जन्म दिवस 03 मार्च पर विशेष
ः दीवान सुशील पुरी।“काकोरी षड्यंत्र” में खत्री जी को 10 वर्ष की कठोर कारावास की सजा हुई थी। उन्हेँ पुणे से 18 अक्टूबर 1925 को गिरफ्तार करके लखनऊ लाया गया। कई सालों तक मुझे उनके साथ रहने का सौभाग्य मिला है। इसलिए यहां मैं उनके जीवन के बारे में जो लिख रहा हंू वे ंबातें उन्होंने ही मुझे बतायीं हैं। खत्री जी की प्रवृति ज्यादा पढ़ने-लिखने वालों में नहीं थी , शरारती बच्चों में इनका नाम अव्वल आता था। कई बार प्रधानाध्यापक ने खत्री जी को खूब समझाया लेकिन खत्री जी अपनी आदतों से मजबूर थे। मार-पीट , झगड़ा उनके बाएँ हाथ का खेल था। बिरले ही कोई मास्टर होंगे जिन्होंने खत्री जी को मारा न हो। फिर भी खत्री जी कक्षा में अक्सर अच्छे नंबरों से पास होते थे , इसलिए गुरुजन उन्हें प्यार भी करते थे। खत्री जी का जन्म 03 मार्च ,1902 को बड़े ही गरीब घर , महाराष्ट्र के जिला बुलढ़ाना बरार के एक चिखली गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवलाल चोपड़ा और मां का नाम कृष्णा बाई था । उनकी मां जंगलों में जाकर दिनभर ढाक के पत्ते तोड़कर एकत्र करती थी और अपने सिर पर ढो कर लाती थी और उन पत्तों के पत्तले व दोने बनाती थी और उसे बेच कर घर का निर्वाह करती थी। खत्री जी के से चैपाल में रोज अखबार पढ़ाया जाता था। उसकी महत्वपूर्ण खबरें लोकमान्य जी के जोशीले लेख हुआ करते थे।
उससे प्रभावित होकर खत्री जी ने अपना जीवन देश सेवा के लिए समर्पित करने का संकल्प ले लिया। खत्री जी की इन गतिविधियों से पढ़ाई में शिथिलता आ गई थी और घर में बिना बताये अकेले ही वहां से रवाना हो गए और हरिद्वार चले गए और उदासी महंत यादराम जी से दीक्षा ग्रहण की। उन्हें साधु बना लिया और विधिवत पूजा कराई गई , उन्हें उदासी साधु संप्रदाय में ले लिया गया। बनारस में संस्कृत विद्यालय था , उसमें गुरूजी ने पढ़ने के लिए भिजवा दिया। वहीँ पर चंद्रशेखर आजाद जी से पहली भेंट हुई थी। खत्री जी की मियादी बुखार से तबीयत खराब हो गई थी। दो-तीन दिन बाद स्वामी उपेन्द्रानन्द और ब्रह्मानंद जी के साथ एक सांवले रंग का काफी हृष्ट-पुष्ट गठीला युवक आया , जिसके चेहरे पर चेचक का दाग था और आयु लगभग 16 साल था। उन्होंने खत्री जी से कहा- स्वामी जी इन्हे अभी 15 बेंतों की सजा मिली थी , इनका नाम चंद्रशेखर आजाद है। वैसे यह गाँधी जी के बड़े भक्त हैं। आपसे मिलने के लिए बड़े व्याकुल हैं। एक दिन शाम को 4 बजे आजाद जी मिलने आये और कहा स्वामी जी अपने कमरे में चलिए। जैसे कमरे में गए , आजाद जी कमरा अंदर से बंद कर लिया। उस झोले में एक बड़ा मौजर पिस्तौल निकाला और खत्री जी को दे दिया। खत्री जी बहुत खुश हुए और मौजर अपने पास रख लिए। धीरे-धीरे इनका परिचय अन्य क्रांतिकारियों से हो गया। खत्री जी राजनीति में पूर्ण रूप से उतर चुके थे। ऐसा कौन सा क्रांतिकारी था जो खत्री जी से न मिला हो, जैसे- सुभाष चंद्र बोस , सरदार भगत सिंह , ठाकुर रौशन सिंह , अशफाकउल्ला खां , राम प्रसाद बिस्मिल और राजेंद्र लाहिड़ी आदि।
