पुण्य तिथि पर विशेष- एजेंसी –फ्रंटियर गाँधी’-ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान 20वीं शताब्दी में पख़्तूनों के सबसे करिश्माई नेता थे, जो महात्मा गांधी के अनुयायी बन गए और उन्हें ‘सीमांत गांधी’ कहा जाने लगा. अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ाँ का जन्म 3 जून,1890 को सम्पन्न परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही अत्यधिक दृढ़ स्वभाव के व्यक्ति थे इसलिये अफ़ग़ानों ने उन्हें ‘बाचा ख़ान’ के रूप में पुकारना प्रारम्भ कर दिया।आपका सीमा प्रान्त के क़बीलों पर अत्यधिक प्रभाव था। गांधी जी के कट्टर अनुयायी होने के कारण ही उनकी ‘सीमांत गांधी’ की छवि बनी। विनम्र ग़फ़्फ़ार ने सदैव स्वयं को एक ‘स्वतंत्रता संघर्ष का सैनिक’ मात्र कहा, परन्तु उनके प्रसंशकों ने उन्हें ‘बादशाह ख़ान’ कह कर पुकारा। गांधी जी भी उन्हें ऐसे ही सम्बोधित करते थे। राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेकर उन्होंने कई बार जेलों में घोर यातनायें झेली । फिर भी वे अपनी मूल संस्कृति से विमुख नहीं हुए।खान अब्दुल गफ्फार खां ने साल 1929 में खुदाई खिदमतगार आंदोलन शुरू किया। आम लोगों की भाषा में वे सुर्ख पोश थे। खुदाई खिदमतागर, गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन से प्रेरित था। इस आंदोलन की सफलता से अंग्रेज शासक तिलमिला उठे और उन्होंने बाचा खान और उनके समर्थकों पर जमकर जुल्म ढाए।महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में शामिल होने वाले बाचा खान को 23 अप्रैल 1923 को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। खुदाई खिदमतगार के समर्थन में बड़ी संख्या में लोग पेशावर के किस्सा ख्वानी बाजार में इकट्ठा हो गए। अंग्रेजों ने इन निहत्थे लोगों पर मशीन गन से गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस नर संहार में 200-250 लोगों की शहादत हुई। चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में उस समय गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट की तो पल्टून भी वहां मौजूद थीं, लेकिन उन्होंने अहिंसक प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया। बाद में चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके सैनिकों को कोर्ट मार्शल की कार्रवाई झेलनी पड़ी और उनमें से कईयों को उम्र कैद की सजा हुई।खान अब्दुल गफ्फार खान देश के बंटवारे के बिल्कुल खिलाफ थे। उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलग पाकिस्तान की मांग का विरोध किया था और जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की मांग को स्वीकार कर लिया तो इस फ्रंटियर गांधी ने दुख में कहा था – ‘आपने तो हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया है।’ जून 1947 में खान साहब और उनका खुदाई खिदमतगार एक बन्नू रेजोल्यूशन लेकर आया, जिसमें मांग की गई कि पाकिस्तान के साथ मिलाए जाने की बजाय पश्तूनों के लिए अलग देश पश्तूनिस्तान बनाया जाए। हालांकि अंग्रेजों ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया।
पाकिस्तान में बड़े दुख झेले
देश के बंटवारे के बाद जब भारत और पाकिस्तान अलग-अलग हुए तो खान अब्दुल गफ्फार खान पाकिस्तान चले गए। लेकिन 1948 से 1956 के बीच पाकिस्तान सरकार ने उन्हें कई बार गिरफ्तार किया। साल 1956 में पाकिस्तान सरकार पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रोविंस को जोड़कर एक बड़ा राज्य बनाने का काम कर रही थी और खान साहब सरकार के इस कदम के खिलाफ खड़े हो गए। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 1960-70 के दशकों में उन्होंने ज्यादातर वक्त जेल या फिर निर्वासन में गुजारा। 1988 में जब उनका निधन हुआ उस समय भी वह पेशावर के हाउस अरेस्ट थे।ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को 1987 में भारत सरकार की ओर से भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1988 में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें पेशावर में उनके घर में नज़रबंद कर दिया गया। 20 जनवरी, 1988 को उनकी मृत्यु हो गयी और उनकी अंतिम इच्छानुसार उन्हें जलालाबाद अफ़ग़ानिस्तान में दफ़नाया गया। सोशल मिडिया से