विख्यात गणितज्ञ एवं ज्योतिषी शकुंतला देवी को संख्यात्मक परिगणना में गजब की फुर्ती और सरलता से हल करने की क्षमता के कारण ‘मानव कम्प्यूटर’ कहा जाता था। इन्होंने अपने समय के सबसे तेज माने जाने वाले कंप्यूटरों को गणना में मात दी थी शकुंतला देवी महान शख्सियत और बहुत ही जिंदादिल महिला थीं।
80-90 के दशक में भारत के गांव और शहरों में यदि कोई बच्चा गणित में होशियार हो जाता था, तो उसके बारे में कहा जाता था कि वह शकुंतला देवी बन रहा है। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनका नाम 1982 में ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में भी शामिल किया गया। शकुन्तला देवी के अंदर पिछली सदी की किसी भी तारीख का दिन क्षण भर में बताने की क्षमता थी। उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। वह ज्योतिषी भी थीं। इनके 84वें जन्मदिन पर 4 नवम्बर 2013 को गूगल ने उनके सम्मान में उन्हें गूगल डूडल समर्पित किया।
शकुंतला देवी का जन्म बंगलौर में रुढ़ीवादी कन्नड ब्राह्मण परिवार में हुआ था। शकुंतला देवी के पिता सर्कस में करतब दिखाते थे. वह 3 वर्ष की उम्र में जब अपने पिता के साथ ताश खेल रही थीं तभी उनके पिता ने पाया कि उनकी बेटी में मानसिक योग्यता के सवालों को हल करने की क्षमता है। उनके पिता के सर्कस कार्यक्रमो ने उनकी प्रतिभा को रास्ते पर लाया और वह रास्ते पर अपनी गणित की प्रतिभा लोगो को दिखाने लगी। बिना कोई शिक्षा ग्रहण किये ही वह आसानी से गणित के बडे से बडे हिसाब कर लेती थी। 6 साल की आयु में उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय में अपनी हिसाब और मानसिक गणित हल करने की प्रतिभा को दिखाया। 1944 में, शकुंतला देवी अपने पिता के साथ लंदन चली गयी। 1960 के मध्य में वह भारत वापिस आई और परितोष बनर्जी से उनका विवाह हुआ, जो कोलकाता के कार्यकारी अधिकारी थे। 1979 में उनका तलाक हो गया। 1980 में लोक सभा चुनाव में वह स्वतंत्र रूप से दक्षिण बॉम्बे और आंध्र प्रदेश के मेडक से खडी हुई। मेडक में वह इंदिरा गांधी के खिलाफ खडी हुई। उनके खिलाफ लड़ते हुए वह यह कह रही थी थी वो इंदिरा गांधी द्वारा मेडक के लोगो को मुर्ख बनने से बचा रही है. लेकिन चुनाव में वह नौंवी आई, उन्हें 6514 मतदान मिले (कुल मतदान के 1.47%)। 1980 के प्रारंभ में ही शकुंतला देवी बैंगलोर लौट गयी। एक बात चीत में आपने कहा था -मैं अपनी क्षमता तो लोगों को अंतरित नहीं कर सकती लेकिन एक संख्यात्मक रुझान तेज़ी से विकसित कर लेने में मैं जनसामान्य की मदद ज़रूर कर सकती हूँ। बड़ी संख्या है ऐसे लोगों की जिनकी तर्क शक्ति का दोहन नहीं किया जा सका है। आप इस मिथक को तोड़के महाप्रयाण यात्रा पर निकल गईं हैं कि लड़कियों का हाथ गणित में तंग होता है।
शकुंतला देवी को फिलिपिंस विश्वविद्यालय ने 1969 में ‘वर्ष की विशेष महिला’ की उपाधि और गोल्ड मेडल प्रदान किया था।1988 में इन्हें वाशिंगटन डी.सी. में ‘रामानुजन मैथमेटिकल जीनियस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया था। मृत्यु से एक माह पूर्व 2013 में इन्हें मुम्बई में ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया था।