उन्हें कई भाषाओँ का ज्ञान था। काकोरी शहीद स्मारक के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। खत्री जी मुझे अपना पुत्र मानते थे, हम पांच का ग्रुप होता था जिसमें खत्री जी, आजाद हिंद फौज के लेफ्टिनेंट एस.के.वर्धन(सुभाष चंद्र बोस के साथी), लीलाधर पर्वतीय जी(पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथी) शिक्षाविद डॉक्टर कंचन लता सभरवाल एवं मैं (सुशील पुरी) थे । वे जहां भी जाते थे मुझे साथ लेकर जाते थे । खत्री जी का फोन आता था कि आज गवर्नर हाउस जाना है या फलानी जगह जाना है , तो मैं उनके साथ जाता था । जब कभी मैं बहुत व्यस्त होता था तो मना कर देता था कि आज मैं बहुत व्यस्त हूं, आज नहीं जा पाऊंगा तो खत्री जी कहते थे अगर तुम नहीं जाओगे तो मैं भी नहीं जाऊंगा । फिर मुझे उनके साथ जाना पड़ता था। उन्हें उनके निवास (कैसरबाग,लखनऊ स्थित) के खड़ी सीढ़ियों से उतारकर मैं ले जाता और वापस उन्हीं सीढ़ियों से उनके कमरे तक छोड़ता था । खत्री जी को कोल्ड ड्रिंक बहुत पसंद थी,लौटते समय ‘‘टंडन चाट‘‘(हजरतगंज,लखनऊ) वाले के यहां, जो डीएम अॉफिस के सामने हैं, रुक कर कोल्ड ड्रिंक जरूर पीते थे और अपने साथियों के किस्से सुनाया करते थे । मेरे घर का गृह प्रवेश में खत्री जी के साथ तत्कालीन राज्यपाल श्री मोतीलाल वोहरा जी , स्वामी सनातन जी एवं उपर्युक्त साथी और कई क्रान्तिकारियों के वंशज भी आए थे। कई वर्ष पूर्व खत्री जी के साथ काकोरी में बने शहीद स्मारक स्थल पर जाने का मौका मिला था । अपने साथियों की प्रतिमाओं को देखकर खत्री जी अपने आंसुओं को नहीं रोक पाए थे, क्योंकि उनकी शक्ल मूल अनुकृति से मेल नहीं खाती थी । इस प्रकरण पर हमारा शिष्टमंडल (हम लोग पांचो) तत्कालीन राज्यपाल श्री मोतीलाल वोहरा जी से मिला था । उन्होंने उसी समय सांस्कृतिक कार्य सचिव श्रीमती रीता सिन्हा को तुरंत बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि भारतवर्ष के विभिन्न संग्रहालयों एवं लाइब्रेरियों आदि से काकोरी शहीद सेनानियों के फोटो मंगा कर खत्री जी को दिखाकर काकोरी शहीद स्मारक में कांस्य की मूर्तियां उनके मूल अनुकृति के रूप में बनाई जाए, हमलोग मूर्तियों के बनवाने में प्रयत्न करते रहे, एक दिन मूर्तियां बनकर तैयार हो ही गई ।
खत्री जी की इच्छा थी कि उनके सामने ही मूर्तियों का अनावरण हो और यह शुभ कार्य राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जी के हाथ से हो और उसकी अध्यक्षता श्री अटल जी करे , हालांकि उस समय अटल बिहारी जी प्रधानमंत्री नहीं बने थे । कुछ दिन बाद खत्री जी की तबीयत खराब हो गई, कार्डियोलॉजिस्ट विरमानी जी (रिश्ते में मेरे बहनोई लगते हैं), को देर रात खत्री जी के घर लेकर आया, उन्होंने कहा इनको हार्ट की तकलीफ नहीं है, ईएनटी डॉक्टर को बुलाना पड़ेगा,फिर सुबह ईएनटी डॉक्टर को बुलाया गया, खत्री जी की तबीयत सुधरी नहीं और आए दिन बिगड़ती चली गई। खत्री जी को आभास हो गया था कि उनका अंतिम समय आ गया है। 