । विगत कई वर्षो से पहली बार इतनी गिरावट दज॔ की गई है ।
घरेलू उद्योग और सेवा क्षेत्रों से संबंधित खरीद प्रबंधन सूचकांक ( PMI ) जैसे सूचकांक में भी गिरावट आ रही है ।वष॔ 2011 से 2014 तक देश की ग्रोथ रेट 6,8 प्रतिशत थी मोदी सरकार में भी 2015 से 18 तक ग्रोथ स्तर 6,9 है मतलब मोदी सरकार में भी वही विकास दर है जो मनमोहन की सरकार में थी वही अब है । लेकिन मोदी ढिंढोरा इतना पीट रहे हैं कि सत्तर साल में कुछ हुआ ही नहीं है ।
सरकारी आंकड़ों के जखमों पर मरहम-पट्टी लगाकर पेश करने के मकसद से वष॔ 2011-12 को आधार बनाकर आर्थिक आंकड़ों की नई श्रंखला की शुरुआत करने के बावजूद आर्थिक गतिविधियों में चौतरफा गिरावट आ रही है और यह किसी एक विशेष क्षेत्र तक सीमित नहीं है । अतः हम कह सकते हैं कि सरकार द्वारा आम तौर पर कांट-छांट कर पेश किये गये आंकड़ों के अनुसार भी आज भारत की अथ॔ व्यवस्था सबसे बुरे संकुचन का शिकार है । निश्चित रूप से अथ॔ व्यवस्था की राह में रूकावट का सबसे बड़ा कारण यह है कि 2014 में मोदी के सत्तारूढ़ होने के बाद भारत की जनता की क्रय शक्ति में अचानक कमी आई है । यदि दो वर्षो 2014 व 2016 का आकलन किया जाए तो दो वर्षो के दौरान समाज के अमीरों की सम्पदा में हिस्से दारी 47 प्रतिशत से बढ़ कर 59 प्रतिशत हो गई है, जबकि इन दो वर्षो में गरीबों की यानी कि नीचे की 70 प्रतिशत आबादी की राष्ट्र की सम्पदा में हिस्से दारी 9 प्रतिशत से कम होकर 7 प्रतिशत रह गई है ।
इस दौरान कारपोरेट टैक्स में तरह तरह की छूट देकर और दरबारी पूंजी पतियों की तिजोरी में राष्ट्रीय सम्पदा पहुँचाकर वित्तीय थैलीशाहों को अभूतपूर्व सब्सिडी दी गई है जबकि व्यापक जनता के हित में सामाजिक कार्यो के मद में भारी कटौती की जा रही है ।
वष॔ 2014 में भारतीय मुद्रा का मूल्य 61 रूपया प्रति डालर था आज 74 रूपया प्रति डालर हो गया है । नोटबंदी की घोषणा और तत्पश्चात राज्य विरोधी, जन विरोधी वस्तु एवं सेवा कर (जी एस टी) को थोप कर देश में आर्थिक गिरावट में लगातार वृद्धि हो रही है । मोदी सरकार एवं उनके वित्त मंत्री की आर्थिक नीतियों के कारण देश भयावह स्थिति में पहुंच गया है ।