शकुंतला देवी का लंबी बीमारी के बाद हृदय गति रुक जाने और गुर्दे की समस्या के कारण 21 अप्रैल, 2013 को बंगलौर में 83 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया था।एजेन्सी।
कंप्यूटरों को गणना में मात दी थी शकुंतला देवी महान शख्सियत और बहुत ही जिंदादिल महिला थीं।
80-90 के दशक में भारत के गांव और शहरों में यदि कोई बच्चा गणित में होशियार हो जाता था, तो उसके बारे में कहा जाता था कि वह शकुंतला देवी बन रहा है। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनका नाम 1982 में ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में भी शामिल किया गया। शकुन्तला देवी के अंदर पिछली सदी की किसी भी तारीख का दिन क्षण भर में बताने की क्षमता थी। उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। वह ज्योतिषी भी थीं। इनके 84वें जन्मदिन पर 4 नवम्बर 2013 को गूगल ने उनके सम्मान में उन्हें गूगल डूडल समर्पित किया।
शकुंतला देवी का जन्म बंगलौर में रुढ़ीवादी कन्नड ब्राह्मण परिवार में हुआ था। शकुंतला देवी के पिता सर्कस में करतब दिखाते थे. वह 3 वर्ष की उम्र में जब अपने पिता के साथ ताश खेल रही थीं तभी उनके पिता ने पाया कि उनकी बेटी में मानसिक योग्यता के सवालों को हल करने की क्षमता है। उनके पिता के सर्कस कार्यक्रमो ने उनकी प्रतिभा को रास्ते पर लाया और वह रास्ते पर अपनी गणित की प्रतिभा लोगो को दिखाने लगी। बिना कोई शिक्षा ग्रहण किये ही वह आसानी से गणित के बडे से बडे हिसाब कर लेती थी। 6 साल की आयु में उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय में अपनी हिसाब और मानसिक गणित हल करने की प्रतिभा को दिखाया। 1944 में, शकुंतला देवी अपने पिता के साथ लंदन चली गयी। 1960 के मध्य में वह भारत वापिस आई और परितोष बनर्जी से उनका विवाह हुआ, जो कोलकाता के कार्यकारी अधिकारी थे। 1979 में उनका तलाक हो गया। 1980 में लोक सभा चुनाव में वह स्वतंत्र रूप से दक्षिण बॉम्बे और आंध्र प्रदेश के मेडक से खडी हुई। मेडक में वह इंदिरा गांधी के खिलाफ खडी हुई। उनके खिलाफ लड़ते हुए वह यह कह रही थी थी वो इंदिरा गांधी द्वारा मेडक के लोगो को मुर्ख बनने से बचा रही है. लेकिन चुनाव में वह नौंवी आई, उन्हें 6514 मतदान मिले (कुल मतदान के 1.47%)। 1980 के प्रारंभ में ही शकुंतला देवी बैंगलोर लौट गयी। एक बात चीत में आपने कहा था -मैं अपनी क्षमता तो लोगों को अंतरित नहीं कर सकती लेकिन एक संख्यात्मक रुझान तेज़ी से विकसित कर लेने में मैं जनसामान्य की मदद ज़रूर कर सकती हूँ। बड़ी संख्या है ऐसे लोगों की जिनकी तर्क शक्ति का दोहन नहीं किया जा सका है। आप इस मिथक को तोड़के महाप्रयाण यात्रा पर निकल गईं हैं कि लड़कियों का हाथ गणित में तंग होता है।
शकुंतला देवी को फिलिपिंस विश्वविद्यालय ने 1969 में ‘वर्ष की विशेष महिला’ की उपाधि और गोल्ड मेडल प्रदान किया था।1988 में इन्हें वाशिंगटन डी.सी. में ‘रामानुजन मैथमेटिकल जीनियस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया था। मृत्यु से एक माह पूर्व 2013 में इन्हें मुम्बई में ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया था।
शकुंतला देवी का लंबी बीमारी के बाद हृदय गति रुक जाने और गुर्दे की समस्या के कारण 21 अप्रैल, 2013 को बंगलौर में 83 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया था।एजेन्सी।