स्मृति शेष
येल्लप्रगड सुब्बाराव ने कैंसर के इलाज के लिए मेथोट्रेक्सेट को विकसित किया जिससे कैंसर का इलाज किया जाता है। इसकी मदद से सुब्बाराव ने लाखों कैंसर पीड़ितों को पूरी तरह ठीक किया । उन्होंने डाईथिलकार्बामैजीन की भी खोज की जोकि हाथी पांव की बीमारी का इलाज करने के लिए एकमात्र अच्छी दवा है।
सुब्बाराव का जन्म 1895 को तमिलनाडु के परिवार में 12 जनवरी को हुआ था। उन्होंने मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। शिक्षा समाप्त करने के बाद उन्होंने आयुर्वेद के क्षेत्र में कई शोध किए। 1920 में उन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला। यहां से पीएचडी की डिग्री लेने का बाद उन्होंने यही से अपने करियर की शुरुआत की।अपने कैरियर का अधिकतर भाग इन्होने अमेरिका में बिताया था लेकिन इसके बावजूद भी ये वहाँ एक विदेशी ही बने रहे और ग्रीन कार्ड नहीं लिया, हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका के कुछ सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा अनुसंधानों का इन्होने नेतृत्व किया था। एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट (ए.टी.पी.) के अलगाव के बावजूद इन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक पद नहीं दिया गया द्वितीय विश्वयुद्ध के समय उन्होंने अमेरिका में हुए कई शोधों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।सुब्बाराव की देख रेख में कार्य करते हुए बेंजामिन डुग्गर ने दुनिया के पहले टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक औरोमाइसिन की 1945 में खोज की।सुब्बाराव की स्मृति दूसरों की उपलब्धियों और इनके अपने स्वयं के हितों को बढ़ावा देने में विफलता के कारण छिप गयी। एक पेटेंट वकील यह देख कर चकित रह गए थे की इन्होंने अपने कार्य से अपना नाम जोड़ने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया था जो की वैज्ञानिक दुनियाभर में नियमित रूप से करते हैं। इन्होंने कभी भी प्रेस को साक्षात्कार के लिए अनुमति नहीं दी और न ही वाहवाही बांटने के लिए अकादमियों का दौरा किया और न ही ये कभी व्याखान दौरे पर गए।
इनके सहयोगी, जॉर्ज हित्चिंग्स, जिन्हें 1988 में एलीयान गेरट्रुद के साथ चिकित्सा का साझा नोबेल पुरस्कार मिला था, का कहना था – “सुब्बाराव द्वारा अलग किये गए न्यूक्लेयोटाइडस कुछ साल बाद अन्य कर्मचारियों द्वारा फिर से खोजे जाने पड़े क्योंकि फिस्के की जाहिर तौर पर ईर्ष्या के कारण सुब्बाराव के योगदान को दिन की रोशनी नहीं देखने दी।” इनके सम्मान में अमेरिकी सायनामिड द्वारा एक फफूंद सुब्बरोमाइसिस स्प्लेनडेंस नामित किया गया था। 8 अगस्त 1948 में 53 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।एजेंसी।