18 अक्टूबर 1996 को अंग्रेजी हुकूमत को झकझोर देने वाले प्रसिद्ध ‘‘काकोरी कांड‘‘ के नायक व वयोवृद्ध स्वर्गीय रामकृष्ण खत्री जी नें आंखें सदा सदा के लिए मूंद ली । खामोश विदाई ने लाखों देशभक्तों को स्तब्ध कर दिया । आखिरी सलामी देने की सुध प्रदेश के राज्यपाल को न रही , अपने मुलाजिम को औपचारिकता के लिए भेज दिया। खत्री जी के देहांत के बाद आदरणीय स्वर्गीय अटल जी प्रधानमंत्री बने । कई बार हमारी समिति का शिष्टमंडल (जिसमें मैं भी था )आदरणीय स्वर्गीय लालजी टंडन (तत्कालीन आवास मंत्री एवं बिहार के पूर्व राज्यपाल) के माध्यम से मिला, लेकिन प्रधानमंत्री जी ज्यादा व्यस्त होने के कारण मूर्तियों के अनावरण के लिए समय नहीं दे सके । काकोरी शहीद स्थल पर क्रांतिकारियों की मूर्तियों का अनावरण प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कल्याण सिंह जी के हाथों से हो गया । लेकिन खत्री जी की अंतिम इच्छा पूर्ण ना हो सकी । मुझे इस समय खत्री जी का वही रोबीला चेहरा नजर आ रहा है, जो छड़ी के सहारे चलते थे । खत्री जी ने 23 जुलाई 1996 को अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस पर गांधी भवन में आखरी बार भाग लिया था । मुझे वो दिन याद है मेरे पास एंबेसडर कार होती थी, क्रांतिकारियों के जो भी कार्यक्रम होते थे चाहे गवर्नर हाउस, विश्वविद्यालय, गांधी भवन या विद्यालयों आदि में हो,हमलोग पांचों कार्यक्रम के कार्ड खुद जाकर बांटते थे।कभी-कभी पत्रकार पद्मश्री बचनेश त्रिपाठी जी (पूर्व सम्पादक,राष्ट्रधर्म एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी जी के दोस्त) भी साथ होते थे । बचनेश त्रिपाठी जी अक्सर मेरे कार्यालय में आते थे और दो घंटे जरूर बैठते थे ।
रामकृष्ण खत्री जी ने मुझे उपाध्यक्ष बनाया था । खत्री जी के स्वर्गवास के बाद ले० एस०के० वर्धन जी (संस्था के कोषाध्यक्ष) का भी स्वर्गवास हो गया और कोषाध्यक्ष की भी जिम्मेदारी मुझे सौंप दी गई । इस संस्था के अध्यक्ष श्री सुनील शास्त्री जी( सुपुत्र स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी, भूतपूर्व प्रधानमंत्री) और महामंत्री श्री उदय खत्री जी हैं। खत्री जी की अंतिम इच्छा थी कि संस्था का नाम चलता रहे, और ये संस्था उनकी इच्छाओं का सम्मान बराबर देती आ रही है । खत्री जी (बाबू जी) के निधन के बाद उनकी यादें हरपल मेरे साथ रहती है । अंततः मैं उस क्रांतिकारी को कोटि-कोटि नमन एवं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं । (लेखक ः ‘‘शहीद स्मृति समारोह समिति‘‘के उपाध्यक्ष हैं। निवास – बी.-13,सेक्टर – सी ,एल.डी.ए.कॉलोनी ,कानपुर रोड ,लखनऊ – 226012
मो. 9415107800